बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर - लेखक- कुमार गंधर्व
Bihar board Class 11th Hindi Chapter -04 Bejor Gayika Lata Mangeshkar :- नमस्कार दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम लोग बिहार बोर्ड के कक्षा ग्यारहवीं के हिंदी का एक महत्वपूर्ण चैप्टर बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर का संपूर्ण अध्ययन करने वाले हैं, जिसके अंतर्गत निम्नलिखित टॉपिक है।
- बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर लेखक परिचय
- बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर सारांश
- बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर क्वेश्चन आंसर
1.जन्म - 8 अप्रैल 1924
2.जन्म स्थान- कर्नाटक के बेलगांव जिला अंतर्गत सुलेभावी ग्राम में हुआ था
3. मूल नाम - शिवपुत्र कोमकली
4. जब से श्री गुरुकुल स्वामी ने उन्हें देवगायक गंधर्व का अवतार बताया था तब से वे कुमार गंधर्व के नाम से ही प्रसिद्ध हो गए
5. पिता का नाम - सिद्धरमैय्या कोमकली (अच्छे गायक)
6. इन्होंने एक 11 वर्षों तक संगीत की शिक्षा प्राप्त की
7. 1947 से 1952 तक वे बुरी तरह बीमार रहे|
8.निधन- 1992
साहित्यिक रचनाएँ: 'अनूप राग विलास' कुमार गंधर्व की सर्वप्रथम रचना है। इसके अतिरिक्त उनके अनेक लेख, निबंध और टिप्पणियाँ, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में यत्र-तत्र बिखरी हैं और कई म्यूजिक कंपनियों ने उनके गाने के रिकार्ड तथा कैसेट भी जारी किये हैं।
पुरस्कार : वे भारत सरकार की संगीत नाटक अकादमी के सदस्य तथा 'भारत भवन' भोपाल के स्थायी सदस्य थे। उन्हें राष्ट्रपति ने 'पद्म भूषण' और विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने डी. लिट् की उपाधि प्रदान कर सम्मानित-विभूषित किया था। इस प्रकार भारतीय संगीत संसार में कुमार गंधर्व एक आदरणीय एवं अविस्मरणीय व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध हैं।
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बेजोड़ गायिका : लता मंगेशकर
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बरसों पहले की बात है। मैं बीमार था। उस बीमारी में एक दिन मैंने सहज ही रेडियो लगाया और अचानक एक अद्वितीय स्वर मेरे कानों में पड़ा। स्वर सुनते ही मैंने अनुभव किया कि यह स्वर कुछ विशेष है, रोज का नहीं। यह स्वर सीधे मेरे कलेजे से जा भिड़ा। मैं तो हैरान हो गया। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि यह स्वर किसका है। मैं तन्मयता से सुनता ही रहा। गाना समाप्त होते ही गायिका का नाम घोषित किया गया-लता मंगेशकर नाम सुनते ही मैं चकित हो गया। मन-ही-मन एक संगति पाने का भी अनुभव हुआ। सुप्रसिद्ध गायक दीनानाथ मंगेशकर की अजब गायकी एक दूसरा स्वरूप लिए उन्हीं की बेटी की कोमल आवाज में सुनने का अनुभव हुआ।
मुझे लगता है 'बरसात' के पहले के किसी चित्रपट का वह कोई गाना था। तब से लता निरंतर गाती चली आ रही है और मैं भी उसका गाना सुनता आ रहा हूँ। लता के पहले सुप्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ का चित्रपट संगीत में अपना जमाना था। परंतु उसी क्षेत्र में बाद में आई हुई लता उससे कहीं आगे निकल गई।
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Related Questions
1. लेखक ने स्वर सुनते ही क्या अनुभव किया?
Ans- “स्वर कुछ विशेष है, रोज का नहीं।"
2. दीनानाथ मंगेशकर की बेटी का नाम क्या था?
Ans- लता मंगेशकर ।
4. लेखक गाने को किस तरह से सुनता रहा?
Ans- तन्मयता से ।
3. गाना समाप्त होते ही किस गायिका का नाम पोषित किया गया?
Ans- लता मंगेशकर का।
5. लता मंगेशकर किस गायिका से आगे निकल गई? Ans- नूरजहाँ से।
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कला के क्षेत्र में ऐसे चमत्कार कभी-कभी दीख पड़ते हैं। जैसे प्रसिद्ध सितारिए विलायत खाँ अपने सितारवादक पिता की तुलना में बहुत ही आगे चले गए मेरा स्पष्ट मत है कि भारतीय गायिकाओं में लता के जोड़ की गायिका हुई ही नहीं। लता के कारण चित्रपट संगीत को विलक्षण लोकप्रियता प्राप्त हुई है, यही नहीं लोगों का शास्त्रीय संगीत की ओर देखने का दृष्टिकोण भी एकदम बदला है। छोटी बात कहूँगा। पहले भी घर-घर बच्चे गाया करते थे पर उस गाने में और आजकल घरों में सुनाई देने वाले बच्चों के गाने में बड़ा अंतर हो गया है। आजकल के नन्हे-मुन्ने भी स्वर में गुनगुनाते हैं। क्या लता इस जादू का कारण नहीं है? कोकिला का स्वर निरंतर कानों में पड़ने लगे तो कोई भी सुनने वाला उसका अनुकरण करने का प्रयत्न करेगा। यह स्वाभाविक ही है। चित्रपट संगीत के कारण सुंदर स्वर मालिकाएँ। लोगों के कानों पर पड़ रही हैं। संगीत के विविध प्रकारों से उनका परिचय हो रहा है। उनका स्वर ज्ञान बढ़ रहा है। सुरीलापन क्या है, इसकी समझ भी उन्हें होती जा रही है। तरह-तरह की लय के भी प्रकार उन्हें सुनाई पड़ने लगे हैं और आकारयुक्त लय के साथ उनकी जान-पहचान होती जा रही है। साधारण प्रकार के लोगों को भी उसकी सूक्ष्मता समझ में आने लगी है। इन सबका श्रेय लता को ही है। इस प्रकार उसने नई पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है और सामान्य मनुष्य में संगीत विषयक अभिरुचि पैदा करने में बड़ा हाथ बँटाया है। संगीत की लोकप्रियता, उसका प्रसार और अभिरुचि के विकास का श्रेय लता को ही देना पड़ेगा।
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Related Questions
1. कला के क्षेत्र में कभी-कभी कैसे चमत्कार दिखाई पड़ते हैं?
Ans- प्रसिद्ध सितारिए विलायत खाँ का अपने पिता की तुलना में आगे निकल जाने जैसे।
2. चित्रपट संगीत को किसके कारण विलक्षण लोकप्रियता प्राप्त हुई?
Ans- लता मंगेशकर के कारण।
3. लता मंगेशकर ने कौन सी पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है?
Ans- नई पीढ़ी के संगीत को।
4. संगीत में लोकप्रियता, प्रसार व अभिरुचि के विकास का श्रेय किसे जाता है?
Ans- लता मंगेशकर को।
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सामान्य श्रोता को अगर आज लता की ध्वनिमुद्रिका और शास्त्रीय गायकी की ध्वनिमुद्रिका सुनाई जाए तो वह लता की ध्वनिमुद्रिका ही पसंद करेगा। गाना कौन-से राग में गाया गया और ताल कौन-सा था, यह शास्त्रीय ब्यौरा इस आदमी को सहसा मालूम नहीं रहता। उसे इससे कोई मतलब नहीं कि राग मालकोस था और ताल त्रिताल। उसे तो चाहिए यह मिठास, जो उसे मस्त कर दे, जिसका यह अनुभव कर सके और यह स्वाभाविक ही है। क्योंकि जिस प्रकार मनुष्यता हो तो वह मनुष्य है, वैसे ही 'मानपन' हो तो यह संगीत है। और लता का कोई भी गाना लीजिए तो उसमें शत-प्रतिशत यह 'गानपन मौजूद मिलेगा।
लता की लोकप्रियता का मुख्य मर्म यह 'गानपन' ही है। लता के गाने की एक और विशेषता है, उसके स्वरों की निर्मलता। उसके पहले की पार्श्व गायिका नूरजहाँ भी एक अच्छी गायिका थीं, इसमें संदेह नहीं तयापि उसके गाने में एक मादक उत्तान दीखता था। लता के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। ऐसा दीखता है कि लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है वही उसके गायन की निर्मलता में झलक रहा है। हाँ, संगीत दिग्दर्शकों ने उसके स्वर की इस निर्मलता का जितना उपयोग कर लेना चाहिए था, उतना नहीं किया। मैं स्वयं संगीत दिग्दर्शक होता तो लता को बहुत जटिल काम देता, ऐसा कहे बिना रहा नहीं जाता।
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Related Questions
1. लता की ध्वनिमुद्रिका को कौन पसन्द करेगा?
Ans- सामान्य श्रोता ।
2. लता के गानों में किसकी निर्मलता है?
Ans- उसके स्वरों की निर्मलता।
3.लता की लोकप्रियता का मुख्य मर्म क्या है?
Ans- गानपन
4. लता के स्वरों में क्या है?
Ans- कोमलता और मुग्धता।
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लता के गाने की एक और विशेषता है, उसका नादमय उच्चार। उसके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों के आलाप द्वारा बड़ी सुंदर रीति से भरा रहता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक-दूसरे में मिल जाते हैं। यह बात पैदा करना बड़ा कठिन है, परंतु लता के साथ यह बात अत्यंत सहज और स्वाभाविक हो बैठी है।
ऐसा माना जाता है कि लता के गाने में करुण रस विशेष प्रभावशाली रीति से व्यक्त होता है, पर मुझे खुद यह बात नहीं पटती। मेरा अपना मत है कि लता ने करुण रस के साथ उतना न्याय नहीं किया है। बजाए इसके, मुग्ध शृंगार की अभिव्यक्ति करने वाले मध्य या द्रुतलय के गाने लता ने बड़ी उत्कटता से गाए हैं। मेरी दृष्टि से उसके गायन में एक और कमी है; तथापि यह कहना कठिन होगा कि इसमें लता का दोष कितना है और संगीत दिग्दर्शकों का दोष कितना । लता का गाना सामान्यतः ऊँची पट्टी में रहता है। गाने में संगीत दिग्दर्शक उसे अधिकाधिक ऊँची पट्टी में गवाते हैं और उसे अकारण ही चिलवाते हैं।
Related Questions
1. लता के गाने की क्या विशेषता है?
Ans- उसका नादमय उच्चार
2. लता ने कौन से गाने बड़ी उत्कटता से गाए हैं?
Ans- मध्य या द्रुतलय वाले गाने ।
3.लता के गाने सामान्यतः किस प्रकार के होते है?
Ans- ऊँची पट्टी के
4. लता के गाने में क्या प्रभावशाली रीति से व्यक्त होता है?
Ans- करुण रस।
एक प्रश्न उपस्थित किया जाता है कि शास्त्रीय संगीत में लता का स्थान कौन-सा है। मेरे मत से यह प्रश्न खुद ही प्रयोजनहीन है। उसका कारण यह है कि शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में तुलना हो ही नहीं सकती। जहाँ गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थाई भाव है वहीं जलदलय और चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुणधर्म है। चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है, जबकि शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया जाता है। चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग किया जाता है। उसकी लयकारी बिलकुल अलग होती है, आसान होनी है। यहाँ गीत और आघात को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है। सुलभता और लोच को अग्र स्थान दिया जाता है; तथापि चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है और वह लता के पास निःसंशय है। तीन-साढ़े तीन मिनट के गाए हुए चित्रपट के किसी गाने का और एकाध खानदानी शास्त्रीय गायक की तीन-साढ़े तीन घंटे की महफिल, इन दोनों का कलात्मक और आनंदात्मक मूल्य एक ही है, ऐसा मैं मानता हूँ। किसी उत्तम लेखक का कोई विस्तृत लेख जीवन के रहस्य का विशद रूप में वर्णन करता है तो वही रहस्य छोटे-से सुभाषित का या नन्ही-सी कहावत में सुंदरता और परिपूर्णता से प्रकट हुआ भी दृष्टिगोचर होता है। उसी प्रकार तीन घंटों की रंगदार महफिल का सारा रस लता की तीन मिनट की ध्वनिमुद्रिका में आस्वादित किया जा सकता है।
1. संगीत के मुख्य गुणधर्म क्या है?
Ans- जलदल और चपलता।
2. चित्रपट संगीत का तास किस अवस्था का होता है?
Ans- प्राथमिक अवस्था का
3. यहाँ सुलभता और सोच को कौन-सा स्थान दिया जाता है? Ans- अग्र स्थान।
4. चित्रपट संगीत गाने वाले को किस संगीत की उत्तम जानकारी होनी आवश्यक है?
Ans- शास्त्रीय संगीत की।
5. चित्रपट संगीत में कितने तालों का उपयोग किया जाता है?
Ans- आधे तालों का।
उसका एक-एक गाना एक संपूर्ण कलाकृति होता है। स्वर, लय, शब्दार्थ का वहाँ त्रिवेणी संगम होता है और महफिल की बेहोशी उसमें समाई रहती है। वैसे देखा जाए तो शास्त्रीय संगीत क्या और चित्रपट संगीत क्या, अंत में रसिक को आनंद देने की सामर्थ्य किस गाने में कितनी है, इस पर उसका महत्त्व ठहराना उचित है। में तो कहूँगा कि शास्त्रीय संगीत भी रंजक न हो, तो बिलकुल ही नीरस ठहरेगा। अनाकर्षक प्रतीत होगा और उसमें कुछ कमी-सी प्रतीत होगी। गाने में जो गानपन प्राप्त होता है, वह केवल शास्त्रीय बैठक के पक्केपन की वजह से, ताल-सुर के निर्दोष ज्ञान के कारण नहीं। गाने की सारी मिठास, सारी ताकत उसकी रंजकता पर मुख्यतः अवलंबित रहती है और रंजकता का धर्म रसिक वर्ग के समक्ष कैसे प्रस्तुत किया जाए, किस रीति से उसकी बैठक बिठाई जाए और श्रोताओं से कैसे सुसंवाद साधा जाए, इसमें समाविष्ट है। किसी मनुष्य का अस्थिपंजर और एक प्रतिभाशाली कलाकार द्वारा उसी मनुष्य का तैलचित्र इन दोनों में जो अंतर होगा वही गायन के शास्त्रीय ज्ञान और उसकी स्वरों द्वारा की गई सुसंगत अभिव्यक्ति में होगा।
संगीत के क्षेत्र में लता का स्थान अव्वल दर्जे के खानदानी गायक के समान ही मानना पड़ेगा। क्या लता तीन
घटों की महफिल जमा सकती है, ऐसा संशय व्यक्त करने वालों से मुझे भी एक प्रश्न पूछना है, क्या कोई पहली श्रेणी
का गायक तीन मिनट की अवधि में चित्रपट का कोई गाना उसकी इतनी कुशलता और रसोत्कटता से गा सकेगा?
नहीं, यही उस प्रश्न का उत्तर उन्हें देना पड़ेगा। खानदानी गवैयों का ऐसा भी दावा है कि चित्रपट संगीत के कारण
लोगों की अभिरूचि बिगड़ गई है। चित्रपट संगीत ने लोगों के 'कान बिगाड़ दिए ऐसा आरोप लगाया जाता है। पर
मैं समझता हूँ कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान खराब नहीं किए हैं, उलटे सुधार दिए हैं। ये विचार पहले ही व्यक्त
किए हैं और उनकी पुनरुक्ति नहीं करूँगा।
Related Questions
1. लता के एक-एक गाने की क्या विशेषता होती है?
Ans- उनकी एक सम्पूर्ण कलाकृति ।
2. संगीत के क्षेत्र में लता का स्थान किस स्थान पर मानना पड़ेगा?
Ansअव्वल दर्जे पर।
3. गाने की सारी मिठास, सारी ताकत रंजकता पर मुख्यतः कैसे रहती है?
Ans- अवलंबित।
4. गाने में गानपन कैसे प्राप्त होता है?
Ans- केवल शास्त्रीय बैठक के पक्केपन की वजह से।
5. चित्रपट संगीत के बारे में लोगों ने क्या आरोप लगाए हैं?
Ans- चित्रपट संगीत की वजह से लोगों के कान बिगड़ गए है।
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सच बात तो यह है कि हमारे शास्त्रीय गायक बड़ी आत्मसंतुष्ट प्रवृति के हैं। संगीत के क्षेत्र में उन्होंने अपनी हुकुमशाही स्थापित कर रखी है। शास्त्र शुद्धता के कर्मकांड को उन्होंने आवश्यकता से अधिक महत्त्व दे रखा है। मगर चित्रपट संगीत द्वारा लोगों की अभिजात संगीत से जान-पहचान होने लगी है। उनकी चिकित्सक और चौकस वृत्ति अब बढ़ती जा रही है। केवल शास्त्र शुद्ध और नीरस गाना उन्हें नहीं चाहिए, उन्हें तो सुरीला और भावपूर्ण गाना चाहिए। और यह क्रांति चित्रपट संगीत ही लाया है। चित्रपट संगीत समाज की संगीत विषयक अभिरुचि में प्रभावशाली मोड़ लाया है। चित्रपट संगीत की लचकदारी उसकी एक और सामर्थ्य है, ऐसा मुझे लगता है। उस संगीत की मान्यताएँ, मर्यादाएँ, झंझटें सब कुछ निराली हैं। चित्रपट संगीत का तंत्र ही अलग है। यहाँ नवनिर्मिति की बहुत गुंजाइश है। जैसा शास्त्रीय रागदारी का चित्रपट संगीत दिग्दर्शकों ने उपयोग किया, उसी प्रकार राजस्थानी, पंजाबी, बंगाली प्रदेश के लोकगीतों के भंडार को भी उन्होंने खूब लूटा है, यह हमारे ध्यान में रहना चाहिए। धूप का कौतुक करने वाले पंजाबी लोकगीत, रुक्ष और निर्जल राजस्थान में पर्जन्य की याद दिलाने वाले गीत, पहाड़ों की घाटियों, खोरों में प्रतिध्वनित होने वाले पहाड़ी गीत, ऋतुचक्र समझाने वाले और खेती के विविध कामों का हिसाब लेने वाले कृषि गीत और ब्रजभूमि में समाविष्ट सहज मधुर गीतों का अतिशय मार्मिक व रसानुकूल उपयोग चित्रपट क्षेत्र के प्रभाव संगीत दिग्दर्शकों ने किया है और आगे भी करते रहेंगे। थोड़े में कहूँ तो संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अब तक अलक्षित, असंशोधित और अदृष्टपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं। फलस्वरूप चित्रपट संगीत दिनोंदिन अधिकाधिक विकसित होता जा रहा है।
Related Queries
1. लेखक के अनुसार हमारे शास्त्रीय गायक कैसी वृत्ति रखते हैं?
Ans- आत्मसंतुष्ट वृत्ति ।
2. संगीत का क्षेत्र कैसा होता है?
Ans- विस्तीर्ण |
3. संगीत की अभिरुचि में प्रभावशाली मोड़ कौन लाया है?
Ans- चित्रपट संगीत।
4. चित्रपट संगीत दिनोंदिन कैसा होता जा रहा है?
Ans-अधिकाधिक विकसित ।
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ऐसे इस चित्रपट संगीत क्षेत्र की लता अनभिषिक्त साम्राज्ञी और भी कई पार्श्व गायक-गायिकाएँ हैं, पर लता की लोकप्रियता इन सभी से कहीं अधिक है। उसकी लोकप्रियता के शिखर का स्थान अचल है। बीते अनेक वर्षों से यह गाती आ रही है, फिर भी उसकी लोकप्रियता अबाधित है। लगभग आधी शताब्दी तक जन-मन पर सतत प्रभुत्व रखना आसान नहीं है। ज्यादा क्या कहूँ, एक राग भी हमेशा टिका नहीं रहता। भारत के कोने-कोने में लता का गाना जा पहुँचे, यही नहीं परदेश में भी उसका गाना सुनकर लोग पागल हो उठे, यह क्या चमत्कार नहीं है? और यह चमत्कार हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं।
ऐसा कलाकार शताब्दियों में शायद एक ही पैदा होता है। ऐसा कलाकार आज हम सभी के बीच है, उसे अपनी आँखों के सामने घूमना-फिरता देख पा रहे हैं। कितना बड़ा है हमारा भाग्य !
Related Questions
1. चित्रपट संगीत के क्षेत्र में लता मंगेशकर कैसी हैं?
Ans- अनभिषिक्त साम्राज्ञी जैसी ।
2. लता की लोकप्रियता किन गायक-गायिकाओं से अधिक है?
Ans- कई पार्श्व गायक-गायिकाओं से अधिक।
3. लता मंगेशकर की लोकप्रियता के शिखर का स्थान कैसा है?
Ans- अचल।
4. लता का गाना सुनकर कहाँ के लोग पागल हो उठते हैं? Ans- परदेश के लोग।
5. लेखक का लता मंगेशकर के बारे में क्या कहना है?
Ans- ऐसा कलाकार शताब्दियों में एक ही बार पैदा होता है तथा हम जिसे आज घूमते-फिरते देख रहे हैं।
_____________________ अभ्यास प्रश्नोत्तर _____________________
प्रश्न 1. लता मंगेशकर की आवाज सुनकर लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर - लता मंगेशकर की आवाज सुनकर लेखक पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा-
(i) यह अद्वितीय स्वर लेखक के हृदय को छू गया।
(ii) यह स्वर सुनकर लेखक हैरान रह गया कि यह अनुपम स्वर आखिर है किसका ।
(iii) उसे यह स्वर प्रतिदिन सुनाई देने वाले स्वरों से सर्वथा अलग-सा लगा ।
प्रश्न 2. 'लता मंगेशकर ने नई पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है। संगीत की लोकप्रियता, उसका प्रसार और अभिरुचि के विकास का श्रेय लता को ही देना पड़ेगा।' क्या आप इस कथन से सहमत हैं? यदि हाँ, तो अपना पक्ष प्रस्तुत करें
उत्तर- चित्रपट संगीत में लता-नूरजहाँ जैसी श्रेष्ठ गायिकाओं ने हमेशा सधे हुए गान ही गाए। उनके गायन में सुंदर स्वर- मालिकाएँ रहती थीं। सुनने वालों के कानों पर इन स्वर-मालिकाओं का गहरा प्रभाव पड़ता था। इनका अनुकरण करते-करते करें। आम लोगों के स्वर भी सघ गए। इस प्रकार उनकी संगीत-रुचि भी संस्कारित हो गई। लेखक का मानना है कि अब आम बच्चे पहले की तुलना में अच्छा और सस्वर गाते हैं। इसका श्रेय लता को ही जाता है। लेखक के इस मत से मैं पूर्णतया सहमत हूँ।
प्रश्न 3. शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में क्या अंतर है? आप दोनों में किसे बेहतर मानते हैं और क्यों? उत्तर दें।
उत्तर- शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में निम्नलिखित अंतर होते हैं-
(क) ताल का अंतर-शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया जाता है, इसके विपरीत चित्रपट संगीत का ताल हमेशा प्राथमिक अवस्था का ताल होता है। चित्रपट संगीत में आधे तालों का ही प्रयोग होता है। इसकी लयकारी आसान और अलग होती है। इसमें गीत और आघात को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इसके साथ ही सुलभता और लोच को भी अग्र स्थान दिया जाता है।
(ख) स्थाई भाव का अंतर- शास्त्रीय संगीत का स्थाई भाव गंभीरता है जबकि चित्रपट संगीत का स्थाई भाव चपलता और जलदलय है।
(ग) गायन शैली में अंतर- शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत की गायन शैली में भी काफी अंतर होता है।
(घ) गायन की समयावधि का अंतर- शास्त्रीय संगीत गायक का गायन तीन घंटे या इससे अधिक समय तक चल सकता
है, जबकि चित्रपट संगीत के एक गाने की अवधि केवल तीन से पाँच मिनट तक होती है।
(ड) श्रोताओं की रुचि में अंतर-शास्त्रीय संगीत को समझने के लिए संगीत की गहरी समझ होना आवश्यक है। संगीत ज्ञान के बिना सामान्य श्रोता उसका जरा भी आनंद नहीं उठा सकता है, इसके विपरीत चित्रपट संगीत सुनते हुए सामान्य मनुष्य भी उसके रस में डूब जाता है।
प्रश्न 4. कुमार गंधर्व ने लता मंगेशकर के गायन की कौन-कौन सी विशेषताएँ बताई हैं? साथ ही उन्होंने लता मंगेशकर के गायन के किन दोषों की चर्चा की है?
उत्तर- लेखक ने लता की गायकी की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं-
1. स्वरों की कोमलता और मुन्यता-लता की गायकी के स्वरों में कोमलता एवं मुग्धता है।
2. श्रृंगार की अभिव्यक्ति - लेखक के अनुसार लता ने करुण रस के साथ तो अधिक न्याय नहीं किया, लेकिन मुग्ध श्रृंगार की अभिव्यक्ति करने वाले गाने बड़ी उत्कटता से गाए हैं।
3. निर्मलता - स्वरों की निर्मलता लता की गायकी की एक प्रमुख विशेषता है-लता का जीवन के प्रति जो दृष्टिकोण है, वही उसके गाने की निर्मलता में भी झलकता है।
4. नादमय उच्चार - यह लता के गायन की एक और प्रमुख विशेषता है। उसके गीत के किन्हीं दो शब्दों के बीच का अंतर स्वरों की आस द्वारा बड़ी ही सुंदर रीति से भरा रहता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वे दोनों शब्द विलीन होकर एक दूसरे में मिल जाते हैं।
कुमार गंधर्व ने लता के गायन में कुछ दोषों की भी चर्चा की है-
(i) करुण रस के गीतों के साथ न्याय नहीं-लेखक का मत है कि लता ने करुण रस के गीतों के साथ उतना न्याय नहीं किया है जितना कि मुग्ध शृंगार की अभिव्यक्ति करने वाले गीतों के साथ किया है।
(ii) ऊँची पट्टी में अधिकतर गायन- लता मंगेशकर ने अपने ज्यादातर गाने ऊँची पट्टी में ही गाए हैं। संगीत निर्देशकों ने उनसे ऊँची पट्टी में गवाकर अकारण ही उन्हें चिलवाया है।
प्रश्न 5. 'चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़े नहीं, सुधारे हैं।' इस संबंध में आपके क्या विचार है?
उत्तर- आज चारों ओर शास्त्रीय संगीत की अपेक्षा चित्रपट संगीत की धूम मची हुई है। चित्रपट संगीत, लोकरुचि के अधिक अनुकूल है। परिणामस्वरूप इसके प्रति बहुसंख्यक लोगों में दुर्निवार आकर्षण सर्वत्र दृष्टिगत होता है। किन्तु खानदानी गवैयों का इस पर एक तीखा आरोप है कि इससे लोगों के कान बिगड़ गये हैं। तभी तो उन्हें शांत स्निग्ध स्वर नहीं भाता। इस प्रकार चित्रपट संगीत ने लोकरुचि को विकृत कर दिया है और मन-मस्तिष्क को कुरुचि पूर्ण बनाया है। लेकिन कुमार गंधर्व ने यह बताया है कि चित्रपट संगीत के प्रचार-प्रसार से लोगों के कान बिगड़े नहीं, अपितु सुधरे हैं। इससे लोग ऊटपटांग तरीके से गाने की बजाय स्वरबद्ध रूप में गाना सीख गये हैं। अतः लेखक का यह कहना है कि "चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़े नहीं, सुधारे हैं" पूर्णतः सही न होते हुए भी बहुलांश में सार्थक एवं सत्य हैं।
प्रश्न 6. चित्रपट संगीत की प्रसिद्धि के क्या कारण हैं? इसके विकास को आप सही मानते हैं? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तर- चित्रपट संगीत की प्रसिद्धि के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(i) मधुरता - चित्रपट संगीत में मधुरता होती है, जो लोगों को अपनी ओर खींचने की क्षमता रखती है।
(ii) लचकदारी-चित्रपट संगीत में लचकदारी है। यहाँ नवनिर्मित की काफी गुंजाइश है इन गीतों में पहाड़ी गीतों, लोक गीतों, ऋतुचक्र आदि के गीतों का भी आनंद समाया हुआ है।
(iii) आनंद देने की सामर्थ्य-चित्रपट संगीत में लोगों को आनंद और शांति प्रदान करने की सामर्थ्य है। यह संगीत सुनकर सभी लोग आनंद-विभोर हो उठते हैं।
(iv) आसान और अलग कारी-चित्रपट संगीत की लयकारी शास्त्रीय संगीत से सर्वथा अलग तथा आसान होती है।
(v) गानपन की उपस्थिति-चित्रपट संगीत में गानपन होता है, जो श्रोता को भाव-विभोर कर देता है।
(vi) प्रत्येक गाना एक संपूर्ण कलाकृति-चित्रपट संगीत का प्रत्येक गीत स्वयं में एक संपूर्ण कलाकृति होता है। इनमें स्वर, लय एवं शब्दार्थ का संगम होता है और तीन-साढ़े तीन घंटे की महफिल की बेहोशी केवल साढ़े तीन मिनट के गाने में ही समाई रहती है।
प्रश्न 7. निम्नलिखित वाक्यों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
(क) कोकिला का स्वर निरंतर कानों में पड़ने लगे तो कोई भी सुनने वाला उसका अनुकरण करने का प्रयत्न करेगा। यह स्वाभाविक ही है।
सप्रसंग व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक 'दिगत, भाग-1' में संकलित 'बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर' नामक पाठ से अवतरित है। इसके लेखक महान् गायक कुमार गंधर्व है। सुप्रसिद्ध स्वर साम्राज्ञी 'लता मंगेशकर' के जादुई स्वर के मादक प्रभाव के वर्णन क्रम में लेखन ने संगीत के शाश्वत प्रभावों की बात भी कही है।
लेखक ने बताया है कि लता का स्वर अत्यंत मधुर है, बहुत कुछ वैसा ही जैसा कि एक कोयल का होता है। कोयल जब फूकती है तो बरबस हमारा ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो जाता है। इतना ही नहीं, यदि कोयल की कूक लगातार सुनने को मिलती रहे तो यह स्वाभाविक ही है कि सुनने वाला उसका अनुकरण अवश्य करना चाहेगा। यही बात लता मंगेशकर के साथ भी है। उसके कारण संगीत क्षेत्र में अनेक व्यापक परिवर्तन आए हैं। चित्रपट संगीत को अद्भुत लोकप्रियता प्राप्त हुई है। साथ ही शास्त्रीय संगीत के प्रति लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है। बच्चे सदा से गाते रहे हैं, लेकिन पहले के और अबके उनके गाने में जबरदस्त अंतर आया है। अब बच्चे भी स्वरबद्ध गाते हैं। यह सब विलक्षण गायिका लता मंगेशकर की ही देन है।
(ख) और लता का कोई भी गाना लीजिए तो उसमें शत-प्रतिशत यह 'गानपन' मौजूद मिलेगा।
सप्रसंग व्याख्या - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'दिगत, भाग-1' में संकलित 'बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर' नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक महान गायक और संगीत-मनीषी कुमार गंधर्व हैं। इस पाठ में उन्होंने अप्रतिम और अद्भुत गायिका लता मंगेशकर की गायन कला की विशेषताओं का बड़ी ही बारीकी से विवेचन-विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
लेखक के विचारानुसार लता के गानों में गानपन हमेशा विद्यमान रहता है। इसीलिए उनकी लोकप्रियता इतनी अधिक है। जैसे व्यक्ति की पहचान उसका व्यक्तित्व होता है या यों कहें कि मनुष्यता से रहित मनुष्य का अस्तित्व अकल्पनीय है। ठीक उसी प्रकार गानपन से रहित गान की बात करना सर्वदा व्यर्थ है। वस्तुतः गानपन ही वह तत्त्व होता है, जिसके होने से कोई गान गान रहता है और जिसके अभाव में उसका गान होना संदेहास्पद ही रहता है। इसलिए गानपन ही गान का मूल है। सुप्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर के गानों में यह गानपन अवश्य विद्यमान रहता है। तभी तो जन-मन में उनकी इतनी प्रसिद्धि और लोकप्रियता है तथा संगीत समाज में उनका शिखर का स्थान लगभग सुरक्षित है।
सुप्रसिद्ध और अप्रतिम गायिका लता मंगेशकर के गान-विद्या की विलक्षण विशिष्टताओं के वर्णन क्रम में उनके गानों में शत-प्रतिशत गानपन की उपस्थिति की बात कहकर लेखक ने उनकी लोकप्रियता के अद्भुत रहस्यों का उद्घाटन किया है।
(ग) चित्रपट संगीत समाज की संगीत विषयक अभिरुचि में प्रभावशाली मोड़ लाया है।
सप्रसंग व्याख्या - प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक 'दिगत, भाग-1' में संकलित 'बेजोड़ गायिका लता मंगेशकर' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक महान् गायक एवं संगीत मनीषी कुमार गंधर्व है। यहाँ लेखक ने चित्रपट संगीत के कारण समाज की संगीत-विषयक अभिरुचि में आये प्रभावशाली परिवर्तनों को व्यक्त करने का सार्थक प्रयास किया है। आधुनिक समाज अनेक बातों में पहले से काफी बदल चुका है। अन्य अनेक बातों की तरह संगीत विषयक उसकी अभिरुचि के साथ भी ऐसा ही है। शास्त्रीय संगीत की अपेक्षा अब वह चित्रपट संगीत के अधिक करीब है। आजकल लोग शास्त्रीय संगीत की एकरसता से ऊबते और चित्रपट संगीत की आनंद सरिता में डूबते-उतराते नजर आते हैं। चित्रपट संगीत के कारण ही लोगों का शास्त्रीय संगीत की ओर देखने का दृष्टिकोण भी बदता है। इसने नई पीढ़ी के संगीत को एक प्रकार से संस्कारित किया है। लोग धीरे-धीरे संगीत के विविध प्रकारों से परिचित हो रहे हैं। शास्त्रीय रागदारी के अलावा लोकगीत में प्रयुक्त रागदारियों का भी इस क्षेत्र में खूब प्रयोग हो रहा है। अर्थात् संगीत के अनेक अनदेखे क्षेत्रों में भी प्रवेश कर चित्रपट संगीत ने समाज की रुचि में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। चित्रपट संगीत के कारण ही संगीत विषयक लोगों की अभिरुचि में आये बदलावों का यथार्थपरक महत्त्वपूर्ण कथन है।
प्रश्न 8. ऊँची पट्टी में गायन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-ऊँची पट्टी में गायन से अभिप्राय है ऊंचे स्वर अर्थात् ऊँची तान में गाना गान के क्रम में यह स्थिति सामान्य रूप से तब आती है जब गायक तेज आवाज में गाता t_{1} लेकिन जब गायन अनावश्यक रूप से ऊँची पट्टी में हो, तब संगीत का यह गुण भी दोष बन जाता है। महान् गायक और संगीतज्ञ कुमार गंधर्व ने लता मंगेशकर के गायन में भी इसी दोष की स्थिति बताई है।
प्रश्न 9. लता मंगेशकर भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ हैं। लेखक के इस कथन पर आप अपना विचार प्रस्तुत करें
उत्तर- महान् गायक कुमार गंधर्व ने बड़े सोच-विचार कर लता मंगेशकर को 'भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ कहा है। वास्तव में लता जैसी गायिका न उनसे पहले कभी कोई हुई और न अभी तक कोई है। उनके आगमन से भारतीय संगीत विशेषकर चित्रपट संगीत की दुनिया में चार चाँद लग गये। हालांकि उनसे पहले भी कई अच्छी गायिकाएँ हुई। नूरजहाँ जैसी चित्रपट संगीत में अपनी धाक जमाने वाली गायिका थी, फिर भी लता की बात एकदम अलग है। उनके कारण चित्रपट संगीत को एक अद्भुत विस्तार मिला, अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई। वैसे भी उनके स्वर में गजब की आकर्षण शक्ति है। कोई भी श्रोता उसके यश में हुए बिना नहीं रह सकता। तभी तो आधी शताब्दी से आज तक एक तरह से जन-मन पर लता का ही एकाधिकार रहा है। भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोग उनका गाना सुनकर अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। यह साधारण बात नहीं है। ऐसा कमाल तो कोई विरला ही कर दिखाता है और लता ने ऐसा कर दिखाया है। इसलिए हम लेखक के इस कथन से पूरी तरह सहमत हैं कि "लता मंगेशकर भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ हैं।
" प्रश्न 10. 'गानपन' से क्या आशय है? इसे किस तरह अभ्यास से पाया जा सकता है?
उत्तर- 'गानपन' से तात्पर्य है गाने का ऐसा अंदाज जो एक सामान्य मनुष्य को भी आनंद के रस से अभिसिंचित करते हुए भाव-विभोर कर दे, व्यक्ति गाने की मिठास और मस्ती में पूर्णतया डूब जाए। शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी और निरंतर अभ्यास के बाद चित्रपट संगीत के गीत गाने पर इसे पाया जा सकता है।
प्रश्न 11. 'संगीत का क्षेत्र बड़ा ही विस्तीर्ण है। वहाँ अब तक अलक्षित, असंशीपित और अदृष्टपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं'- इस कथन को वर्तमान फिल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- संगीत का क्षेत्र बड़ा ही विस्तीर्ण यहाँ नवनिर्मित के लिए काफी स्थान है। संगीत निर्देशकों ने शास्त्रीय रागदारी का प्रयोग चित्रपट संगीत के लिए किया है। इसके साथ इन निर्देशकों ने पंजाबी, राजस्थानी, बंगाली प्रदेश के भंडार का भी अपने संगीत में खूब उपयोग किया है। सूखे राजस्थान में वर्षा के बादलों की याद दिलाने वाले गीत, पंजाबी लोकगीत, घाटियों और खोरों में गूँजने वाले पहाड़ी गीत, विविध ऋतुओं के आवागमन संबंधी गीत, ब्रजभूमि के मधुर गीतों का मार्मिक और रसानुकूल प्रयोग चित्रपट संगीत के प्रभावी संगीत निर्देशकों द्वारा ही किया गया इस तरह के प्रयोग आगे भी किए जाते रहेंगे, क्योंकि संगीत क्षेत्र में अब भी कई अलक्षित और संशोधनरहित क्षेत्र हैं, जिन पर लोगों की दृष्टि नहीं पड़ी है। यह क्षेत्र बहुत विस्तृत है। चित्रपट से जुड़े लोग बड़े जोश से ऐसे क्षेत्रों की खोज तथा उपयोग करते हुए चित्रपट संगीत को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने में अपना अभिन्न योगदान दे रहे हैं।
प्रश्न 12. घर पर में गाने वाले पहले के बच्चों और आज के बच्चों के गान में कुमार गंधर्व अंतर देखते हैं। अंतर क्या है?
उत्तर- लेखक कुमार गंधर्व का मानना है कि लोगों का झुकाव शास्त्रीय संगीत से हटकर चित्रपट संगीत की ओर चला गया है। लेखक देखता है कि लता के गीत के पहले भी लोग घर-घर में गीत गुनगुनाते रहते थे। आजकल नन्हें-मुन्ने भी स्वर में गुनगुनाते हैं। यह लता के गाने का ही जादू है। उनका स्वर बच्चों के कानों में लगातार पड़ते रहने से सुनने वाला अनुकरण तो करेगा ही। यह तो स्वाभाविक है। शास्त्रीय संगीत का ऐसा असर आम लोगों पर नहीं पड़ता।
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