आज हम लोग एक नए अंदाज के साथ बिहार बोर्ड Class 11th Hindi काव्यखंड का चैप्टर - 9 ग़ालिब का सम्पूर्ण भावार्थ, त्रिलोचन का जीवन परिचय और ग़ालिब का प्रश्न उत्तर देखने वाले हैं ,Bihar board Class 11th Hindi Chapter Ghalib kabhi trilochan
In this post included :-
- गालिब चैप्टर का संपूर्ण भावार्थ
- गालिब चैप्टर के कवि त्रिलोचन का जीवन परिचय
- गालिब चैप्टर के पद का शब्दार्थ
- गालिब चैप्टर के अभ्यास प्रश्न उत्तर
9. त्रिलोचन
कवि-परिचय
- जीवन परिचय : -- कवि त्रिलोचन का जन्म सन् 1917 में चिरानी पट्टी जिला सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इनको प्रगतिशील कविताओं के कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इनका मूल नाम वासुदेव सिंह था। इन्होंने काव्य के साथ-साथ गद्य क्षेत्र में भी अपनी लेखनी चलाई।
- पुरस्कार : साहित्य में अनुपम रचनाओं के लिए इन्हें साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी इन्हें गाँधी पुरस्कार से नवाजा गया। श्लाका सम्मान भी इनकी एक और महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
- काव्यगत रचनाएँ : धरती, उस जनपद का कवि हूँ, शब्द, मेरा घर, अरघान, चैती, गुलाब और बुलबुल, तुम्हें सौंपता हूँ, ताप के ताए हुए दिन, दिगंत, अमोला आदि त्रिलोचन जी की काव्य रचनाएँ हैं।
- गद्य रचनाएँ : - रोजनामचा, काव्य और अर्थ बोध, देशकाल, मुक्ति बोध की कविताएँ।
- काव्यगत विशेषताएँ: - त्रिलोचन जी एक बहुभाषी विज्ञ शास्त्री हैं। इनकी रचनाओं में इनका विविध भाषाओं का ज्ञान स्पष्ट झलकता है। इस ज्ञान से इनकी रचनाओं में स्वाभाविकता और यथार्थता की सृष्टि हुई है। अनेक भाषाओं के शब्दों का समावेश भी इनकी भाषा के प्रभाव को कम नहीं करता। इनकी रचनाओं की भाषा छायावादी कल्पनाशीलता से दूर ग्राम्य जीवन की माटी से जुड़ी यथार्थ की भाषा है। हिन्दी में सॉनेट (अंग्रेजी छंद) को स्थापित करने का श्रेय भी मुख्यतः त्रिलोचन जी को ही जाता है। इनकी भाषा हृदय को छू लेने वाली है। सामान्य बोलचाल की भाषा को कवि ने पाठक के सम्मुख इस प्रकार से नए स्वरूप में प्रस्तुत किया है कि वह उसे अपने ही आस-पास के वातावरण की जान पड़ती है। भाषा बोधगम्य और सरल है। वस्तुतः आधुनिक प्रगतिशील हिन्दी कवियों में त्रिलोचन जी का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
ग़ालिब कविता
(1)
गालिब गैर नहीं हैं, अपनों से अपने हैं,
ग़ालिब की बोली ही आज हमारी बोली है।
नवीन आँखें में जो नवीन सपने हैं,
वे ग़ालिब के सपने हैं। गालिब ने खोली
गाँठ जटिल जीवन की, बात और वह बोली
नपी तुली थी, हलकेपन का नाम नहीं था।
सुख की आँखों ने दुख देखा और ठिठोली
की, यों जी बहलाया। बेशक दाम नहीं था
उनकी अंटी में, दुनियाँ से काम नहीं था।
ग़ालिब कविता शब्दार्थ :-
गालिब - शक्तिशाली, विजेता । गैर - पराया। ठिठोली - दिल्लगी, मजाक । अंटी - बटुआ, जेब।
प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि त्रिलोचन द्वारा रचित 'ग़ालिब' (चतुष्पदी रचना) नामक सॉनेट से उद्धृत हैं। यह सॉनेट एक व्यक्ति विशेष मिर्जा गालिब पर लिखी गई है। मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू, हिन्दी, फारसी, अरबी के प्रसिद्ध शायर थे। गालिब ने भारत की चौतरफा उन्नति के ख्वाब देखे।
व्याख्या :- इस सॉनेट में कवि त्रिलोचन कहते हैं कि गालिब कोई गैर विजातीय या बेगाने नहीं हैं। वे किसी रक्त संबंधी के समान ही स्वजन प्रिय और प्रेमास्पद हैं, क्योंकि उनकी सोच संकीर्ण नहीं है शायर गालिब ने फारसी के बाद उर्दू और उर्दू के साथ हिंदी को मजबूती प्रदान की और एक नई अथवत्ता प्रदान की गालिब ने हिन्दुस्तान की चहुँमुखी उन्नति के ख्यान देखे। हमारे जख्मों पर प्रेम तथा मोहब्बत के मरहम लगाए। उनका अनूठा अस्तित्व ही हमारी अस्मिता को एक नई पहचान देता है। आज हर किसी की आँखों में जो चमकीले सपने तैर रहे हैं, वे ग़ालिब द्वारा देखे गए तरक्की पसंद सपनों का ही एक हिस्सा हैं।
गालिब ने नपी-तुली भाषा-शैली में जीव-जगत के संबंध के रहस्य की गाँठ को खोलने का काम किया। उनकी भाषा में कहीं भी भटकाव या हल्कापन नहीं है।
गालिब अपने समय के अजीम शायर थे। गरीबी उनके जीवन में जड़ जमाकर बैठी रही है। फिर भी उनकी आँखों ने सुख
देखा और सुख का एक नया संसार सृजित किया। अपने चारों तरफ दुख का साम्राज्य होते हुए भी गालिब जीवन को हास्यपूर्ण बनाने से कभी नहीं चूके।
उनके जीवन में पैसे का हमेशा अभाव रहा, लेकिन फिर भी उन्होंने दुनिया से कोई ऐसा वास्ता नहीं रखा जिससे उन्हें शर्मसार होना पड़े।
(2)
लेकिन उस को साँस-साँस पर तोल रहे थे।
अपना कहने को क्या था, धन-धान नहीं था,
सत्य बोलता था जब जब मुँह खोल रहे थे।
गालिब होकर रहे जीत कर दुनिया छोड़ी,
कवि थे, अक्षर में अक्षर की महिमा जोड़ी।
शब्दार्थ : मुँह खोलना - बात बताना दुनिया छोड़ी मर गए अक्षर जो नष्ट न हो।
प्रसंग - पूर्ववत्। (पूर्ववत् का मतलब है पहले जैसा ही प्रसंग इसका भी होगा)
व्याख्या: कवि त्रिलोचन कहते हैं कि ग़ालिब मन मारकर इस दुनिया की दोरंगी नीति व चाल-दाल को बड़े ही गौर से देखते रहे। उनके पास उनका अपना कहलाने वाला कोई नहीं था। वे जब भी कुछ बोलते थे या कुछ कहने के लिए अपना मुँह खोलते ये तो लगता कि जैसे सत्य ही बोल रहे हो ,
गालिब के पास धन आया तो टिका नहीं। उनके पास कोई चल-अचल सम्पत्ति नहीं थी, लेकिन उनके मुख से हमेशा सत्य ही निकलता था। ऐसा सत्य जिसे अपनाकर हम अपना व इस समस्त संसार का कल्याण कर सकने में सक्षम हो सकते हैं। सच केवल वही व्यक्ति बोल सकता है जो संबंधों से असंबद्ध हो।
गालिब अपनी शर्तों पर जीते रहे और अपने ही तरीके से इस संसार से कूच किया। किन्तु जो कर गए, जो हमें दे गए, जो छोड़कर गए, वह अमूल्य व अतुल्य है। गालिब जानते थे कि जब तक हिंदी, संस्कृत, उर्दू, अरबी, फारसी जैसी भाषाओं के अक्षरों तथा शब्दों का मधुसंपर्क नहीं होगा, तब तक हिंदुस्तान की आवाज बुलंद नहीं होगी। जब तक भाषिक स्तर पर दूरी कम नहीं होगी, दिलों की दूरियाँ कम नहीं होंगी, तब तक देश का बहुमुखी विकास नहीं होगा। ग़ालिब ने इसी अक्षर महिमा को जोड़ने का प्रयास किया।
अभ्यास
कविता के साथ
प्रश्न 1. 'गालिब गैर नहीं हैं, अपनों से अपने हैं' के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर- कवि त्रिलोचन ने उर्दू के महान शायर 'मिर्जा गालिब' को गैर नहीं अपनों से भी अपना कहा है। कवि का मानना है कि गालिब हिन्दी साहित्य के लेखकों से अलग नहीं है। गालिब को भी अन्य हिन्दी साहित्यकारों के समान ही जीवन-दर्शन, सामाजिक दर्शन तथा प्रकृति के विभिन्न रहस्यों को जनहित में उद्घाटित करने का कार्य अपने शायरी के माध्यम से किया है। ग़ालिब ने कथ्य और तथ्य का सारगर्भित चित्रण बड़े ही सहज, स्वाभाविक तथा ठठपन में किया है जो शिक्षाप्रद और जनकल्याणकारी है। इस प्रकार गालिब ने जनहित में लेखन कार्य कर हिन्दी जनता का जातीय कवि होने का गौरव प्राप्त कर लिया है ।
प्रश्न 2. 'नवीन आँखों में जो नवीन सपने हैं' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर- सपने जीव जगत् की अबूझ सच्चाई होते हैं। सोने के बाद हम जो सपने देखते हैं उन पर हमारा कोई जोर नहीं चलता। लेकिन जाग्रत अवस्था में हम जो योजनाएँ बनाते हैं, वे भी सपने ही होती हैं। आम जन व्यष्टि आकांक्षा में संबंधित जाग्रत सपने देखते हैं। किन्तु समष्टि कल्याण के सपने नवीन सोच वाले लोग ही देखते हैं। ये लोग जिनके विचार और दृष्टिकोण संकुचित नहीं, उनकी आँखें नवीन हैं और उन आँखों में देश, विश्व और संपूर्ण चराचर जगत के कल्याण, विकास तथा हित के सपने होते हैं। कवि के कहने का आशय यही है।
प्रश्न 3. 'सुख की आँखों ने दुःख देखा और ठिठोली की' में कवि का किन दुःखों की ओर संकेत है?
उत्तर- पराधीनता की बेड़ी में जकड़े भारत के आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक जीवन में व्याप्त दुखों का वर्णन गालिब की रचनाओं में मिलता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के सुख को देखनेवाली आँखे, भारत की रूग्ण और दारुण-दशा से व्यथित हैं। ये अपने जीवन की कठिनाइयों भरे मार्ग से उतना दुःखी नहीं हैं, ये तो जीवन के साधक कवि हैं जिसकी आँखों में एक सजग, सबल, सुशिक्षित, स्वावलम्बी तथा सर्वशक्तिसम्पन्न भारत का सपना बसा हुआ है। उन्हें अपने व्यक्तिगत जीवन के दुःखों से ठिठोली करने की तो आदत सी पड़ गई है।
प्रश्न 4. गालिब ने अक्षर-में-अक्षर की महिमा किस तरह जोड़ी ?
उत्तर- गालिब यह अच्छी तरह जानते थे कि हिन्दी, संस्कृत, फारसी, अरबी, जैसी भाषाओं के अक्षरों तथा शब्दों का जब तक मधुसंपर्क तैयार नहीं होगा तब तक हिन्दुस्तान की आवाज की बुलंदी नहीं होगी। जब तक भाषिक स्तर पर दूरी कम नहीं होगी, दिलों की दूरियाँ कम नहीं मिलेंगी तब तक हिन्दुस्तान का बहुमुखी विकास नहीं होगा। गालिब ने इसी अक्षर महिमा को जोड़ने का प्रयास किया है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
" अपना कहने को क्या था, धन-पान नहीं था, सत्य बोलता था, जब जब मुँह खोल रहे थे।"
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रगतिवाद काव्यधारा के प्रमुख कवि त्रिलोचन विचरित 'गालिब' शीर्षक सॉनेट से उद्घृत है। इस कविता में कवि ने उर्दू के महान शायर मिर्जा गालिब के व्यक्तित्व और कृतित्व का गहराई से अनुशासीन किया है। गालिब की जिन्दगी का चित्रण करते हुए कवि त्रिलोचन कहते हैं कि भले ही गालिब के पास धन संपत्ति नहीं थी, लेकिन उन्होंने अपनी सत्यनिष्ठा के संबल को कभी नहीं छोड़ा। गालिब की शायरी समयानुरूप थी, जिसमें से मानव-जीवन के तार सहज ही अंकृत होते हैं। उन्होंने जब भी मुँह खोला, वह सत्य पर आधारित भारतीय जनजीवन का सारगर्भित तत्व था। गालिब सादगी, सरलता, तथा सत्यनिष्ठा के लिए विख्यात थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण वे हिन्दी साहित्य के इतने करीब पहुँच सके थे।"
प्रश्न 6. इस रचना के आधार पर गालिब के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं?
उत्तर- प्रगति काव्यधारा के प्रसिद्ध कवि त्रिलोचन ने अपनी रचना 'गालिब' में गालिब के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं का चित्रण किया है-
(i) गालिब हमदर्द व मिलनसार इन्सान थे।
(ii) गालिब ने हमारी बोली को तराशकर विभिन्न भाषाओं को एक जगह लाने का कार्य किया जिसके परिणामस्वरूप आज हिन्दी में फारसी, उर्दू, अरबी के शब्द घुलमिल कर आम आदमी की जुबान पर चढ़ गए हैं।
(iii) उनकी शायरी में छिछोरापन नहीं है।
(iv) गालिब ने कम शब्दों में अधिक व बेजोड़ ढंग से लिखा है।
(v) गालिब बुरी आदतों (शराब व जुए के कारण हमेशा आर्थिक रूप से तंग रहे।
(vi) गालिब ने सच का हमेशा साथ दिया और उन्होंने कभी भी सच का दामन नहीं छोड़ा।
(vii) गालिब एक सच्चे योद्धा की तरह हिन्दू और मुसलमानों को एकता का पाठ पढ़ाकर इस संसार से कूच कर गए।
प्रश्न 7. 'गालिब होकर रहे' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर- 1. गालिब का पूरा नाम मिर्जा असदउल्लाह खाँ था। ये उर्दू, अरबी तथा फारसी के महान शायर थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को अपनी आँखों से देखा था।
2. प्रस्तुत कविता में कवि त्रिलोचन ने कहा है 'गालिब होकर रहे'। गालिब का अर्थ है-श्रेष्ठ, शक्तिशाली, जीतनेवाला ।
3. कवि के कहने का आशय यह है कि गालिब ने अपनी रचनाओं द्वारा श्रेष्ठ जीवन-मूल्यों का प्रक्षेपण किया।
4. अपने समकालीन शायरों व कवि पर अपनी शायरी का सिक्का जमाकर आम जनता को भी अपनी शायरी का दीवाना बनाया।
Read More
0 टिप्पणियाँ