Bihar Board Class 11th Hindi Chapter - 01 पूस की रात कहानी , प्रेमचन्द का जीवन परिचय , सारांश


बिहार बोर्ड class 11th हिंदी दिगंत भाग-1 पूस की रात कहानी- लेखक - प्रेमचन्द (पूस की रात कहानी का क्या सारांश है?,प्रेमचंद जीवन परिचय)



➡️ लेखक परिचय 

जन्म- 1880 
निधन - 1936
जन्म स्थान - वाराणसी जिले के लमही गांव
बचपन का नाम - धनपतराय (इनके चाचा इन्हें प्यार से नवाब कहते थे ,
इनके पिता अजायब लाल डाकखाने में एक लिपिक थे ,जब ये 7 वर्ष के थे तभी इनकी माता का देहांत हो गया था प्रारंभिक शिक्षा बनारस में हुई , प्रेमचंद गणित में बहुत कमजोर थे इसीलिए इंटर में दो बार फेल हुए बाद में इन्होंने B.A की परीक्षा पास की

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साहित्यिक रचनाएँ : -  प्रेमचंद ने नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएं लिखी हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ मानसरोवर (आठ भाग) व गुप्तधन (दो भाग) नामक कहानी संग्रह में संकलित हैं। निर्मला, सेवासदन, गोदान, रंगभूमि, कर्मभूमि, प्रेमाश्रय और गबन इनके प्रमुख उपन्यास हैं । कर्बला, संग्राम, प्रेमी का वेदी आदि नाटक हैं साहित्यिक और राजनीतिक विषयों पर भी प्रेमचंद जी ने अनेक निबंध लिखे हैं। 'विधि-प्रसंग', 'कुछ-विचार' उनके प्रमुख निबंध संग्रह हैं। प्रेमचंद ने हंस, माधुरी, मर्यादा, जागरण जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी किया।

साहित्यिक विशेषताएँ हिंदी में प्रेमचंद की सबसे पहली कहानी 1915 ई. में सरस्वती नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।


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पूस की रात कहानी
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Scene-01
हल्कू ने आकर स्त्री से कहा- सहना आया है, लाओ जो रुपए रखे हैं, उसे दे दूँ, किसी तरह गला तो छूटे। मुन्नी झाडू लगा रही थी। पीछे फिरकर बोली- तीन ही तो रुपए हैं, दे दोगे तो कम्मल कहाँ से आयेगा माय-म की रात हार में कैसे कटेगी। उससे कह दो, फसल पर रुपए दे देंगे। अभी नहीं।

हल्कू एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ा रहा। पूस सिर पर आ गया, कम्मल के बिना हार में रात को वह किसी तरह नहीं जा सकता। मगर सहना मानेगा नहीं, पुड़कियाँ जमावेगा, गालियाँ देगा। बला से जाड़ों मरेंगे, बला सिर से टल जाएगी। यह सोचता हुआ वह अपना भारी भरकम डील लिए हुए (जो उसके नाम को झूठ सिद्ध करता था) स्त्री के समीप आ गया और खुशामद करके बोला- ला दे दे, गला तो छूटे। कम्मल के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूँगा।

मुन्नी उसके पास से दूर हट गई और आँखें तरेरती हुई बोली- कर चुके दूसरा उपाय जरा सुनूँ, कौन उपाय करोगे? कोई खैरात दे देगा कम्मल? न जाने कितनी बाकी है जो किसी तरह चुकने ही नहीं आती। मैं कहती हूँ, तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते? भर-भर कर काम करो, उपज हो तो बाकी दे दो, चलो छुट्टी हुई। बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जनम हुआ है। पेट के लिए मजूरी करो। ऐसी खेती से बाज आए। मैं रुपए न दूंगी-न दूंगी।

हल्कू उदास होकर बोला तो क्या गाली खाऊँ।
मुन्नी ने तड़पकर कहा-गाली क्यों देगा, क्या उसका राज है?
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Related Questions

1. हल्कू ने मुन्नी से क्या कहा?
Ans- सहना आया है, लाओ जो रुपये रखे हैं, उसे दे दूँ, किसी तरह गला तो छूटे।

2. मुन्नी क्या कर रही थी?
Ans- मुन्नी झाडू लगा रही थी।

3. हल्कू के पास सहना को देने के लिए कितने रुपये थे?
Ans- तीन 

4. हल्दू किसके लिए दूसरा उपाय सोचता है? 
 Ans-कम्मल के लिए।

5. मुन्नी ने हल्कू से तड़पकर क्या कहा? 
Ans- "गाली क्यों देगा, क्या उसका राज है?"
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Scene-02
मगर यह कहने के साथ उसकी तनी हुई भौहें ढीली पड़ गई। हल्कू के उस वाक्य में जो कठोर सत्य था, वह मानो एक भीषण जंतु की भाँति उसे घूर रहा था।

उसने जाकर आले पर से रुपए निकाले और लाकर हल्कू के हाथ पर रख दिए। फिर बोली- तुम छोड़ दो अबकी से खेती मजूरी में सुख से एक रोटी खाने को तो मिलेगी। किसी की धौंस तो न रहेगी। अच्छी खेती है। मजूरी करके  लाओ, वह उसी में झोंक दो, उस पर से धौंस ।

हल्कू ने रुपए लिए और इस तरह बाहर चला मानो अपना हृदय निकालकर देने जा रहा हो। उसने मजूरी से एक-एक पैसा काट-छपटकर तीन रुपए कम्मल के लिए जमा किए थे। वह आज निकले जा रहे थे। एक-एक पग के साथ उसका मस्तक अपनी दीनता के भार से दबा जा रहा था।

पूस की अँधेरी रात! आकाश पर तारे ठिठुरते हुए मालूम होते थे। हल्कू अपने खेत के किनारे ऊख के पत्तों की एक छतरी के नीचे बाँस के खटोले पर अपनी पुरानी गाढ़े की चादर ओढ़े काँप रहा था। खाट के नीचे उसका संगी कुत्ता जबरा पेट में मुँह डाले सर्दी से कूं-कूं कर रहा था। दो में से एक को भी नींद न आती थी।

हल्कू ने पुटनियों को गर्दन में चिपकाते हुए कहा क्यों जबरा, जाड़ा लगता है? कहता तो था, घर में पुआल पर लेटा रहते, तो यहाँ क्या लेने आए थे। अब खाओ ठंड, मैं क्या करूँ। जानते थे, मैं यहाँ हलवा-पूरी खाने आ रहा हूँ, दौड़े-दौड़े आगे-आगे चले आए। अब रोओ नानी के नाम को।।

जबरा ने पड़े-पड़े दुम हिलाई और अपनी कूं-कूं को दीर्घ बनाता हुआ एक बार जम्हाई लेकर चुप हो गया। उसकी श्वान बुद्धि ने शायद ताड़ लिया, स्वामी को मेरी कूं-कूं से नींद नहीं आ रही है।
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1 मुन्नी ने रुपये कहाँ से निकाले ? 
Ans- आले पर से

2. हल्कू ने रुपये किसके लिए जमा किये थे? 
Ans- कम्मल के लिए।

3. जबरा कौन था 
Ans- हल्कू कुत्ता।

4.हल्कू ने जबरा से क्या कहा। ?
Ans- क्यों जबरा, जाड़ा लगता है
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Scene-03 
हाय निकालकर जबरा की ठंडी पीठ सहलाते हुए कहा कल से मत आना मेरे साथ, नहीं तो ठंडे हो जाओगे। यह रोड पहुआ न जाने कहाँ से बरफ लिए आ रही है। उर्दू तो फिर एक चिलम भरूँ। किसी तरह रात

तो कटे! आठ चिलम तो पी चुका यह खेती का मज़ा है। और एक-एक भागवान ऐसे पड़े हैं, जिनके पास जाड़ा जाए तो गर्मी से घबराकर भागे मोटे-मोटे गद्दे, लिहाफ-कम्मल मजाल है कि जाड़े की गुजर हो जाए तकदीर की खूबी है मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटै

हल्कू उठा और गड्ढे में से जरा-सी आग निकालकर चिलम भरी जबरा भी उठ बैठा। हल्कू ने चिलम पीते हुए कहा, पिएगा चिलम, जाड़ा तो क्या जाता है, हाँ, जरा मन बहल जाता है।

जबरा ने उसके मुँह की ओर प्रेम से छलकती हुई आँखों से देखा। हल्कू आज और जाड़ा खा ले। कल से मैं यहाँ पुआल बिछा दूंगा। उसी में घुसकर बैठना, तब जाड़ा न लगेगा। जबरा ने अगले पंजे उसकी घुटनियों पर रख दिए और उसके मुँह के पास अपना मुँह ले गया। हल्कू को उसकी गर्म साँस लगी।

चिलम पीकर हल्कू फिर लेटा और निश्चय करके लेटा कि चाहे जो कुछ हो अबकी सो जाऊँगा, पर एक ही क्षण में उसके हृदय में कंपन होने लगा। कभी इस करवट लेटता, कभी उस करवट पर जाड़ा किसी पिशाच की भौति उसकी छाती को दबाए हुए था।

जब किसी तरह से न रहा गया तो उसने जबरा को धीरे से उठाया और उसके सिर को थपथपाकर उसे अपनी सुला दिया। कुत्ते की देह से जाने कैसी दुर्गंध आ रही थी, पर वह उसे अपनी गोद से चिपटाए हुए ऐसे सुख गोद में का अनुभव कर रहा था, जो इधर महीनों से उसे न मिला था।

Related Questions
1. हल्कू ने हाथ निकालकर जबरा की ठंडी पीठ सहलाते हुए क्या कहा?
Ans- यह कहा कि कल से मत आना मेरे साथ नहीं तो ठंडे हो जाओगे

3. जबरा ने प्रेम भरी आँखों से किसे देखा ?
Ans-  हल्कू को।

4. हल्कू क्या पीकर लेटा?
Ans- चिलम पीकर

2. हल्कू ने किसमें से आग निकालकर वितम भरी ?
 Ans- गड्ढे में से आग निकालकर ।
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जबरा शायद समझ रहा था कि स्वर्ग यही है, और हल्कू की पवित्र आत्मा में तो उस कुत्ते के प्रति घृणा की गंध तक न थी। अपने किसी अभिन्न मित्र या भाई को भी वह इतनी ही तत्परता से गले लगाता। वह अपनी दीनता से आहत न था, जिसने आज उसे इस दशा में पहुँचा दिया नहीं, इस अनोखी मैत्री ने जैसे उसकी आत्मा के सब द्वार खोल दिए थे और उसका एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था। सहसा जबरा ने किसी जानवर की आहट पाई। इस विशेष आत्मीयता ने उसमें एक नई स्फूर्ति पैदा कर दी थी,

जो हवा के ठंडे झोंकों को तुच्छ समझती थी। वह झपटकर उठा और छतरी के बाहर आकर भूँकने लगा। हल्कू ने उसे कई बार चुमकारकर बुलाया पर वह उसके पास न आया। हार में चारों तरफ दौड़-दौड़कर भूँकता रहा। एक क्षण के लिए आ भी जाता तो तुरंत ही फिर दौड़ता। कर्त्तव्य उसके हृदय में अरमान की भाँति उछल रहा था। एक घंटा और गुजर गया। रात ने शीत को हवा से घघकाना शुरू किया। हल्कू उठ बैठा और दोनों घुटनों को छाती से मिलाकर सिर को उसमें छिपा लिया। फिर भी ठंड कम न हुई। ऐसा जान पड़ता था, सारा रक्त जम गया है,

धमनियों में रक्त की जगह हिम यह रहा है। उसने झुककर आकाश की ओर देखा, अभी कितनी रात बाकी है। सप्तर्षि अभी आकाश में आये भी नहीं चढ़े। ऊपर आ जाएँगे तब कहीं सवेरा होगा। अभी पहर भर से ऊपर रात है।

1. हल्कू की पवित्र आत्मा में किसके प्रति घृणा की गंध नहीं थी?
Ans- कुत्ते (जरा) के प्रति

2. किसका एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था।  Ans- हल्कू


5. धमनियों में रक्त की जगह क्या वह रहा था? 
Ans- हिम बह रहा था।

4. हल्कू ने झुककर किसकी ओर देखा? 
Ans- आकाश की ओर।
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Scene -04
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हल्के खेत से कोई एक गोली के टप्पे पर आमों का बाग था पतझड़ शुरू हो गई थी। बाग में पत्तियों का ढेर लगा हुआ था। हल्कू ने सोचा, चलकर पत्तियाँ बटोर्स और उन्हें जलाकर खूब तायूँ रात को कोई मुझे पत्तियाँ बटोरते देखे, तो समझे कोई भूत है। कौन जाने कोई जानवर ही छिपा बैठा हो, मगर अब तो बैठे नहीं रहा जाता। उसने पास के अरहर के खेत में जाकर कई पौधे उखाड़ लिए और उनका एक झाडू बनाकर हार्य में सुलगता हुआ उपला लिए बगीचे की तरफ चला जबरा ने उसे आते देखा तो पास आया और दुम हिलाने लगा।

हल्कू ने कहा अब तो नहीं रहा जाता जबरू चलो, बगीचे में पत्तियाँ बटोरकर तापें टाँठे हो जाएँगे तो फिर आकर सोएँगे। अभी तो रात बहुत है। -

जबरा ने कूँ-कूँ करके सहमति प्रकट की और आगे-आगे बगीचे की ओर चला। बगीचे में घुप अँधेरा हुआ था और अंधकार में निर्दय पवन पत्तियों को कुचलता हुआ चला जाता था। वृक्षों से ओस की बूँदें टप टप नीचे टपक रही थीं।

एकाएक एक झोंका मेंहदी के फूलों की खुशबू लिए हुए आया। हल्कू ने कहा कैसी अच्छी महक आई जबरू तुम्हारी नाक में भी सुगंध आ रही है? -

जबरा को कहीं जमीन पर एक हड्डी पड़ी मिल गई थी। उसे चिचोड़ रहा था। हल्कू ने आग जमीन पर रख दी और पत्तियाँ बटोरने लगा जरा देर में मत्तियों का एक ढेर लग गया। हाय ठिठुरे जाते थे। नंगे पाँव गले जाते थे और वह पत्तियों का पहाड़ खड़ा कर रहा था। इसी अलाव में वह ठंड को जलाकर भस्म कर देगा।
Related Questions

1. बाग में किसका ढेर लगा हुआ था?
Ans- पत्तियों का।

4. जबरा को जमीन पर क्या मिल गया था?
Ans- एक हड्डी

2. हल्कू ने किस खेत में जाकर पौधे उखाड़ लिए थे?  
Ans अरहर के खेत में जाकर।

5. हल्कू ने किसका ढेर लगा दिया था?
Ans-पत्तियों का ढेर

3. ओस की बूँदें किससे टपक रही थीं? 
Ans- वृक्षों से ।



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Scene -05
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थोड़ी देर में अलाव जल उठा। उसकी लौ ऊपरवाले वृक्ष की पत्तियों को छू-छूकर भागने लगीं। उस अस्थिर प्रकाश में बगीचे के विशाल वृक्ष ऐसे मालूम होते थे, मानो उस अथाह अंधकार को अपने सिरों पर सँभाले हुए हों। अंधकार के उस अनंत सागर में यह प्रकाश एक नौका के समान हिलता, मचलता हुआ जान पड़ता था।

हल्कू अलाव के सामने बैठा आग ताप रहा था। एक क्षण में उसने दोहर उतारकर बगल में दबा ली और दोनों

पाँव फैला दिए, मानो ठंड को ललकार रहा हो, तेरे जी में जो आए सो कर ठंड की असीम शक्ति पर विजय पाकर वह विजय-गर्व को हृदय में छिपा न सकता था।

उसने जबरा से कहा- क्यों जब्बर, अब ठंड नहीं लग रही है? जबरा ने कूँ-कूँ करके मानो कहा-अब क्या ठंड लगती ही रहेगी!

'पहले से यह उपाय न सूझी, नहीं इतनी ठंड न खाते।' जबरा ने पूँछ हिलाई।

'अच्छा आओ इस अलाव को कूदकर पार करें। देखें, कौन निकल जाता है। अगर जल गए बच्चा, तो मैं दवा न करूँगा।'

जबरा ने उस अग्निराशि की ओर कातर नेत्रों से देखा। 'मुन्नी से कल न कह देना नहीं तो लड़ाई करेगी।'

यह कहता हुआ वह उछला और अलाव के ऊपर से साफ निकल गया। पैरों में जरा लपट लगी; पर वह कोई बात न थी। जबरा आग के गिर्द में घूमकर उसके पास आ खड़ा हुआ। हल्कू ने कहा- चलो चलो, इसकी सही नहीं। ऊपर से कूदकर आओ। वह फिर कूदा और अलाव के इस पार आ गया।

Related Questions
1. हल्कू किसके सामने बैठा आग ताप रहा था? Ans- अलाव के सामने बैठा।

2. जयरा ने करके हल्कू से क्या कहा? 
Ans- यह कहा कि अब क्या ठंड लगती ही रहेगी।

3. जबरा ने किसकी ओर कातर नेत्रों से देखा? Ans- अग्निराशि की ओर।

4. आग के पास घूमकर कौन खड़ा हो गया?
Ans - जबरा ।
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पत्तियाँ जल चुकी थीं। बगीचे में फिर अँधेरा छाया था। राख के नीचे कुछ-कुछ आग बाकी थी, जो हवा का झोंका आ जाने पर जरा जाग उठती थी; पर एक क्षण में फिर आँखें बंद कर लेती थी। हल्कू ने फिर चादर ओढ़ ली और गर्म राख के पास बैठा हुआ एक गीत गुनगुनाने लगा। उसके बदन में गर्मी आ गई थी पर ज्यों-ज्यों शीत बढ़ती जाती थी, उसे आलस्य दबाए लेते था।

जबरा जोर से भूँककर खेत की ओर भागा। हल्कू को ऐसा मालूम हुआ कि जानवरों का एक झुंड उसके खेत में आया है। शायद नीलगायों का झुंड था। उनके कूदने-दौड़ने की आवाजें साफ कान में आ रही थीं। फिर ऐसा मालूम हुआ कि वह खेत में चर रही हैं। उनके चबाने की आवाज चर चर सुनाई देने लगी? उसने दिल में कहा- नहीं, जबरा के होते कोई जानवर खेत में नहीं आ सकता। नोच ही डाले। मुझे भ्रम हो रहा

है। कहाँ अब तो कुछ नहीं सुनाई देता। मुझे भी कैसा धोखा हुआ।

उसने जोर से आवाज लगाई जबरा, जबरा । जबरा भूँकता रहा। उसके पास न आया।

फिर खेत के चरे जाने की आहट मिली। अब वह अपने को धोखा न दे सका। उसे अपनी जगह से हिलना जहर लग रहा था। कैसा दंदाया हुआ बैठा था। इस जाड़े पाले में खेत में जाना, जानवरों के पीछे दौड़ना असूझ जान पड़ा। वह अपनी जगह से न हिला।

उसने जोर से आवाज लगाई-लिहो-लिहो। लिहो!! जबरा भूँक उठा। जानवर खेत चर रहे थे। फसल तैयार  कैसी अच्छी खेती थी; पर ये दुष्ट जानवर उसका सर्वनाश किए डालते हैं।

Related Questions
1. हल्कू किसके पास बैठकर गीत गुनगुनाने लगता है?
Ans- गर्म राख के पास बैठकर ।

 2. जबरा जोर से भूँककर किसकी ओर भागा?
Ans- खेत की ओर।
5. खेत कोन चर रहा था?
Ans- जानवर (नीलगायों ।)

3. हल्कू के खेत में किसका झुंड गा?
Ans- नीलगायों
4. हल्कू ने कैसी आवाज लगाई ?
Ans- लिहो-लिहो! लिहो!! 
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हल्कू पक्का इरादा करके उठा और दो-तीन कदम चला, पर एकाएक हवा का ऐसा ठंडा, चुभनेवाला, बिच्छू के डंक का-सा झोंका लगा कि वह फिर बुझते हुए अलाव के पास आ बैठा और राख को कुरेदकर अपनी ठंडी देह को गमने लगा।

जबरा अपना गला फाड़े डालता था, नीलगायें खेत का सफाया किए डालती थीं और हल्कू गर्म राख के पास शांत बैठा हुआ था। अकर्मण्यता ने रस्सियों की भाँति उसे चारों तरफ से जकड़ रखा था।

उसी राख के पास गर्म जमीन पर वह चादर ओढ़कर सो गया। सवेरे जब उसकी नींद खुली तब चारों तरफ धूप फैल गई थी और मुन्नी कह रही थी क्या आज सोते ही

रहोगे? तुम यहाँ आकर रम गए और उधर सारा खेत चौपट हो गया। हल्कू ने उठकर कहा-क्या तू खेत से होकर आ रही है?

मुन्नी बोली- हाँ, सारे खेत का सत्यानाश हो गया। भला ऐसा भी कोई सोता है! तुम्हारे मड़ैया डालने से क्या हुआ।

हल्कू ने बहाना किया-मैं मरते-मरते बचा, तुझे अपने खेत की पड़ी है। पेट में ऐसा दरद हुआ कि मैं ही जानता हूँ।

दोनों फिर खेत की डाँड़ पर आए देखा, सारा खेत रौंदा पड़ा हुआ है, और जबरा मड़ैया के नीचे चित लेटा है। मानो प्राण ही न हों। दोनों खेत की दशा देख रहे थे। मुन्नी के मुख पर उदासी छाई हुई पर हल्कू प्रसन्न था ।

मुन्नी ने चिंतित होकर कहा-अब मजूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी। हल्कू ने प्रसन्न मुख से कहा- रात की ठंड में यहाँ सोना तो न पड़ेगा।
Related Questions

5. मुन्नी ने हल्कू से चिंतित होकर क्या कहा? अब मजूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी।

6. हल्कू ने प्रसन्न मुख से क्या कहा? 
Ans-उसने कहा कि "रात की ठंड में यहाँ सोना तो न पड़ेगा "।

4. मुन्नी के मुख पर क्या थी?
Ans-  उदासी।

3. जबरा किसके नीचे चित लेटा था? 
Ans- मईया के नीचे (झोंपड़ी)।

2. हल्कू किसके पास सो गया था? 
Ans- गर्म राख के पास।

1. अकर्मण्यता ने हल्कू को किस प्रकार जकड़ रखा था?
Ans- रस्सी की भाँति ।
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