कविता की परख Class 11th Hindi दिगंत भाग-1 बिहार बोर्ड | रामचंद्र शुक्ल जीवन परिचय | सारांश | प्रश्न उत्तर


कविता की परख - लेखक - रामचंद्र शुक्ल। कविता की परख का सारांश , कविता की परख प्रश्न- उत्तर, रामचंद्र शुक्ल जीवन परिचय । 


लेखक परिचय

जीवन-परिचय - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 में बस्ती जिले के अगोना नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता श्री चन्द्रबली शुक्ल 'राठ' तहसील में सुपरवाइजर कानूनगो के पद पर कार्यरत थे। इन्होंने फारसी, अंग्रेजी तथा संस्कृत का स्वाध्याय करने के साथ-साथ नियमित शिक्षा भी प्राप्त की। 1901 ई. में इन्होंने हाईस्कूल परीक्षा, चित्रकला में विशेष योग्यता के साथ पास की। परन्तु एफ.ए. (इण्टर) का अध्ययन बीच में ही छोड़कर इन्हें मोखतारी सीखने प्रयाग जाना पड़ा। वहाँ से लौटकर मिर्जापुर में चित्रकला के अध्यापक के रूप में काम करने लगे। इन्होंने मिर्जापुर से प्रकाशित होने वाली 'आनन्द कादम्बिनी' नामक पत्रिका के सम्पादन में सहयोग किया। डॉ. श्यामसुन्दर दास ने इनको काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में नियुक्त कराया और उनके अवकाशग्रहण के पश्चात् ही ये हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बने। सन् 1941 ई. में ये हिन्दी की सेवा करते हुए परलोकवासी हो गए।

शुक्ल जी का व्यक्तित्व एक दीप स्तम्भ के समान था, जिन्होंने स्वयं प्रकाशित होने के साथ-साथ अनेक साहित्यकारों का मार्गदर्शन भी किया। एक श्रेष्ठ निबन्धकार और विद्वान समालोचक के रूप में ये आज भी साहित्यकारों के मानदण्ड बने हुए हैं।

साहित्यिक रचनाएँ: शुक्ल जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

(i) निबन्ध - साहित्य : शुक्ल जी ने अपने निबन्धों में आदर्श निबन्ध रचना का स्वरूप प्रस्तुत किया है। इनके निबन्ध मुख्यतया दो प्रकार के हैं-आलोचनात्मक और विचारात्मक। इनके निबन्ध चिन्तामणि प्रथम एवं द्वितीय भाग में संग्रहीत हैं। 'विचारवीथि' में भी इनके निबन्धों का संग्रह उपलब्ध है।

(ii) साहित्य-इतिहास : 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' शुक्ल जी की एक महान देन है जिसमें सर्वप्रथम हिन्दी साहित्य का क्रमबद्ध और खोजपूर्ण इतिहास वर्णित है।

(iii) अनुवाद : शुक्ल जी ने अनेक ग्रन्थों के श्रेष्ठ अनुवाद भी प्रस्तुत किए। विश्वप्रपंच, बुद्धचरित, शशांक, मेगास्थनीज का भारतवर्ष, आदर्श जीवन आदि इनकी कुछ अनूदित कृतियाँ हैं।

(iv) सम्पादन : शुक्ल जी एक श्रेष्ठ सम्पादक थे। जायसी-ग्रन्थावली, तुलसी-ग्रन्थावली, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, हिन्दी शब्द-सागर आदि इनकी सम्पादन योग्यता के प्रमाण हैं।

हिन्दी साहित्य में आचार्य शुक्ल हिन्दी साहित्येतिहासकार के रूप में सर्वाधिक विख्यात हैं। इसके अतिरिक्त एक निबन्धकार और आलोचक के रूप में भी इन्हें विशिष्ट पहचान प्राप्त है।


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                                  सारांश                                  

कविता का उद्देश्य हमारे हृदय पर प्रभाव डालना होता है, जिससे उसके भीतर प्रेम, आनंद, हास्य, करुणा, आश्चर्य इत्यादि अनेक भावों में से किसी का संचार हो। जिस पद्य में इस प्रकार प्रभाव डालने की शक्ति न हो, उसे कविता नहीं कह सकते। ऐसा प्रभाव उत्पन्न करने के लिए कविता पहले कुछ रूप और व्यापार हमारे मन में इस ढंग से खड़ा करती है कि हमें यह प्रतीत होने लगता है कि वे हमारे सामने उपस्थित हैं। जिस मानसिक शक्ति से कवि ऐसी वस्तुओं और व्यापारों की योजना करता है और हम अपने मन में उन्हें धारण करते हैं, वह कल्पना कहलाती है। इस शक्ति के बिना न तो अच्छी कविता ही हो सकती है, न उसका पूरा आनंद ही लिया जा सकता है। सृष्टि में हम देखते हैं कि भिन्न-भिन्न प्रकार की वस्तुओं को देखकर हमारे मन पर भिन्न-भिन्न प्रकार का प्रभाव पड़ता है। किसी सुंदर वस्तु को देखकर हम प्रफुल्ल हो जाते हैं, किसी अद्भुत वस्तु या व्यापार को देखकर आश्चर्यमग्न हो जाते हैं, किसी दुख के दारुण दृश्य को देखकर करुणा से आर्द्र हो जाते हैं। यही बात कविता में भी होती है।

जिस भाव का उदय कवि को पाठक के मन में कराना होता है, उसी भाव को जगाने वाले रूप और व्यापार वह अपने वर्णन द्वारा पाठक के मन में लाता है। यदि सौंदर्य की भावना उत्पन्न करके मन को प्रफुल्ल और आइलादित करना होता है तो कवि किसी सुंदर व्यक्ति अथवा किसी सुंदर और रमणीय स्थल का शब्दों द्वारा चित्रण करता है। सूरदास जी ने श्रीकृष्ण के अंग-प्रत्यंग का जो वर्णन किया है उसे पढ़कर या सुनकर मन सौंदर्य की भावना में लीन हो जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी की गीतावली में चित्रकूट का यह वर्णन कितनी सुंदरता हमारे समक्ष लाता है-

“सोहत स्याम जलद मृदु घोरत पातु-रंगमगे श्रृंगनि ।”
 
Related Questions

1. कविता का क्या उद्देश्य है?
Ans- कविता का उद्देश्य हमारे हृदय पर प्रभाव डालना होता है।
2. किस शक्ति द्वारा पूरा आनंद लिया जा सकता है? Ans कल्पना शक्ति द्वारा

3. कल्पना किसे कहते हैं?
Ans- मानसिक शक्ति द्वारा कवि ऐसी वस्तुओं और व्यापारों की योजना करता है और हम अपने मन में उन्हें धारण करते हैं, उसे कल्पना कहते हैं।

4. सौंदर्य की भावना उत्पन्न करके कवि का मन किस प्रकार का अनुभव करता है?
Ans- प्रफुल्त और आादित।

5. कविता किस शक्ति द्वारा अच्छी हो जाती है?
Ans-  कल्पना शक्ति द्वारा।

6. सूरदास जी द्वारा श्री कृष्ण का वर्णन किस रूप में किया है? 
Ans- अंग-प्रत्यंगों के रूप में।

इसी प्रकार भय का भाव उत्पन्न करने के लिए कवि जो रूप सामने रखेगा वह बहुत ही विकराल होगा। जैसा कुंभकरण का रूप रामचरितमानस में है। राम के वन-गमन पर अयोध्या की दशा का जो वर्णन रामायण में है, उससे किसका हृदय दुख और करुणा का अनुभव न करेगा?

अपने वर्णनों में कवि लोग उपमा आदि का भी सहारा लिया करते हैं। वे, जिस वस्तु के वर्णन का प्रसंग होता है, उस वस्तु के समान कुछ और वस्तुओं का उल्लेख भी किया करते हैं, जैसे-मुख को चंद्र या कमल के समान, नेत्रों को मीन, खंजन, कमल आदि के समान, प्रतापी या तेजस्वी को सूर्य के समान कायर को श्रृंगाल के समान, वीर और पराक्रमी को सिंह के समान प्रायः कहा करते हैं। ऐसा कहने में उनका वास्तविक लक्ष्य यही होता है कि जिस वस्तु का वे वर्णन कर रहे हैं, उसकी सुंदरता, कोमलता, मधुरता या उग्रता, कठोरता, भीषणता, वीरता, कायरता इत्यादि की भावना और तीव्र हो जाए। किसी के मुख की मधुरकांति की भावना उत्पन्न करने के लिए कवि उस मुख के साथ एक और अत्यंत मधुर कांतिवाला दूसरा पदार्थ- चंद्रमा भी रख देता है, जिससे मधुर कांति की भावना और भी बढ़ जाती है। सारांश यह कि उपमा का उद्देश्य भावना को तीव्र करना ही होता है, किसी वस्तु का बोध या परिज्ञान कराना नहीं। बोध या परिज्ञान कराने के लिए भी एक वस्तु को दूसरी वस्तु के समान कह देते हैं। जैसे-जिसने हारमोनियम बाजा न देखा हो उससे कहना, "अजी! वह संदूक के समान होता है।" पर इस प्रकार की समानता उपमा नहीं।
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Related Questions

1. राम के वन गमन पर अयोध्या की दशा का वर्णन कवि ने किसमें किया है।
Ans- रामायण में

2. उपमा का क्या अर्थ है। 
Ans- 'समानता'।

3. उपमा का क्या उद्देश्य नहीं होता है। 
Ans- किसी वस्तु का बोध या परिज्ञान कराना।

4. उपमा का प्रयोग कवि ने कविता में क्यों किया है? Ans- उपमा का प्रयोग इसलिए किया है, कित वस्तु की सुंदरता, कोमलता, दता आदि की भावना में वृद्धि हो जाए।

5. उपया का उद्देश्य क्या है?
Ans- भावना को तीव्र करना।


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कोई उपमा कैसी है, इसके निर्णय के लिए पहले तो यह देखा जाता है कि कवि किस वस्तु का वास्तव में वर्णन कर रहा है और उस वर्णन द्वारा उस वस्तु के संबंध में कैसी भावना उत्पन्न करना चाहता है। उसके पीछे इसका विचार होता है कि उपमा के लिए जो वस्तु लाई गई है, उससे वही भावना उत्पन्न होती है और बहुत अधिक परिमाण में, तो उपमा अच्छी कही जाती है। केवल आकार, छोटाई बढ़ाई आदि में ही समानता देखकर अच्छे कवि उपमा नहीं दिया करते। वे प्रभाव की समानता देखते हैं, जैसे यदि कोई आकार और बड़ाई को ही ध्यान में रखकर आँख की उपमा बादाम या आम की फाँक से दे तो उसकी उपमा मद्दी होगी क्योंकि उक्त वस्तुओं से सौंदर्य की भावना वैसी नहीं जागती। कवि लोग आँख की उपमा के लिए कभी कमल-दल लाते हैं, जिससे रंग की मनोहरता, प्रफुल्लता, कोमलता आदि की भावना एक साथ उत्पन्न होती है, कभी मीन या खंजन लाते हैं, जिससे स्वच्छता और चंचलता प्रकट होती

है, उठे हुए बादल के टुकड़े के ऊपर होते हुए पूर्ण चंद्रमा का दृश्य कितना रमणीय होता है। यदि कोई उसे देखकर कहे कि 'मानो ऊँट की पीठ पर घंटा रखा है' तो यह उक्ति रमणीयता की भावना में कुछ भी योग न देगी, थोड़ा-बहुत कुतूहल चाहे भले ही उत्पन्न कर दे।
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Related Questions

1 उपमा को कैसे पहचाना जाता है?
Ans- वस्तु का वास्तव में वर्णन करके।

 2. उपमा अच्छी कब कही जाती है?
Ans- जो वस्तु उपमा के लिए लाई गई है, उससे यही भावना उत्पन्न हो।

3. उपमा भद्दी कब होगी?
 Ans- जब आकार व बड़ाई को ध्यान रखकर आँख की उपमा बादाम व आम की फांक से दें

4. कमल-दल व मीन या खंजन लाने से क्या प्रकट होता
है?
Ans-  स्वच्छता और चंचलता।
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कवि लोग प्रेम, शोक, करुणा, आश्चर्य, भय, उत्साह इत्यादि भावों को पात्रों के मुँह से प्रायः प्रकट कराया करते हैं। वाणी के द्वारा मनुष्य के हृदय के भावों की पूर्ण रूप से व्यंजना हो सकती है। मनुष्य के मुख से प्रेम में कैसे वचन निकलते हैं, क्रोध में कैसे, शोक में कैसे, आश्चर्य में कैसे, उत्साह में कैसे इसका अनुभव सच्चे कवियों को पूरा-पूरा होता है। शोक के वेग में मनुष्य थोड़ी देर के लिए बुद्धि और विवेक भूल जाता है, उचित-अनुचित का ध्यान छोड़ देता है। इसी बात को दृष्टि में रखकर तुलसीदास जी ने लक्ष्मण के शक्ति लगने पर राम के मुँह से कहलाया है कि-

"जी जनते बन बंधु-बिछोहू,

जो काव्य के सिद्धांतों को नहीं जानते वे कहेंगे कि इस वचन से राम के चरित्र में दूषण आ गया। पर जो सहृदय और मर्मज्ञ हैं, वे इसे शोक की उक्ति मात्र समझेंगे।

पिता वचन मनते नहि ओहू"

पात्र के मुख से भाव की व्यंजना कराने में कवि में बड़ी निपुणता अपेक्षित होती है। पहले तो उसे मनुष्य की सामान्य प्रकृति का ध्यान रखना पड़ता है, फिर पात्र के विशेष ढंग के स्वभाव का। इसी से एक ही भाव की व्यंजना अनंत प्रकार से हो सकती है। रामचरितमानस में देखिए कि राम जब कभी अपना क्रोध प्रकट करते हैं, तब किस संयम और गंभीरता के साथ, और लक्ष्मण किस अधीरता और उग्रता के साथ। यही बात उत्साह आदि और भावों के संबंध में भी समझनी चाहिए।

अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1. कविता के क्या उद्देश्य हैं?

उत्तर- कविता का मुख्य उद्देश्य हमारे हृदय पर प्रभाव डालना होता है, जिससे उसके भीतर प्रेम, हास्य, आनंद, करुणा, आश्चर्य जैसे अनेक भावों में से किसी का संचार हो।

प्रश्न 2. कल्पना किसे कहते हैं? एक कवि के लिए कल्पना का क्या महत्त्व है?

उत्तर- कविता हमारे हृदय पर गहरा प्रभाव डालती है, जिसके परिणामस्वरूप हमारे हृदय आनंद, प्रेम, करुणा जैसे भावों का संचार होता है। यह प्रभाव उत्पन्न करने के लिए कविता पहले कुछ रूपों और व्यापारों को हमारे मन में इस प्रकार खड़ा करती है कि हमें अपने सामने उपस्थित होने का आभास होता है। जिस मानसिक शक्ति से कवि ऐसी वस्तुओं तथा व्यापारों की योजना करता है और हम उसे अपने मन में धारण करते हैं, उसे ही कल्पना कहते हैं। अपनी कल्पना से कवि कविता को इतने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है कि वह हमारे सम्मुख ही उपस्थित होने का आभास कराती है, इसलिए कल्पना कविता के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है।

प्रश्न 3. उपमा क्या है? कविता में उपमा का प्रयोग क्यों किया जाता है? पाठ के आधार पर उत्तर दें। उत्तर- जब किसी वस्तु के रंग, रूप, गुण, आकार, दोष आदि का प्रभावी वर्णन करने के लिए उससे बेहतर रंग, रूप, आकार, दोष वाली वस्तु से उसकी तुलना की जाती है, तो इस प्रकार की जाने वाली तुलना ही उपमा कहलाती है। गुण,

उपमा का प्रयोग वर्णित वस्तु की सुंदरता, मधुरता, कोमलता, उग्रता, भीषणता, कठोरता, वीरता, कायरता आदि की भावना में वृद्धि करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 4. आँख के लिए मीन, खंजन और कमल की उपमाएँ दी जाती हैं। इनमें क्या-क्या समानताएँ हैं? उत्तर- आँख के लिए कवियों द्वारा अक्सर मीन, खंजन और कमल जैसी उपमाएँ दी जाती हैं। इनमें परस्पर लघुता, मोहकता,सुंदरता, कोमलता, चंचलता, प्रभावोत्पादकता आदि की समानताएँ होती हैं।

 प्रश्न 5. 'मानो ऊँट की पीठ पर घंटा रखा है-इस उक्ति के द्वारा लेखक ने क्या कहना चाहा है?

उत्तर- मानो ऊँट की पीठ पर घंटा रखा है के द्वारा लेखक ने यह कहना चाहा है कि आकार को देखकर किसी भी वस्तु की उपमा देना उचित नहीं है। इस तरह की उपमा कुतूहल तो पैदा कर सकती है लेकिन रमणीयता की भावना में तनिक भी योगदान नहीं देती है। बादल के टुकड़े पर रमणीय दिखने वाली चाँद की उपभा भी रमणीय भाव बढ़ाने वाली उक्ति से ही दी जानी चाहिए।

 प्रश्न 6. "जी जनते बन बंधु बिछोहू, पिता वचन मनते नहि ओहू" इस उदाहरण के द्वारा लेखक ने क्या कहना चाहा है?

उत्तर- जौ जनते नहि ओहू" उदाहरण द्वारा लेखक ने यह कहना चाहा है कि शोक की प्रबलता में मनुष्य का विवेक और बुद्धि पर नियंत्रण नहीं रह जाता है। वह जो कुछ कह रहा है, वह उचित है अथवा अनुचित, इसका जरा भी ध्यान नहीं रह जाता है। लक्ष्मण की मूर्छित अवस्था देखकर राम को शोक होता है और उनके मुँह से यह सब निकल पड़ता है अर्थात् हृदय के भाव प्रेम, शोक, करुणा, उत्साह आदि वाणी से ही अभिव्यक्ति जाते हैं।

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