बहुत दिनों के बाद - कवि नागार्जुन Class 11th Hindi Chapter - 8 Bihar Board || बहुत दिनों के बाद का भावार्थ और प्रश्न उत्तर


आज हम लोग एक नए अंदाज के साथ बिहार बोर्ड Class 11th Hindi काव्यखंड का चैप्टर - 8 बहुत दिनों के बाद का सम्पूर्ण भावार्थ, नागार्जुन का जीवन परिचय और बहुत दिनों के बाद का प्रश्न उत्तर देखने वाले हैं ,Bihar board Class 11th Hindi Chapter bahut dinon ke bad nagarjun 


"कविता की उठान तो कोई नागार्जुन ने सीखे और नाटकीयता में तो वे जैसे लाजवाब ही हैं। जैसी सिद्धि छंदों में, वैसा ही अधिकार बेउट या मुक्तछंद की कविता पर। उनके बात करने के हजार ढंग हैं। और भाषा में भी बोली के ठेट शब्दों से लेकर संस्कृत की संस्कारी पदावली तक इतने स्तर है कि कोई भी अभिभूत हो सकता है।" (नागार्जुन प्रतिनिधि कविताएँ) - डॉ. नामवर सिंह


8. नागार्जुन

 कवि-परिचय


जीवन परिचय: 

  • नागर्जुन का जन्म 1911 ई. में बिहार के दरभंगा जिले के संग्रखा गाँव में (उनके ननिहाल ) हुआ था। 
  • वे मूलतः तरौनी गाँव के निवासी थे और उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था।
  •  उनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई। उन्होंने 1936 ई. में श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की और 1938 ई. में स्वदेश वापस आ गए। राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण उन्हें कई बार जेल की यात्रा भी करनी पड़ी।


  • उन्होंने 1935 में 'दीपक' (हिंदी मासिक) तथा 1942-43 में 'विश्वबंधु' (साप्ताहिक) नामक पत्रिकाओं का संपादन किया। पुरस्कार मैथिली काव्य-संग्रह 'पत्रहीन नग्न गाछ' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 
  • 1998 ई. में उनका देहावसान हो गया।

प्रमुख रचनाएँ: बाबा नागार्जुन की प्रमुख काव्य-कृतियाँ निम्नलिखित हैं-युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, प्यासी पथराई आँखें, तालाब की मछलियाँ, तुमने कहा था, हजार-हजार बाँहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, ऐसे भी हम क्या ऐसे भी तुम क्या, रत्नगर्भा, मैं मिलिटरी का बूढ़ा घोड़ा, पका है कटहल, भस्मांकुर (खंडकाव्य) मैथिली में उनकी कविताओं के दो संकलन चित्रा, पत्रहीन नग्न गाछ हैं। कुंभी पाक, रतिनाथ की चाची, उग्रतारा, जुमनिया का बाबा, पारो, नवतुरिया, वरुण के बेटे (हिंदी), बलचनमा (मैथिली) जैसे उनके उपन्यास हैं।


भाषा-शैली : नागार्जुन का मैथिली और हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत पर भी समान अधिकार होने के कारण उनकी काव्य भाषा में जहाँ एक ओर संस्कृत काव्य परंपरा के दर्शन होते हैं, वहीं दूसरी ओर बोलचाल की भाषा की सहजता भी दिखाई देती है। उनके काव्य में तत्सम शब्दों के साथ-साथ ग्राम्यांचल शब्दों का भी खुलकर प्रयोग हुआ है। उन्होंने अपनी कविताओं में मुहावरों का भी समावेश किया है। उन्होंने सामाजिक विसंगतियों के चित्रण में व्यंग्यपूर्ण शैली का सफल प्रयोग किया है।

नागार्जुन संस्कृत भाषा का गंभीर ज्ञान रखते थे। इसलिए उनकी भाषा में संस्कृत शब्दावली का अधिक प्रयोग हुआ है। वे प्रगतिवादी विचारधारा के कवि हैं, इसीलिए उन्होंने बोलचाल की आम भाषा का भी प्रयोग किया है। उनकी भाषा में सरसता और स्वाभाविकता है। उन्होंने खड़ी बोली के लोक प्रचलित रूप को अपनाया है। लोकमंगल उनकी कविता की मुख्य विशेषता है, इस कारण व्यावहारिक धरातल भी दिखाई देता है। उन्होंने मुक्त छंद के साथ-साथ अन्य छंदों में भी काव्य रचना की है। आधुनिक कवियों में नागार्जुन को विशेष स्थान प्राप्त है।


काव्यगत विशेषताएँ: नागार्जुन प्रगतिवादी विचारधारा के कवि हैं। ये हमेशा जनसामान्य, श्रम तथा धरती से जुड़े लोगों की बात ही अपनी कविताओं में कहते हैं। वे अपनी रचनाओं में जन भावनाओं और समाज की पीड़ा को व्यक्त करते हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त विभिन्न विषमताओं को देखा है, समझा है, और उनका वर्णन स्वाभाविक है। वर्ण्य विषय की जितनी विराटता और प्रस्तुति की जितनी सहजता नागार्जुन के रचना संसार में पाई जाती है, उतनी शायद ही कहीं और हो। छायावादोत्तर काल के ये अकेले ऐसे कवि हैं, जिनकी कविताओं को ग्रामीण चौपाल से लेकर विद्वानों तक में समान रूप से आदर-सम्मान प्राप्त है।

उनकी कविताओं में शिष्टगंभीर हास्य और सूक्ष्म घुटीले व्यंग्यों की अधिकता है। बाबा नागार्जुन कभी मार्क्सवाद की वकालत करते हैं, कभी समाज में व्याप्त शोषण का वर्णन करते हैं और कभी प्रकृति का मनोहारी वर्णन करते हैं।


बहुत दिनों के बाद

1


बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर देखी
पकी सुनहली फसलों की मुसकान
                                   - बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी भर सुन पाया
धान कूटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान
                                  -बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर सूपे
मौलसिरी के ढेर-ढेर से ताजे टटके फूल
                                - बहुत दिनों के बाद


शब्दार्थ : जी भर - मन भर । किशोरी - नई उम्र की लड़की। कोकिलकंठी - कोयल जैसे मीठे स्वर वाली। मौलसिनी - बकुल, एक सदाबहार पेड़ जिसमें छोटे-छोटे सुगंधित फूल उगते हैं।


प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियों प्रगतिवादी व जनकवि नागार्जुन द्वारा रचित कविता 'बहुत दिनों के बाद' से अवतरित हैं। यह कविता कवि के प्रकृति-प्रेम पर आधारित है। कवि को प्रकृति की गोद में ही ऊर्जा प्राप्त होती है।

व्याख्या: कवि घुमक्कड़ प्रवृति का होने के कारण लम्बे समय के बाद मिथिलांचल स्थित अपने 'तरौनी' गाँव में आया और यहाँ आते ही उसने प्राकृतिक वातावरण का भरपूर आनन्द लिया। उसे खेत में खड़ी धान की सुनहली पकी बालियाँ झूमती और मुस्कुराती नजर आई। इन्हें देखकर कवि का हृदय प्रसन्न हो गया और उसकी आँखों को तृप्ति मिल गई। कवि जैसे ही अपने गाँव में दाखिल हुआ तो उसने ओखल में मूसल की मार, गाँव की किशोरियों के गले से गाँव के गीत सुने, जिससे उसके कान भी तृप्त हो गए।


यह थोड़ा आगे बढ़ा तो उसने मौलसिरी के ताजे फूलों की मादकता व सुगंध को सूँघा व फूलों को हाथ की 'अंजुली में भरकर सूंचा जिससे उसकी नाक की वर्षों की प्यास बुझ गई।

इस प्रकार कवि को ऐन्द्रिय सुख की अनुभूति केवल प्रकृति से प्राप्त होती है।




(2)


बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी भर छू पाया
अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी पूल।   
                                        -बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अबकी मैंने जी-भर तालमखाना खाया
गन्ने घूसे जी भर
                                       -बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर भोगे
गंप-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ इस भू पर
रूप से उगाया जाता है।
                                     - बहुत दिनों के बाद


शब्दार्थ : चंदनवर्णी चंदन के रंग की गई गांव की तालमखाना एक मेवा जो मिथिला की ताल-तलैयों में विशेष

प्रसंग पूर्ववत्।

व्याख्या- कवि कहता है कि उसे गाँव की पगड़ियों पर खाली पाँव चलते हुए गाँव की धूल-मिट्टी का स्पर्श-सुख चंदन प्रतीत हुआ। के मिथिला के तालमखाने व गन्नों के स्वाद से उसकी जिहा को भी सन्तुष्टि मिल गई ऐसी तृप्ति उसे बहुत दिनों के बाद मिली थी।

कवि को लम्बे समय के पश्चात् प्रकृति के विभिन्न उपादानों को देखने, सूंघने, सुनने, छूने तथा खाने का अवसर मिला। यह सब कुछ उसे निःशुल्क, शुद्ध तथा पवित्र अवस्था में प्राप्त हुआ।

अभ्यास


कविता के साथ

प्रश्न 1. बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना?

उत्तर- घुमक्कड़ प्रवृत्ति का होने के कारण बहुत दिनों के बाद कवि अपने ग्रामीण वातावरण में आकर पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान देखकर आह्लादित हो जाता है। साथ ही कवि को धान कूटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान भी सुनाई दी। उसका मन अत्यंत उल्लासित हो जाता है।


प्रश्न 2. कवि ने अपने गाँव की धूल को क्या कहा है? और क्यों?

उत्तर- कवि ने अपने गाँव की धूल को चन्दनवर्णी कहा है। ऐसा कहने के पीछे कवि का अभिप्राय यह है कि जिस तरह चन्दन स्निग्धता, शीतलता और सुगंध देता है, ठीक उसी तरह कवि के गाँव की धूल जिसका रंग चंदन जैसा ही है और जिससे ऐसी सोंधी महक आ रही है, उसका स्पर्श चन्दनवत स्निग्धता तथा शीतलता प्रदान कर रहा है।


प्रश्न 3. कविता में 'बहुत दिनों के बाद' पंक्ति बार-बार आयी है। इसका क्या औचित्य है? इसका महत्त्व बताएँ। 

उत्तर- प्रस्तुत कविता में 'बहुत दिनों के बाद' पंक्ति बार-बार आई है। कवि की प्राकृतिक सम्पदा के रूप-रंग, गंध और स्वर को देखने की लालसा ही है जो उसे इतने समय के पश्चात् कृत्रिम वातावरण से खींचकर अपने गाँव की ओर ले जाती है।इसी कारण इस शीर्षक पंक्ति की बार-बार आवृत्ति हुई है।आवृत्ति का अपना विशेष महत्व होता है।

प्रत्येक आवृत्ति प्रकृति के निजत्व को कवि के व्यक्तित्व से और उसकी आत्मा से जोड़ती है। जिस प्रकार किसी अद्भुत वस्तु को बार-बार देखकर भी तृप्ति नहीं होती, उसी तरह कविता में 'बहुत दिनों के बाद पंक्ति आवृत्ति को दर्शाती हैं। 



प्रश्न 4. पूरी कविता में कवि अत्यंत उल्लसित है। इसका क्या कारण है?

उत्तर-घुमक्कड़ कवि नागार्जुन की 'बहुत दिनों के बाद' शीर्षक कविता देशज प्रकृति तथा घरेलू संवेदनाओं का एक दुर्लभ सांध्य प्रस्तुत करती है। कवि कई वर्षों के बाद पकी सुनहली फसलों की मुस्कान जी भरकर देखता है। धान की उपज की प्रचुरता के कारण कोकिल कंठी नवयौवना मधुर फिजों में फैला हुआ है, जिसे सुनकर कवि मंत्र-मुग्ध हो जाता है। कवि को चंदनवर्णी धूल को भी तिलक के रूप में अपने पाये पर लगाने का अवसर प्राप्त होता है। कवि का हृदय गाँव की खुशहाली से आादित हो जाता है। वह जी भरकर ताल मखाना खाता है। और जी भरकर गन्ने भी चूसता है। प्रकृति के इस मनोरम दृश्य को देखकर कवि भावविभोर हो जाता है और उसका हृदय उल्लास से भर जाता है। "अबकी मैंने जी-भर भोगे


प्रश्न 5. गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ इस भू पर"

इन पंक्तियों का मर्म उद्घाटित करें।

उत्तर- आज का जीव अपनी व्यस्तताओं में उलझकर, विभिन्न भौतिक सुखों को भोगता हुआ, अपनी आवश्यकताओं को बढ़ाता, उनकी पूर्ति हेतु न जाने कहाँ कहाँ भटक रहा है। लेकिन इस भटकन में उसे वह सुख नहीं, जिसका इच्छुक उसका हृदय है। आज सब जगह कृत्रिमता और भौतिकता का ही बोलबाला है।

आज मनुष्य ऐसी स्थिति में है जहाँ उसे उगते तथा डूबते सूरज के दर्शन भी नहीं होते। लेकिन फिर भी ऐसी भागमभाग भरी जिन्दगी से मनुष्य को सुख प्राप्त नहीं होता।

कवि भी ऐसी ही भागम-भाग से ऊबकर अपने प्राकृतिक परिवेश में लौटा, जहाँ इसे मौलसिरी हरशृंगार, रातरानी, रजनीगंधा जैसे फूलों का सान्निध्य मिला और उसके प्राणों को तृप्ति का अनुभव हुआ उसने खेतों में खड़ी पकी सुनहरी फसलें देखीं, धान कूटती किशोरियों की मनमोहक तान सुनी, जिससे उसके मन को तृप्ति मिली। कवि कहता है कि मालूम नहीं जीवन-संघर्ष से उसे फिर कब मुक्ति मिले। इसलिए कवि नागार्जुन ने इन सबका पान जी भर कर किया है।

प्रश्न 6. इस कविता में ग्रामीण परिवेश का कैसा चित्र उभरता है?

उत्तर- कवि नागार्जुन का जन्म एक गाँव में हुआ। गाँव के सुखों का उन्होंने भोग तथा यहाँ के सौंदर्य का रसपान किया। इसलिए ग्रामीण परिवेश का चित्र उन्होंने इस कविता में खींचा है।

कवि ने खेतों में खड़ी धान की पकी सुनहरी फसलों, धान कूटती किशोरियों की कोकिल कंठी, तान, हरमृगार, मौलसिरी रातरानी के फूलों, रजनीगंधा, पगडंडी पर चलते वक्त चंदन जैसी धूल के उड़ने तालमखाने खाने तथा गन्ना चूसने का जो वर्णन इस कविता में किया है। वह ग्रामीण परिवेश में ही संभव है क्योंकि शहरी क्षेत्रों में न तो चावल की खेती होती है. न किशोरियों के मनमोहक मुमकिन हैं, न फूलों की ऐसी गंध मिलती है और न ही पगडंडियों पर चलने पर चन्दनवर्णी धूल उपलब्ध है।

 प्रश्न 7. 'पान कूटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान' में जो सौन्दर्य चेतना दिखलाई पड़ती है, उसे स्पष्ट करें।

उत्तर- धान कूटने के लिए मुख्यतः ओखल-मूसल या फिर ढेकुली का इस्तेमाल होता है। ओखल में धान रखकर बार-बार को बीच से पकड़कर हाथ को ऊपर तक उठाना और फिर कुछ झुकते हुए धान पर प्रहार करना। चूड़ियों की खनखन, आपस मूसल में चुहल करती किशोरियों के गले में निकले ग्राम्य गीतों के बल ऐसे लगते हैं जैसे किसी अमराई में कोयल पंचम का आलाप ले रही हो। यह सारा वातावरण ऐन्द्रिक, चाक्षुष तथा प्राण बिम्बों का कोलाज प्रस्तुत करता है। कवि का कथन तो संक्षिप्त है लेकिन उसका सौन्दर्य अति सचेत, प्रभावी और चेतनायुक्त है।



प्रश्न 8. कविता में जिन क्रियाओं का उल्लेख है वे सभी सकर्मक क्रियाएँ हैं। सकर्मक क्रियाओं का सुनियोजित प्रयोग कवि ने क्यों किया है?

उत्तर- प्रस्तुत कविता 'बहुत दिनों के बाद में कवि नागार्जुन ने सकर्मक क्रियाओं का वर्णन करके यह बताया है कि प्रकृति का प्रत्येक अवयव क्रियाशील है यह सम्पूर्ण विश्व की कर्म प्रधान है, अकर्मण्यता तो जीवित अवस्था में भी मृत्यु के समान है। इसलिए जो कर्मण्य है, जीवन का रस केवल उसी को प्राप्त होता है। ग्रामीण परिवेश तो निष्काम कर्मण्यता के लिए प्रसिद्ध है। ही कवि का सीधा अभिप्राय कर्मशीलता से है, जिसका सशक्त उदाहरण ग्रामीण परिवेश ही है। इसलिए कवि ने सकर्मक क्रियाओं का सुनियोजित प्रयोग किया है।


प्रश्न 9. कविता के हर बंद में एक-एक ऐन्द्रिय अनुभव का जिक्र है और अंतिम बंद में उन सबका सारा समवेत कथन है। कैसे? इसे रेखांकित करें।

उत्तर- प्रस्तुत कविता के हर बंद में एक ऐन्द्रिय अनुभव है। हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, जिनके माध्यम से हमें सृष्टि का वस्तुमय साक्षात्कार होता है। प्रथमबंद में पकी सुनहली फसलों की मुस्कान देखने का, दूसरे बंद में धान कूटती किशोरियों की कोकिल कंठी तान सुनने का, तीसरे बंद में मौलसिरी के ताजे टटके फूल सूँघने का, चौथे बंद में गँवई पगडंडी की चन्दनवर्णी धूल का स्पर्श करने का, पाँचदें बंद में ताल मखाना खाने और गन्ना चूसने का ऐन्द्रिय अनुभव वर्णित है और अंतिम बंद में भोगने शब्द का प्रयोग करते हुए कवि ने समवेत ढंग से ऊपर के ही ऐन्द्रिय अनुभवों को सान्द्रित रूप से प्रस्तुत किया है गंध का संबंध नाटक से, रस का जीम से, रूप का आँख से शब्द का कान से स्पर्श का त्वचा से तथा अनुभव का भोग से होता है। इसलिए अंतिम बंद ऐन्द्रिय अनुभवों का सारांश ही है।


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