बिहार बोर्ड Class 11th Hindi
Chapter -8 उतरी स्वप्न परी : हरी क्रांति
लेखक - फणीश्वरनाथ रेणु
बिहार बोर्ड कक्षा- 11वी हिंदी दिगंत भाग-01 चैप्टर(उतरी स्वप्न परी : हरी क्रांति) लेखक परिचय, सारांश, प्रश्न उत्तर
फणीश्वरनाथ रेणु जीवन परिचय
1✅. हिंदी साहित्य के अप्रतिम कथाशिल्पी और सुप्रसिद्ध लेखक श्री फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म 1 मार्च सन् 1921 में बिहार राज्य के पूर्णिया (वर्तमान में अररिया) जनपद के औराही हिंगना नामक गाँव में हुआ था।
2✅. इनके पिता का नाम श्री शिलानाथ मंडल था।
3✅. इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अररिया और फारबिसगंज में तथा माध्यमिक शिक्षा विराटनगर (नेपाल) के आदर्श उच्च विद्यालय से प्राप्त की।
4✅. इन्हें हिंदी, मैथिली, अंग्रेजी के अलावा नेपाली तथा बंगला भाषाओं का भी काफी ज्ञान था।
श्री रेणु विद्यार्थी जीवन में ही वी.पी. कोइराला के संपर्क में आकर राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने लगे। उन्होंने 1942 के स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय भागीदारी निभाई। 1950 में नेपाल में दमनकारी, अत्याचारी और निरंकुश राजशाही के विरुद्ध क्रांति एवं राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाई।
1972 में पुनः राजनीति में सक्रिय हुए और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े, जहाँ वे पराजित हुए। जे.पी. के आग्रह पर 1974 में पुनः बिहार आंदोलन में सक्रिय हुए। इन्होंने सत्ता के दमनचक्र के विरोध में अपना पद्मश्री पुरस्कार भी वापस कर दिया।
1948-50 के बीच इन्होंने फारबिसगंज के सार्वजनिक पुस्तकालय में 'पुस्तकपाल' की नौकरी की। इसके बाद कुछ दिनों तक ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी की। लेकिन बाद में कृषिकार्य की देखभाल करते हुए स्वतंत्र लेखन करने लगे।
➡️ साहित्यिक रचनाएं फणीश्वरनाथ रेणु ने उपन्यास, कहानी रिपोर्ताज और संस्मरण पर अपनी लेखनी चलाई। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-
उपन्यास : मैला आँचल, कितने चौराहे, मरती परिकथा, जुलूस, दीर्घतपा, पल्टूबाबू रोड । कहानी-संग्रह : ठुमरी, एक श्रावणी दोपहर की धूप, मेरी प्रिय कहानियाँ, हाथ का जस, अगिनखोर, आदिम रात्रि की महक, अच्छे आदमी।
➡️ साहित्यिक विशेषताएँ : फणीश्वरनाथ रेणु राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हिंदी के आंचलिक कथाकार हैं। उन्होंने कहानी और उपन्यास दोनों विधाओं में अपनी मनोरम कृतियों से पूर्णिया और अपने ग्रामीण अंचल के जीते-जागते चरित्रों को पाठक के मानस पटल पर अंकित कर दिया है। रेणु की कला सहृदय तथा रसिक पाठकों को अपने सम्मोहन में बाँधकर अपने साथ बहा ले जाती है।
संस्मरण और रिपोर्ताज वनतुलसी की गंध, ऋणजल-धनजल, श्रुत-अश्रुत पूर्व, नेपाली क्रांतिकथा ।
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उतरी स्वप्न परी: हरी क्रांति
कोसी या उसके किसी अंचल के संबंध में जब भी कुछ कहने या लिखने बैठता हूँ, बात बहुत हद तक 'व्यक्तिगत' हो जाती है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। क्योंकि, कोसी हमारे लिए नदी ही नहीं, माई भी है। पुण्यसलिला, छिन्नमस्ता, भीमा, भयानका भी प्रभावती-कोसी मैया !!
हम कोसी के उस अंचल के वासी हैं, जिससे होकर करीब तीन-चार सौ वर्ष पहले कोसी वहा करती थी। और यह तो सर्वविदित है कि कोसी जिधर से गुजरती, धरती बाँझ हो जाती। सोना उपजाने वाली काली मिट्टी सफेद बालूचरों में बदल जाती। लाखों एकड़ बंध्या धरती उत्तर नेपाल की तराई से शुरू होकर दक्षिण गंगा के किनारे तक फैली परती के नक्शे को दो असम भागों में बाँटती हुई।
इस 'परती' के उदास और मनहूस बादामी रंग को बचपन से ही देखता आया हूँ-दूर तक फैली साकार उदासी। जिस पर बरसात के मौसम में क्षणिक आशा की तरह कुछ दिनों के लिए हरियाली छा जाती वरना बारहों महीने, दिन-रात, सुबह-शाम, धूसर और वीरान.... |
और इस मरी हुई मिट्टी पर बसे हुए इंसान?
मलेरिया और कालाजार से जर्जर शरीर, रक्त-मांसहीन चलते-फिरते नरकंकालों के समूह, जिनकी जिंदगी में न कहीं रस और न कोई रंग; रोने और कराहने के सिवा कुछ नहीं जानते थे-न हँसमा, न मुस्कराना। जिनके चेहरों पर हमेशा आतंक की रेखाएँ छाई रहतीं और आँखों में दुनिया भर की उदासी। ऐसी आँखों में रंगीन और सुनहले सपने कैसे पल सकते हैं?
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Related Questions
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1. लेखक के लिए कोसी नदी क्या है?
Ans- सिर्फ नदी ही नहीं माई भी है।
2. कोसी नदी परती के नक्ले को कितने भागों में विभाजित करती है?
Ans- दो असम भागों में
3. लेखक कोसी नदी के किस अंचल का वासी है?
Ans- जिससे होकर करीब तीन-चार सी वर्ष पहले कोसी वहा करती थी।
4. सोना उपजाने वाली काली मिट्टी किस रंग के बालूघरों में बदल जाती है?
Ans- सफेद रंग के बालूचरों में
5. लेखक 'परती' के किस रंग को बचपन से देखता आया है?
Ans - उदास और मनहूस बादामी रंग को
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...... बचपन के उन दिनों की याद आती है। हर साल हमारे एक दर्जन साथी, हमजोली हमसे बिछुड़ जाते...... .हमारे साथ पढ़नेवाले, साथ खेलनेवाले और हर ऐसे मौके पर हमें यह एहसास होता शायद, अगले साल हम भी नहीं रहेंगे। अगले साल क्या, अगले महीने या दूसरे ही दिन, अथवा घड़ी भर में घड़ा फूट जा सकता है। हमने मैलेग्नेण्ड - मलेरिया में मरते हुए लोगों को देखा था-डेढ़ घंटे में ही मृत्यु।
किंतु विधाता की सृष्टि में मानव ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। वह निराशा के घोर अंधकार में भी नन्हीं आशा का टिमटिमाता हुआ दीप लेकर आगे बढ़ता रहा है-अंधकार से लड़ता रहा hat z मैंने शुरू में ही कह दिया है कि कोसी के किसी अंचल पर कुछ कहते समय मेरी बात बहुत हद तक व्यक्तिगत
हो जाया करती है। आज ही नहीं बीस-पच्चीस साल पहले से ही!!
याद है, बीस-बाईस साल पहले 'डायन कोसी' शीर्षक से मेरा एक रिपोर्ताज 'जनता' में प्रकाशित हुआ था।
जिसका अंत आशा भरे इन शब्दों में हुआ था-"परती के दिन फिरेंगे!... प्राणों में घुले हुए रंग धरती पर फैल जाएँगे!" इस रिपोर्ताज ने मेरे दोस्तों को एक मसाला दिया। वे अक्सर मुझे चिढ़ाने के लिए कहा करते, “क्यों, आपके प्राणों में घुले हुए रंग धरती पर फैल गए क्या ?... कब चहचहाएँगी?" जनाब! आपके सुनहले सपनों के अंडे कब फूटेंगे सोने की चिड़ियाँ - मैं पहले थोड़ा अप्रतिभ हो जाता। फिर हँसकर दृढ़तापूर्वक जवाब देता, "आजादी की पहली सुबह ......।"
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Related Questions
1. मैलेग्नेण्ड मलेरिया से कितने समय में लोगों की मृत्यु
हो जाती है?
Ans- डेढ़ घंटे में
2. विधाता की सृष्टि में मानव ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी क्यों है?
Ans- मानव ही अंधकार से लड़ता हुआ, आशा का दीप लेकर आगे बढ़ता रहा है।
3.लेखक के रिपोर्ताज का क्या शीर्षक है?
Ans-'डायन कासी ।
4. लेखक अप्रतिम होकर क्या जवाब दिया करता था?
Ans- आजादी की पहली सुबह ।
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आजादी के बाद इसी अंचल की पृष्ठभूमि में मेरा पहला उपन्यास प्रकाशित हुआ, जिसका एक प्रमुख पात्र जो मलेरिया और कालाजार उन्मूलन में लगा हुआ है, इसी इलाके से अपने एक प्रियजन को पत्र लिखता है-'यहाँ की मिट्टी में बिखरे, लाखों लाख इंसानों की जिंदगी के सुनहरे सपनों और अधूरे अरमानों को बटोरकर यहाँ के प्राणियों के जीव कोष में भर देने की कल्पना मैंने की थी। मैंने कल्पना की थी, हजारों स्वस्थ इंसान, हिमालय की कंदराओं में, अरुण-तिमुर-सणकोसी के संगम पर एक विशाल 'डैम' बनाने के लिए पर्वत-तोड़ परिश्रम कर रहे हैं।.....लाखों एकड़ बंध्या धरती, कोसी-कवलित, भरी हुई मिट्टी शस्य श्यामला हो उठेगी। कफन-जैसे सफेद, बालू भरे मैदानों में धानी रंग की जिंदगी की बेलें लग जाएँगी। मकई के खेतों में घास गढ़ती हुई औरतें बेवजह हँस पड़ेंगी। मोती जैसे सफेद दाँतों की दुधिया चमक......!!'
और तब मेरे दोस्तों को मजाक के लिए-'धानी रंग, जिंदगी की बेल, मकई के खेत और दुधिया चमक' जैसे कई शब्द मिल गए। समय-असमय मेरे इन शब्दों के व्यंग्यबाण से मुझे ही मर्माहत करने का अवसर वे नहीं खोते। और, मैं हमेशा पूर्ववत हँसकर कभी आशा-भरी कोई बहुत बड़ी बात अथवा किसी श्लोक या किसी पद्य की ऐसी ही पंक्ति
कह देता- 'नर हो न निराश करो मन को।'
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Related Questions
1. लेखक अपने प्रियजन को क्या पत्र लिखता है?
Ans- यहाँ मिट्टी में बिखरे और अधूरे अरमानों के प्राणियों की कल्पना की है।
2. बालू भरे मैदानों में किसकी जिंदगी की बेलें लग जाएंगी?
Ans- धानी रंग की जिंदगी की बेलें।
3. लेखक के दोस्तों को मजाक के लिए कौन-कौन से शब्द मिल गये थे?
Ans- धानी रंग, जिन्दगी की बेल, मकई के खेत आदि।
4.वह हमेशा हंसकर क्या पंक्ति कह देता था?
Ans- “नर हो न निराश करो मन को।"
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इसलिए, जब सचमुच एक दिन कोसी योजना का आयोजन होने लगा मैं अपने को जब्त नहीं रख सका। दूने उत्साह से अपना दूसरा उपन्यास 'परती परिकथा' में हाथ लगा दिया। उपन्यास लिखने के दौरान पहाड़ों की कंदराओं में तपस्या में लीन 'देवगणों' को बार-बार जाकर देख आता। मेरा नया तीर्थ बराहक्षेत्र, जहाँ आदमी लड़ रहे थे। बड़े-बड़े टनेल में पहाड़ काटनेवाले पहाड़ी जवानों से बातें करके धन्य हो जाता। अरुण-तिमर और सुणकोसी के संगम पर बैठकर पानी मापने वाले, सिल्ट की परीक्षा करने वाले विशेषज्ञ को श्रद्धा तथा भक्ति से प्रणाम करके लौट आता हर बार नई आशा की रंगीन किरण लेकर लौटता। मेरा उपन्यास समाप्त हुआ, फिर प्रकाशित हुआ। किंतु, उस समय कोसी प्रोजेक्ट 'परीक्षा-निरीक्षा' के स्तर पर ही चल रहा था। अतः मेरे कृपालु मित्रों को इस बार मजाक का ही नहीं बहस का भी विषय मिला।
"धूसर, वीरान अंतहीन प्रांतर! पतिता भूमि, परती जमीन, बंध्या धरती धरती नहीं, धरती की लाश ! जिस पर कफन की तरह फैली हुई है - बालूचरों की पंक्तियाँ....." 'परती परिकथा' का प्रारंभ इन्हीं शब्दों से हुआ है।
Related Questions
1. उपन्यास लिखने के दौरान लेखक किस व्यक्ति को बार-बार जाकर देख आता?
Ans- कंदराओं की तपस्या में तीन 'देवगणों' को ।
2.. लेखक किससे बातें करके धन्य हो जाता था?
Ans- पहाड़ काटने वाले पहाड़ी जवानों से।
3. लेखक के अनुसार आदमी कहाँ लड़ रहे थे?
Ans- बराहक्षेत्र में।
4. लेखक के उपन्यास प्रकाशित होने के समय कोसी
प्रोजेक्ट किस स्तर पर चल रहा था?
Ans- 'परीक्षा निरीक्षा' के स्तर पर।
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और, अंत हुआ है इन पंक्तियों से "पर्दे पर धीरे-धीरे बादामी छाया छा जाती है। वीरान धरती का रंग बदल रहा है धीरे-धीरे-हरा, लाल, पीला, बैंगनी। हरे-भरे खेत। परती पर रंग की लहरें.... बाँसुरी रंगों को सर प्रदान कर रही है। अमृत हास्य परती पर अंकित हो रहा।..... आसन्नप्रसवा परती हँसकर करवट लेती है।"
बाद में, मुझे भी लगा कि मैंने अतिरिक्त उत्साह में संभवतः बहुत बढ़-चढ़कर बातें कह दी हैं। मित्रों की बातें मेरे कानों के पास रह-रहकर गूँज जाती- “भाई साहब! कागज पर रंग की लहरें लहराना और अमृत हास्य अंकित करना
बहुत आसान है, परती पर नहीं। अभी कोसी प्रोजेक्ट का 'क' भी नहीं शुरू हुआ और आप हरे-भरे खेत देखने गए। सावन के अंधे को हरियाली ही हरियाली सूझती है। ऐसा भी तो हो सकता है कि डैम बनाने के बावजूद इस धरती धरती को सींचकर भी खेती संभव नहीं हो? तब, आपकी करवट लेती इस आसन्नप्रसवा धरती के स्वप्न का क्या होगा? आपके वे सपने मिट्टी में बिखरे-ही-बिखरे रह जाएँगे।"
किंतु इन सारी निराश वाणियों के बावजूद अंततः मेरे मन के कोने में प्रतिष्ठित दृढ़ विश्वास का स्वर कवि चंडीदास के सुर में मुखरित होता- 'सन रे मानिस भाय। सवारि ऊपर मानुस सत्य तार ऊपर किछु नाय' (सुनो हे मनुष्य भाइयो। सबके ऊपर मनुष्य ही सत्य है, उसके ऊपर कुछ भी नहीं।)
Related Questions
1. वीरान धरती का रंग कैसे बदल रहा है?
Ans- धीरे-धीरे हरा, लाल, पीला, बैंगनी।
2. लेखक के फानों में मित्रों की क्या यात गूंज रही है?
Ans-"कागज पर रंग की लहरें लहराना बहुत आसान है परन्तु परती पर नहीं।"
3.कोसी प्रोजेक्ट के शुरू होने से पहले लेखक क्या देखने लग गया था ?
Ans- हरे-भरे खेत।
4. "सावन के अंपे को हरियाली ही हरियाली सूप्रती है।" ऐसा क्यों कहा गया है?
Ans- लेखक कोसी प्रोजेक्ट के शुरू होने से पहले ही
हरे-भरे खेत देखने लग गया था।
5. कवि पंडीदास के सुर में क्या कहता है?
Ans- सबके ऊपर मनुष्य ही सत्य है उसके ऊपर कुछ भी नहीं।
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तीन साल पहले की बात है। गाँव पहुँचकर एक नई और दिलचस्प कहानी सुनने को मिली। हमारे गाँव का एक कर्मठ आदमी दस-बारह साल पहले गाँव छोड़कर पूरब मुलुक बंगाल की ओर कमाने गया। पहले तो वह छठे-छमाहे, होली - दिवाली में गाँव आता भी था, लेकिन, पिछले आठ साल से वह गाँव नहीं आया था। उधर ही बस गया था। गाँव में एक-डेढ़ बीघा जमीन थी, उसी को बेचने के लिए वह आठ साल के बाद आया। स्टेशन पर उतरकर उसने अपने गाँव की पगडंडी पकड़ी। कुछ दूर जाने के बाद उसने अपने गाँव की ओर निगाह दौड़ाई। विशाल परती के उस छोर पर उसका गाँव...लेकिन, यह क्या.. ..यहाँ परती कहाँ है? उसे लगा, वह रास्ता भूलकर दूसरी ओर आ गया है, जहाँ तक नजर जाती है, धान के खेत लहरा रहे हैं-चारों ओर हरियाली है। नहर, आहर, के पैन-पुलिया और बाँध यह कहाँ आ गया वह ? उसको विश्वास हो गया कि वह नींद में ऊँपता हुआ किसी दूसरे स्टेशन पर उतर गया है। वह स्टेशन लौट आया और चिंतित होकर पूछने लगा कि क्या यह वही स्टेशन है? तो उसका गाँव कहाँ चला गया, किधर चला
गया? इसीलिए, गाँव के लड़कों ने इस आदमी का नया नाम दिया है-'सुदामा' उसको देखते ही लोग गुनगुनाने लगते हैं- सुदामा मंदिर देखि डर्यो।'
सो, गाँव को हमेशा छोड़कर पूरब मुलुक बंगाल tilde q बस जानेवाले सुदामाजी ने तब जमीन बेचने का इरादा बदल दिया। बंगाल में बसे परिवार को उठाकर फिर गाँव ले आए। पिछली बार डेढ़ बीघा जमीन में तीस मन 'लर्मा-रोजो' मैक्सिकन गेहूँ पैदा करने के बाद संकर मकई और मकई के बाद आई-आर-एइट धान....।
Related Questions
1. लेखक के गाँव का एक कर्मट आदमी कितने साल पहले गाँव छोड़कर गया था? लगते हैं?
Ans- दस-बारह साल।
2. गाँव के लड़के कर्मठ आदमी को किस नाम से पुकारा करते थे?
Ans- 'सुदामा'।
3. कर्मठ आदमी का परिवार कहाँ रहता था?
Ans- बंगाल में।
4.गाँव के लोग कर्मठ आदमी को देखकर क्या गुनगुनाने लगते हैं
Ans-. सुदामा मंदिर देखि डर्यो।'
5. कर्मठ आदमी अपने परिवार को दोबारा कहाँ पर लेकर आया था?
Ans- गांव में
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इस अभिनव सुदामाचरित के बाद इस अंचल की प्रगति और परिवर्तन के बारे में और क्या कहा जाए जिस धरती पर कभी दूब भी हरी नहीं होती थी वहाँ धान और की बालियाँ झूमती हैं...नहरों के जाल बिछ गए हैं. परती का चप्पा-चप्पा हँस रहा है। सिंचाई, रासायनिक खाद और उन्नत बीज की महिमा से बंध्या धरती अन्नपूर्णा ही नहीं, परिपूर्णा हो गई है।
जिस दिन हमारे खलिहान पर गेहूँ की पहली फसल कटकर आई, मेरा रोम-रोम पुलकित हो गया। मैंने बालियाँ को सिर से खुलाकर मूल मंत्र का जाप किया। फिर, अपने दोनों उपन्यासों की निजी प्रतियाँ निकाल लाया और उनके अंतिम पृष्ठों पर लिख दिया-
'लाखों एकड़ कोसी-कवलित मरी हुई मिट्टी शस्य श्यामला हो उठी है। कफन-जैसे सफेद बालू-भरे मैदान में धानी रंग की जिंदगी की बेलें लग गई हैं। मकई के खेतों में घास गढ़ती औरतें सचमुच बेवजह हँस पड़ती हैं।....सारी धरती मानो इंद्रधनुषी हो गई है।'
'दिन फिरे हैं किसानों के खेतों में ट्रैक्टर चल रहे हैं। सब मिलाकर एक स्वप्नलोक की सृष्टि साकार हो गई । है। चारों ओर अमृत हास्य। एक हरी क्रांति अपनी पहली मंजिल पर पहुँचकर सफल हुई है। सपने सच भी होते हैं और 'अपने' भी....... जा रहे हैं।'
RELATED QUESTIONS
1. गेहूँ की पहली फसल देखकर कवि का मन कैसा हो गया? ANS- रोम-रोम पुलकित हो गया।
2. सिंचाई रासायनिक खाद व उन्नत बीज से बंध्या परती क्या हो जाती है?
Ans- अन्नपूर्णा ही नहीं, परिपूर्णा हो जाती है।
3. कवि ने वालियों को सिर से छुआकर किस मंत्र का जाप किया था?
Ans- मूल मंत्र का।
4. लाखों एकड़ कोसी-कवलित हुई मिट्टी किस प्रकार से उठ जाती है?
Ans- शस्य श्यामला प्रकार से।
5. हरी कांति किस मंजिल पर पहुँचकर सफल हुयी है?
Ans- अपनी पहली मंजिल पर पहुँचकर
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Question Answer
प्रत्न 1. लेखक ने कोसी अंचल का परिचय किस तरह दिया है?
उत्तर- लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ने कोसी अंचल का परिचय बड़े ही आत्मीय ढंग से दिया है। यह उनका व्यक्तिगत परिचय है कोसी नदी लेखक के लिए केवल नदी ही नहीं है बल्कि 'माई' भी है, अर्थात् माता है। यह उसके लिए पुण्य सलीला भीमा, छिन्नमस्ता, भयानक प्रभावती कोसी मैया है।
प्रश्न 2. जब लेखक कोसी या उसके किसी अंचल के संबंध में कुछ कहने या लिखने बैठता है, तो बात बहुत हद तक व्यक्तिगत हो जाती है। ऐसा क्यों?
उत्तर- जब लेखक कोसी या उसके किसी अंचल के संबंध में कुछ कहने या लिखने बैठता है, तो बात बहुत हद तक व्यक्तिगत हो जाती है। लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि लेखक भी कोसी के उसी अंचल का रहने वाला है। उसके पूर्वजों ने भी अपना सारा जीवन वहीं बिताया है। लेखक वहीं जन्मा, पला बढ़ा और उस अंचल की हर वास्तविकता का पूर्ण ज्ञान रखता है। लेखक कोसी के उस अंचल को बचपन से ही देखता आया है। पुण्य सलिला कोसी उसके लिए मात्र एक नदी ही नहीं बल्कि प्रभावती कोसी मैया' और 'माई' भी है।
प्रश्न 3. पाठ में लेखक ने कोसी को 'माई' भी कहा है और 'डायन कोसी' शीर्षक से रिपोर्ताज लिखने की चर्चा भी की है। लेखक का कोसी से कैसा रिश्ता है?
उत्तर- सुप्रसिद्ध लेखक फणीश्वरनाथ रेणु का कोसी से बहुत अटूट रिश्ता था। इस पाठ में कोसी को उन्होंने माता (माई) कहकर भी पुकारा है। उनकी नजर में कोसी का जल पवित्र है। इसलिए उन्होंने कोसी को पुण्यसलिला भी कहा है। उन्होंने कोसी तांत्रिकों की देवी भी कहा है। इसलिए वे उसे छिन्नमाता कहकर भी पुकारते हैं। कोसी की भयानकता तथा भयावहता को देखकर वे उसे 'भीमा' एवं 'भयानक' भी कहते हैं। "कोसी परियोजना" से वहाँ के लोगों को काफी लाभ मिला। इसलिए वे उसे प्रभावती भी कहते हैं।
साथ ही बीस-बाईस वर्ष पूर्व कोसी की भयानक छवि से भयभीत होकर लेखक ने 'डायन कोसी' शीर्षक से एक रिपोर्ताज भी 'जनता' नामक पत्रिका में प्रकाशित किया था। रिपोर्ताज गद्य लेखन की आधुनिक विधा है। आँखों देखी अथवा कानों सुनी जीवन की किसी सच्ची घटना पर आधारित जानकारी ही रिपोर्ताज कहलाती है। इसमें कल्पना के लिए कोई स्थान नहीं होता। यह सच्चे तथ्यों पर आधारित रिपोर्ट होती है। कोसी नदी ने सारे क्षेत्र को तबाह किया था। सारी उपजाऊ भूमि वीरान हो गई थी। दूर-दूर तक कहीं भी हरियाली दिखाई नहीं पड़ती थी। लेखक भी कोसी की निर्दयता से पीड़ित थे। इसीलिए उन्होंने कोसी को डायन कहकर पुकारा। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने 'डायन कोसी' नामक एक रिपोर्ताज भी जनता नामक पत्रिका में प्रकाशित किया था। इस प्रकार लेखक ने 'कोसी एक वरदान' तथा 'कोसी एक अभिशाप'- दोनों रूपों में कोसी से अपना रिश्ता जोड़ा है।
प्रश्न 4. मानव ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। पाठ के संदर्भ में स्पष्ट करें।
उत्तर- लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने संस्मरण एवं रिपोर्ताज "स्वप्न परी हरी क्रांति" में मानव जीवन के मार्मिक पहलू को स्पर्श किया है। यह एक सर्वविदित्त और सर्वज्ञात तथ्य है कि विधाता की इस सृष्टि में मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, उससे ऊपर, अच्छा या उत्तम अन्य कोई प्राणी नहीं। इसी बात को बंगला के सुप्रसिद्ध कवि चंडीदास ने इस प्रकार व्यक्त किया है- 'सुन रे मानसि भाय। सवारि ऊपर मानुस सत्य तार ऊपर किछु नाय कवि सुमित्रानंदन पंत की भी पंक्ति है- "सुन्दर है बिहरा सुमन सुंदर मानव तुम सबसे सुंदरतर" विवेच्य पाठ में रेणुजी ने भी इसी तथ्य की संपुष्टि की है। उन्होंने बताया है कि यह मनुष्य ही है, जो घोर निराशा में आशा की लौ जलाए चलता है और अपने उद्योग से प्रकृति को भी अपने अनुकूल बना लेता है। कोसी नदी जो उत्तर बिहार की अभिशाप मानी जाती है, जिसके कारण हजारों-हजार जिंदगियाँ पल भर में काल कवलित हो जाती हैं, वहाँ भी आजादी के बाद हरी क्रांति के फलस्वरूप खुशहाली आ गई है। कृषि संभव हो गई है और अमन-चैन कायम है। इस प्रकार प्रस्तुत पाठ में यह पूरी तरह सत्यापित और प्रमाणित हो जाता है कि मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, वह चाहे तो कुछ भी संभव हो सकता है।
प्रश्न 5. सुदामा जी की किस कथा का उल्लेख लेखक ने पाठ में किया है?
उत्तर- भगवान श्री कृष्ण के सहपाठी सखा सुदामा पौराणिक कथा का अंश है। वे गरीबी की हालत में श्री कृष्ण गए। वापस आए तो उनके गाँव का कहीं कोई पता नहीं था। उसकी जगह पर नए भवन बन गए थे। सम्पूर्ण गाँव का उद्धार सुदामा को बिना बताए ही कर दिया गया था। ठीक वैसे ही बहुत पहले उनके गाँव के एक सज्जन गाँव छोड़कर पूरब मुल्क-बंगाल में चले गये और वहीं जाकर रहने लगे। जब आठ-दस साल बाद ये गाँव में पड़ी अपनी एक-डेढ़ बीघे जमीन बेचने के लिए वहाँ लीटते हैं तो अचमित रह जाते हैं। गाँव की पूर्णतया कायापलट हो चुकी है, वीरान, धूसर, परती पड़े रहने वाले खेतों में हरी-हरी फसलें लहलहा रही थीं। चारों ओर समृद्धि एवं सम्पन्नता का साम्राज्य है। इसे देख सज्जन महोदय सुदामा की तरह ही अचंभित रह जाते हैं, उन्हें सहसा विश्वास ही नहीं हो पाता है कि यह उन्हीं का पुराना गाँव है। के पास
प्रश्न 6. लेखक अपने दूसरे उपन्यास में दूने उत्साह से क्यों लग गया? पहले उपन्यास से इसका क्या संबंध है?
उत्तर- लेखक अपने दूसरे उपन्यास में दूने उत्साह से इसलिए लग गया क्योंकि लेखक ने कोसी के अंचल की सोना उपजाने वाली भूमि को सफेद रेत के मैदान से दोबारा उसी रूप में देखने की कल्पना की थी। उसका स्वप्न था कि धरती के दिन फिरें और लोगों का जीवन पुनः खुशहाली से भर उठे। कोसी परियोजना शुरू होने से उसकी यह कल्पना और स्वप्न अब साकार होते दिखाई देने लगे थे।
पहले उपन्यास से इस उपन्यास का बहुत ही गहरा संबंध था। दूसरा उपन्यास पहले उपन्यास के अगले अंक के रूप में था पहले उपन्यास के अंतिम आशा भरे शब्दों, "परती के दिन फिरेंगे। प्राणों में घुले हुए रंग धरती पर फैल जाएँगे" के साकार रूप लेने का समय आ गया था। कोसी परियोजना का आयोजन शुरू हो चुका था। दूसरे उपन्यास में उन सपनों का विस्तृत रूप और उसका वास्तविकता में परिवर्तित हुआ रूप दिखाया गया है।
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