बिहार बोर्ड Class 11th Hindi
Chapter -9 एक दीक्षांत भाषण
लेखक - हरिशंकर परसाई
बिहार बोर्ड कक्षा- 11वी हिंदी दिगंत भाग-01 चैप्टर(एक दीक्षांत भाषण ) लेखक परिचय, सारांश, प्रश्न उत्तर
हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय
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जीवन-परिचय - हिंदी साहित्य के व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त 1924 को मध्य प्रदेश प्रांत के होशंगाबाद जिले के जमानी गाँव में हुआ था।
इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम. ए. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद कुछ दिनों तक इन्होंने अध्ययन कार्य किया और उसके बाद स्वतंत्र लेखन प्रारंभ किया। कुछ दिनों तक इन्होंने जबलपुर से 'वसुधा' नामक पत्रिका भी निकाली, जो अनेक वर्षों तक घाटा ही देती रही। इनकी मृत्यु 10 अगस्त, 1995 हुई।
साहित्यिक रचनाएँ : परसाई जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-
कहानी संग्रह : जैसे उनके दिन फिरे, हँसते हैं रोते हैं।
उपन्यास तट की खोज, रानी नागफनी की कहानी।
निबंध संग्रह : तबकी बात और भी, बेईमानी की परत, भूत के पाँव पीछे, पगडंडियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, और अंत में, सदाचार की ताबीज ।
व्यंग्य-लेख संग्रह : वैष्णव की फिसलन, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, तिरछी रेखाएँ, विकलांग श्रद्धा का दौर। परसाई जी द्वारा रचित समग्र साहित्य 'परसाई रचनावली' के छह भागों में प्रकाशित हुआ है ।
भाषा शैली हरिशंकर परसाई ने अपनी रचनाओं में अधिकांशतः व्यंग्यात्मक शैली का ही प्रयोग कियों है। इनकी शैली में विचारात्मकता का पुट भी सम्मिलित है। परसाई जी की भाषा में चुटीलापन, तीखापन, प्रवाहमयता एवं प्रहारात्मकता है। भाषा की 'व्यंजना' शक्ति का भी उन्होंने उत्कृष्ट प्रयोग किया है। तत्सम, तद्भव एवं देशज शब्दों के साथ ही अंग्रेज़ी और उर्दू के प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग इनकी रचनाओं में हुआ है। अलंकारों, उद्धरणों एवं कथा-प्रसंगों का भी प्रयोग हुआ है। मुहावरों के साथ-साथ शब्दों का चयन अत्यंत सटीक हुआ है।
साहित्यिक विशेषताएँ: परसाई जी मुख्यतः एक व्यंग्य लेखक हैं। लेकिन उनका व्यंग्य केवल मनोरंजन के लिए नहीं है, बल्कि उन्होंने समाज की कुरीतियों पर गहरी चोट की है। उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार और शोषण पर तीखे व्यंग्य वाण चलाकर लोकहित की साधना की है। उनके व्यंग्य लेखों की उल्लेखनीय विशेषता यह रहती है कि वे समाज में व्याप्त विसंगतियों व विडंबनाओं पर केवल चोट ही नहीं करते, बल्कि पाठक को कर्म और चिंतन की प्रेरणा भी देते हैं। वे कटुता से बचते हैं। भाषा प्रयोग में उन्हें असाधारण कुशलता प्राप्त थी।
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एक दीक्षांत भाषण
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(विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोहों का मौसम चल रहा है। एक विश्वविद्यालय में एक मंत्री का दीक्षांत भाषण मैंने भी सुना। भाषण ज्यों-का-त्यों यहाँ दे रहा हूँ।-लेखक) प्यारे विद्यार्थियों,
इस समारोह में छात्रों से ज्यादा पुलिस के सिपाही देखकर मेरा मन आनंदित हो उठा। देखिए सिर्फ बीस वर्षों में हमने कितनी प्रगति कर ली। दुनिया में बहुत पुराने विश्वविद्यालय होंगे, पर वहाँ भी एक छात्र के पीछे एक पुलिस मैन नहीं हो पाया। शासन को तो इस प्रगति का श्रेय है ही, आप लोगों को भी कुछ श्रेय है। मैं तो उस दिन की कल्पना कर रहा हूँ, जब आप लोगों में से हरेक के बाथरूम में एक सिपाही होगा। अगर शासन और छात्रगण परस्पर सहयोग करते रहे और दोनों ने प्रयत्न किए तो वह दिन दूर नहीं है जबकि उपकुलपति के आसन पर पुलिस थानेदार विराजमान होगा। आप इस दिशा में जो प्रगति कर रहे हैं, उसकी में प्रशंसा करता हूँ। शासन इस दिशा में जो करता है वह आप जानते ही हैं। विश्वविद्यालय और पुलिस को निकट लाने के लिए शासन पूर्ण प्रयत्न करेगा यह आश्वासन मैं इस पवित्र अवसर पर आपको देता हूँ।
प्यारे छात्रों, आप तो अभी से हल्ला-गुल्ला और हूटिंग करने लगे। इतने उतावले मत होइए। मैंने अपनी सुविधा
के लिए भाषण में हूटिंग के उपयुक्त कई स्थल रखे हैं। उन्हें आने दीजिए और तब मुक्त मुख से छूट कीजिए। मैं आपको बतला दूँ कि मैं कोई विद्वान या महापुरुष नहीं हूँ। प्रश्न उठता है कि फिर में दीक्षांत भाषण के लिए क्यों बुलाया गया? जवाब साफ मैं अगर इस बार भी न बुलाया जाता तो ग्रांट रुकवा देता। तब आप लोगों का पढ़ना बंद हो जाता। आपका भविष्य अंधकारमय न हो, यही सोचकर में दीक्षांत भाषण देने आ गया हूँ।
Related Questions
1. नेता जी का मन समारोह में किसको देखकर आनंदित हो गया?
Ans- छात्रों से ज्यादा पुलिस के सिपाही देखकर।
2. विश्वविद्यालय और पुलिस को निकट ताने में कौन सहायक होता है?
Ans- शासन।
3. नेता जी में किसको निकट लाने की बात करते हैं? Ans- विश्वविद्यालय और पुलिस को निकट लाने की बात ।
4. दीक्षांत भाषण के लिए किसको बुलाया गया ?
Ans- नेता जी को।
आप लोग फिर शोरगुल करने लगे। आप शायद हूटिंग के मूड में आ गए हैं। मैं इसका बुरा नहीं मानता। इससे तो अभ्यास ही बढ़ता है। हमें आजकल हर जगह हूटिंग का सामना करना पड़ता hbar B अनपढ़ जनता की हूटिंग से में ऊब उठा हूँ। आप जैसे शिक्षित नवयुवक मुझे छूट कर रहे हैं यह काफी 'रिफ्रेशिंग' लग रहा है। फिर यह मेरे लिए गौरव की बात है कि इस वक्त जब मेरे साथी, दूसरे साथी, दूसरे मंत्री, गवर्नर लोगों के द्वारा छूट हो रहे होंगे, मैं एक विश्वविद्यालय में छूट हो रहा हूँ। इससे मेरा स्तर बढ़ता है।
शोरगुल, आवाजकशी और हूटिंग के मामले में मैं आप लोगों की क्षमता जानता हूँ। मैंने कोयल से पूछा था, "बहन जी, आप पेड़ों पर बैठी क्यों गाती हैं?" उसने कहा, 'पहले मैं शहर में गाती थी, पर विश्वविद्यालय के लड़कों ने छूट करके भगा दिया। इसीलिए पेड़ पर बैठकर गाना पड़ता है। मैं यह भी जानता हूँ कि मोर पहले यहाँ स्टेज पर नृत्य करता था। पर आप लोगों ने कंकड़ मारकर उसे भी जंगल में भगा दिया। मैं जानता हूँ कि मेरी जगह पर अगर बृहस्पति भी भाषण देते तो वे भी छूट कर दिए जाते। आपके उपकुलपति उन्हें आमंत्रित करके देखें। मैं दावे से कहता हूँ कि वे यहाँ आने से इनकार कर देंगे। यह तो मेरा ही कलेजा है, जो बोले जा रहा हूँ। मेरे साहस का कारण यह है कि मैं बृहस्पति की तरह ज्ञानी नहीं हूँ। ज्ञानी कायर होता है। अविद्या साहस की जननी है। आत्मविश्वास कई तरह का होता है-धन का बल का, ज्ञान का। मगर मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है।
Related Questions
1. दीक्षांत समारोह में लोग किस मूड में आ गए?
Ans- हूटिंग के मूड में।
2. नेता जी किस जगह पर हूट हो रहे थे?
Ans- एक विश्वविद्यालय में
3. नेता जी को शिक्षित द्वारा हूट किये जाने पर कैसा लग रहा था?
Ans- रिफ्रेशिंग ।
4. लेखक ने कोयत से क्या पूछा था?
Ans- बहन जी, आप पेड़ों पर बेटी क्यों गाती है
" 5. आत्मविश्वास कितने प्रकार का होता है?
Ans- धन, बल, ज्ञान का
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अब आप मंच पर ककड़ फेंकने लगे हैं। मैं इस कार्यक्रम की तुलना जब पश्चिम के ऐसे ही कार्यक्रम से करता हूँ तो मेरा मन भर उठता है। पश्चिम में ऐसे मौके पर अंडे फेंके जाते हैं। पर हाय भारतमाता के इन लोगों को कंकड़ फेंकना पड़ता है। वे अंडे नहीं खरीद सकते। देश की आर्थिक दुर्दशा का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि हमारे होनहार नौजवान वक्त पर फेंकने के लिए अंडे नहीं खरीद सकते। pi मैं आपसे कहता हूँ कि आप निराश मत होइए। हम पर भरोसा रखिए। हम देश का विकास कर रहे हैं। आप जल्दी ही अंडे फेंक सकेंगे। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि अपने जीवन काल में आपसे नहीं तो आपके लड़कों से अपने ऊपर अंडे जरूर फिकवाऊँगा। इसके लिए चाहे मुझे सौ साल भी मंत्री क्यों न रहना पड़े।
युवा मित्रो, आपने ताली बजाने का एक स्थल खो दिया। खेर, आगे ध्यान रखिए। मैं देख रहा हूँ कि आप में से कुछ लड़कियों के पीछे खड़े होकर बकरे की बोली बोल रहे हैं। मैं जानता हूँ, अच्छी लड़कियाँ जानवर की बोली बोलने वाले युवक से ही प्रेम करती हैं। मेरा लड़का एक लड़की के पीछे कुत्ते की बोली बोलता था। वह इतनी मुग्ध हुई कि उससे प्रेम करने लगी। अब दोनों की शादी भी हो गई है। घर में मेरा लड़का 'भौं-भौं' करता है तो बहू 'म्याऊँ' करती है। इससे परिवार का वातावरण सुखद रहता है।
Related Questions
1. नेता जी अपने कार्यक्रम की तुलना किस कार्यक्रम से करते है?
Ans- पश्चिम के कार्यक्रम से।
2.भारतमाता के लोगों को कंकड़ क्यों फेंकने पड़ते हैं? Ans- क्योंकि वे अंडे नहीं खरीद सकते।
3. कुछ युक्क कहाँ खड़े होकर बकरे की बोली बोल रहे हैं?
Ans- कुछ लड़कियों के पीछे।
4. नेता जी का लड़का और बहू पर में किस प्रकार का व्यवहार करते हैं?
Ans- लड़का भौं-भौं करता है।
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युवको, देश को आपसे बड़ी आशाएँ हैं। देश का भविष्य आपको ही बनाना है। आप पूछेंगे, 'वर्तमान का क्या होगा?" वर्तमान की चिंता आप न करें। वर्तमान को तो हम बिगाड़ रहे हैं। यह आपके प्रति हमारा दायित्व है। यदि हम आज न बिगाड़ेंगे, तो कल आपके लिए कुछ काम नहीं रह जाएगा। तब आप निठल्ले हो जाएँगे और यह देश पतन के गर्त में गिर जाएगा।
आप युवक हैं, क्रांतिकारी हैं। मैं आपके क्रांतिकारी आंदोलनों को बड़े ध्यान से देख रहा हूँ। जब आप बस-कंडक्टर और सिनेमा-गेटकीपर के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन करते हैं, तब मुझे बड़ी खुशी होती है। जब तक आप बस कंडक्टर और सिनेमा गेटकीपर के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन करते रहेंगे, हम सुरक्षित रहेंगे। मैं आपसे अपील करता हूँ कि इन्हीं के खिलाफ आंदोलन करते रहें। जिस दिन आप बुनियादी परिवर्तन के लिए आदोलन करेंगे, उस दिन हम उखड़ जाएँगे। इसलिए आप सच्चे क्रांतिकारी बनें। सच्चा क्रांतिकारी कंडक्टर, गेटकीपर, चपरासी वगैरह से ही संघर्ष करता है।
अब मैं आपको सर्देश देता हूँ हर आदमी को जीवन के सत्य को पकड़ लेना चाहिए और उसके लिए हर कर्तव्य करना चाहिए। मैंने समझ लिया कि मेरे जीवन का सत्य मंत्री बनना है। इस सत्य को मैंने कभी नहीं छोड़ा। इस सत्य के लिए मैंने ईमान, धर्म सबको परित्याग किया। सत्य के लिए बड़े से बड़ा त्याग करना पड़ता है। मैंने किया, और आप जानते हैं कि सत्य मुझसे कभी नहीं छूटा। किसी भी पार्टी का मंत्रिमंडल हो, मैं जरूर मंत्री रहा। जिसका मंत्रिमंडल बना मैं उसी का हो गया। सत्य को इसी तरह दाँतों से पकड़ा जाता है। आप मेरे आदर्श पर चलें। विश्वविद्यालय के जीवन में आप यदि तय कर लें कि आपका सत्य डिग्री लेना है तो इसके लिए पेपर आउट व नकल से लेकर अध्यापक से मारपीट तक करें। सत्य बड़ा कुछ नहीं है।
Related Questions
1. देश की सबसे बड़ी आशाएं कौन है?
Ans- युवक।
2. नेता जी के अनुसार वर्तमान में क्रांतिकारी कोन व्यक्ति है?
Ans- युवक।
3. नेता जी युवकों को क्या संदेश देना चाहते हैं?
Ans- जीवन के सत्य को पकड़ना।
4. नेता जी ने सत्य के लिए क्या-क्या परित्याग किया?
Ans- ईमान, धर्म आदि का।
5. नेता जी ने सबसे बड़ा किसे माना है?
Ans- सत्य को
मेरा दूसरा संदेश यह है कि आप लोग राजनीति में भाग न लें। अगर आप राजनीति में भाग लेंगे तो हमें राजनीति छोड़नी पड़ेगी। आप लोग चरित्रवान बनें। अगर आप चरित्रवान न बनेंगे, तो हमें बनना पड़ेगा और हमारी अब चरित्रवान बनने की उम्र नहीं है। आप त्यागी बने-आप ईमानदार बनें। आपके ईमानदार बन जाने से हम ईमानदार बनने से बच जाएँगे। वरना हमें इस ढलती उम्र में ईमानदार बनना पड़ेगा। इसमें कितना क्लेश होता है, इसे आप कच्ची उम्र के लड़के नहीं समझ सकते। मेरी इच्छा है कि आप देश के सच्चे सपूत बनें। अगर आप नहीं बनेंगे तो हमें बनना पड़ेगा और हमारे सच्चे सपूत बनने की उम्र नहीं रही। तरुण मित्रो, देश को आपका ही भरोसा है। आप पर देश भरोसा नहीं करेगा तो उसे फिर हम पर ही भरोसा करना होगा और यह उसके लिए अच्छा नहीं होगा।
तरुण मित्रो, आपको यह विदित ही है कि समारोह में मुझे भी आपके साथ कानून की डाक्टरेट बिना किसी इम्तिहान के पास किए ससम्मान मिल रही है। यह बड़ी स्वस्थ परंपरा है कि जो परीक्षा पास न करे उसे सम्मानपूर्वक डिग्री मिल जाए। आज मैं भी आपकी तरह छात्र हो गया हूँ। मेरे मन में छात्र जीवन की सुख स्मृतियाँ जाग उठी हैं। किसी कवि ने कहा है कि- 'अहा, छात्र जीवन भी क्या है, क्यों न इसे सबका मन चाहे ।' डॉक्टर बनने की इच्छा मेरी बचपन से ही थी, पर अक्ल ने साथ नहीं दिया। यह इच्छा आज पूरी हो रही है। मैं जानता हूँ कि यदि मैं मंत्री न होता तो कानूनी डॉक्टर क्या, कंपाउंडर भी मुझे कोई न बनाता । ओ३म् शांति शांति शांति !
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1. नेता जी का युवकों के प्रति क्या संदेश है?
Ans- राजनीति में भाग न लेना।
2. नेता जी ने युवकों को क्या बनने की इच्छा जाहिर की है?
Ans- चरित्रवान ।
3. नेता जी की क्या बनने की उम्र नहीं है?
Ans- देश के सच्चे सपूत ।
4. नेता जी बचपन में क्या बनना चाहते थे?
Ans- डॉक्टर।
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Question Answer
प्रश्न 1. दीक्षांत समारोह में नेता जी का मन क्या देखकर आनंदित हो उठा ?
उत्तर- दीक्षांत भाषण समारोह में आमंत्रित नेता जी का मन यह देखकर आनंदित हो उठा कि यहाँ उपस्थित छात्रों से अधिक पुलिस के जवानों की उपस्थिति के कारण किसी अप्रिय घटना होने पर नेताजी की कोई हानि होने की संभावना नहीं थी। कुल मिलाकर वे स्वयं को पूर्णतया सुरक्षित समझ रहे थे।
प्रश्न 2. विश्वविद्यालय में हूटिंग होने पर भी नेता जी खुश क्यों हैं?
उत्तर- दीक्षांत भाषण समारोह में नेता जी अविराम गति से अपना भाषण जारी रखे हुए थे। उनके भाषण के बीच-बीच में दर्शक दीर्घा में बैठे छात्र शोरगुल करते हैं। लड़कियों के पीछे बैठे कुछ छात्र तो जानवरों की आवाजें निकालकर हूटिंग कर रहे थे। इस शोरगुल और हूटिंग से नेता जी न परेशान होते हैं और न ही उन्हें गुस्सा आ रहा था। इसके विपरीत नेता जी तो बहुत ही खुश और गौरवान्वित हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि उनके जैसे नेता, मंत्री अथवा सांसद जहाँ देश की अनपढ़ जनता द्वारा छूट हो रहे हैं, वहीं ये नेताजी विश्वविद्यालय के पढ़े-लिखे छात्रों द्वारा छूट हो रहे हैं। इससे उनका स्तर काफी बढ़ गया।
प्रश्न 3. ज्ञानी कायर होता है। अविद्या साहस की जननी है। आत्मविश्वास कई तरह का होता है- पन का बल का, ज्ञान का। मगर मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है। इस कथन का व्यंग्यार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत कथन हिंदी के सर्वाधिक सशकत और समर्थ व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का है। इसके माध्यम से परसाई जी ने मूर्खो की हठधर्मिता पर करारा व्यंग्य किया है। इस कथन में ज्ञानी को कायर कहने से उनका अभिप्राय यह है कि ज्ञानीजन छोटी-सी बात को लेकर भी आवश्यकता से अधिक सोच-विचार करने लगते हैं। जिसके कारण निर्णय लेने में देर होती है और उनका जोश ठंडा पड़ जाता है। बहुत बार ऐसा देखा गया है कि ज्ञानी व्यक्ति काम करने से डर जाता है, जबकि अज्ञानी उसी क्षेत्र में साहसपूर्वक आगे बढ़ जाता है। व्यंग्यकार परसाई जी ने आत्मविश्वास को कई प्रकार का बताते हुए मूखों के आत्मविश्वास पर भी करारा प्रहार किया है। मूर्ख लोग किसी की बात नहीं मानते, उनका हठ दृढ़ होता है। इसके विपरीत, बुद्धिमान लोग समझाने पर समझ जाते हैं, पर मूर्ख अर्थात् अबुद्ध लोग तो अपनी ही बात पर अड़े रहते हैं इसलिए उनके आत्मविश्वासको व्यंग्य रूप में सर्वोपरि कहा गया है।
प्रश्न 4. नेता जी के अनुसार ये वर्तमान को बिगाड़ रहे हैं ताकि छात्र भविष्य का निर्माण कर सकें। इस कथन का व्यंग्य स्पष्ट करें।
उत्तर- नेता जी के अनुसार... कर सकें।' इस व्यंग्य का अर्थ यह है कि अपने भाषण में नेता जी ने कहा कि आप जैसे नवयुवक ही इस देश का भविष्य हैं। देश को इन नवयुवकों से बहुत सारी आशाएँ हैं। हम नेता लोग देश के वर्तमान को बिगाड़ने में लगे हैं, जिससे कि भविष्य में नवयुवक निठल्ले न रहे। अगर उनके जैसे नेता देश का वर्तमान नहीं बिगाड़ेंगे तो भविष्य में इन नवयुवकों के पास बनाने के लिए बचेगा ही क्या। आखिर नवयुवकों के पास कुछ न कुछ बनाने के लिए तो होना ही चाहिए और इसके लिए देश को इस समय बिगाड़ना आवश्यक है, अर्थात् आजकल के मंत्री, नेता, सांसद आदि सभी देश को, समाज को खोखला करते हैं और देश के नवयुवक छात्रों से भविष्य निर्माता, राष्ट्र निर्माता, देश के सच्चे सपूत आदि बनने की आशा करते हैं।
प्रश्न 5. नेता जी ने सच्चे क्रांतिकारियों के क्या लक्षण बताए हैं?
उत्तर- नेता जी ने दीक्षांत भाषण समारोह में अपने भाषण में सच्चे क्रांतिकारियों के निम्नलिखित लक्षण बताए हैं-
1. सच्चा क्रांतिकारी बुनियादी परिवर्तन के लिए कोई आंदोलन नहीं करता है।
2. एक सच्चा क्रांतिकारी हमेशा कंडक्टर, सिनेमा गेटकीपर चपरासी आदि के विरुद्ध ही आंदोलन करता है।
3. राष्ट्र की प्रमुख समस्याओं के लिए कभी भी चिंतित अथवा परेशान नहीं होता है।
4. ऐसे क्रांतिकारी सदैव अपने हित की पूर्ति के लिए ही आंदोलनरत रहते हैं। इससे आजकल होने वाले आंदोलनों में शामिल आंदोलनकारियों की वास्तविक तस्वीर हमारे समक्ष आ जाती है।
प्रश्न 6. 'सत्य को इसी तरह दाँतों से पकड़ा जाता है।' इस कथन से नेताजी का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- दीक्षांत समारोह में आमंत्रित नेताजी पूरी तरह वर्तमान नेताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनके लिए निजी स्वार्थ की पूर्ति ही सब कुछ है, देश और समाज अथवा नीति, मूल्य और सिद्धांत कुछ भी नहीं। उदाहरण के लिए नेताजी का मंत्री बनना। उनके लिए मंत्री बनना ही उनका एकमात्र लक्ष्य रहा। उसकी प्राप्ति हेतु उन्होंने ईमान, धर्म सबको छोड़ा लेकिन मंत्री जरूर बने। इस प्रकार उक्त कथन के माध्यम से वर्तमान नेताओं की यह पोल खुली है कि उनके जीवन में आदर्श और मूल्य की कोई बात नहीं, येन-केन-प्रकारेण सत्ता-सुख प्राप्त करना ही उनका एकमात्र लक्ष्य है।
प्रश्न 7. 'में जानता हूँ कि यदि में मंत्री न होता तो कानूनी डॉक्टर क्या कंपाउंडर भी मुझे कोई न बनाता' इस पंक्ति की सप्रसंग व्याख्या करें।
उत्तर- प्रसंग प्रस्तुत व्यंग्य पंक्ति हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-1 में संकलित एक दीक्षांत भाषण' नामक व्यंग्य लेख से उद्धृत है। इसके लेखक सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई हैं। यह व्यंग्य लेख उनकी कृति 'परसाई रचनावली' में संकलित है। इस पंक्ति में लेखक ने दीक्षांत समारोह में आमंत्रित महोदय के भाषण के माध्यम से विश्वविद्यालयों द्वारा अयोग्य व्यक्तियों को सम्मानूपर्वक उपाधियाँ वितरित करने के ढंग पर करारा व्यंग्य करते हुए उनकी कार्य-पद्धति पर चोट की है।
व्याख्या विश्वविद्यालय में एक दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया है। उसमें आमंत्रित नेता जी को विश्वविद्यालय द्वारा कानून की डाक्टरेट उपाधि प्रदान की जानी है। अपने दीक्षांत भाषण का समापन करते हुए नेता जी कहते हैं कि मुझे आज इस समारोह में विश्वविद्यालय द्वारा डाक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की जाएगी। साथ ही ये यह भी कहते हैं कि वे स्वयं इस काबिल नहीं है कि उन्हें यह उपाधि प्रदान की जाए लेकिन यह सब मेरे मंत्री बन जाने के कारण हो रहा है। अगर मुझे मंत्री न बनाया जाता तो डाक्टर बनना तो दूर की बात है, मेरे लिए कंपाउंडर बन पाना भी संभव नहीं होता।
इस पंक्ति से जहाँ एक ओर आजकल के नेताओं की शैक्षिक योग्यता तथा क्षमता का पता चलता है, वहीं दूसरी तरफ विश्वविद्यालयों द्वारा निजी स्वार्थ के लिए अयोग्य व्यक्तियों को सम्मानपूर्वक उपाधियाँ प्रदान करने की प्रक्रिया पर भी प्रश्नचिह्न लगता है।
प्रश्न 8. पाठ का अंत 'ओम शांति शांति' 'शांति' से हुआ है। आपके विचार से लेखक ने ऐसा प्रयोग क्यों किया है? इसका कोई व्यंग्यार्थ भी है? लिखिए।
"उत्तर- हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित 'एक दीक्षांत भाषण' नामक व्यंग्य- निबंध का अंत ओम शांतिः शांतिः शांति के साथ हुआ है। लेखक ने ऐसा जान-बूझकर वर्तमान जीवन में व्याप्त विसंगतियों को पूरी तरह उभारने के उद्देश्य से किया है। हमारे वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक जीवन में स्वार्थपरता एवं अनैतिकता अपने परवान पर है। ये स्थितियाँ बहुत ही भयावह और चिंताजनक हैं। इनसे सभी आदर्श तथा मूल्य निःशेष होने को हैं।
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