"मैथिलीशरण गुप्त उस युग के प्रतीक पुरुष थे, जिसका एक प्रमुख लक्षण या- एक भारतीय अस्मिता की खोज की व्याकुलता। यह व्याकुलता राष्ट्रीयता का या राष्ट्र-मुक्ति के संग्राम का केवल परिणाम नहीं थी, बल्कि उसका कारण भी थी।गुप्तजी भारतीयता में निष्णात थे, उसके खोजी नहीं थे, हमारी ही भारतीयता की खोज हमें उनकी देहरी तक ले आती है। उसी देहरी पर खड़ा होकर मैं उनका स्वरूप निहारता हूँ। उनके काव्य की देहरी सांस्कृतिक भारत की देहरी है, जहाँ से कोई रीता नहीं लौटता, आप्यायित होकर ही लौटता है।
(भारतीयता की खोज) - अज्ञेय
6. मैथिलीशरण गुप्त
कवि-परिचय
जीवन-परिचय :
- मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के एक प्रमुख कवि थे।
- इनका जन्म 3 अगस्त, 1886 चिरगाँव में जिला झांसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
- इनकी कविता 'सरस्वती' पत्रिका के माध्यम से परवान चढ़ी। फिर 'भारत-भारती' का स्वर तो ऐसा गूंजा कि स्वाधीनता सेनानियों के ओठों पर इस काव्य की पंक्तियाँ हर समय विराजमान रहने लगीं।
- बासी पूरियों का नाश्ता पसन्द करने वाले गुप्तजी की जीवन लीला 1964 ई. को समाप्त हुई।
- कविवर गुप्तजी 'सादा जीवन उच्च विचार' के सच्चे प्रतीक थे। अपनी काव्य-साधना के दौरान इन्होंने कई पुरस्कार जीते तथा राष्ट्रभाषा सलाहकार परिषद के अध्यक्ष भी बने।
- जब ये दिल्ली में राज्यसभा के मनोनीत सदस्य थे, तब भी इनके निवास पर ज्ञानियों तथा गुणियों की शानदार महफिलें सजा करती थीं।
- गुप्तजी परम रामभक्त कवि थे। वे अपनी काव्य-कुशलता को भी श्रीराम का ही प्रसाद मानते रहे- “राम! तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है, कोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है। 'साकेत' राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का श्रेष्ठतम महाकाव्य है। उनकी कृतियों में जीवन की अनन्त विविधता एवं बहुरंगिता मिलती है।
- प्रमुख रचनाएँ :- इनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-साकेत, भारत-भारती, सिद्धराज, यशोधरा, किसान, रंग में भेद, जयद्रथ वध, प्रदक्षिणा, पत्रावली, नहुष, कुणाल-गीत, पंचवटी, विष्णुप्रिय, द्वापर, त्रिपथगा, सैरिन्ध्री, चन्द्रहास, जय भारत, हिन्दू, गुरुकुल आदि। अनुदित रचनाएँ: विरहिणी, ब्रजांगना, मेघनाद, वीरांगना, प्लासी का युद्ध, उमर खय्याम और तिलोत्तमा आदि। नारी के लिए पूज्यभाव, राष्ट्रीयता, दलित शोषित वर्ग की पीड़ा, विश्वव्यापी मानवता, प्रकृति चित्रण का आलम्बन व उद्दीपन रूप गुप्त जी के काव्य के प्रमुख विषय रहे हैं।
- भाषा-शैली : भाषित स्तर पर गुप्त जी खड़ी बोली के प्रतिनिधि कवि हैं लेकिन संस्कृत तथा आम शब्दों का भी उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रचुर प्रयोग किया है।
प्रबन्धात्मकता, गीतात्मकता तथा उपदेशात्मकता जहाँ शैलियों पर हावी हैं, वहाँ परिस्थिति के अनुरूप ओज, प्रसाद और माधुर्य गुण भी प्राप्त होते हैं। उपमा, रूपक अतिश्योक्ति, उत्प्रेक्षा, विभावना, संदेह आदि अलंकारों और गीतिका, हरिगीतिका, शिखरिणी, पीयूष वर्णन, मालिनी, घनाक्षरी, सवैया और कवित्त आदि छंदों का उपयोग कर अपनी कविता को स्थायित्व और महत्त्व प्रदान किया है।
- काव्यगत विशेषताएँ: गुप्तजी ने अपने व्यापक उद्देश्य और कथा के अनुरूप ही प्रबंध काव्य को माध्यम बनाया और आधुनिक युग में प्रबंधकाव्य की लुप्त हो रही परंपरा को पुनर्जीवित किया था। उन्होंने कई महाकाव्यों व खण्डकाव्यों की रचना की।
'द्वापर' कृष्ण कथा तथा 'यशोधरा' बुद्ध कथा को लेकर लिखे गए बहुत ही लोकप्रिय काव्य हैं। 'गुरुकुल' नामक अपनी रचना में उन्होंने सिख गुरुओं की महिमा का गान किया है।
झंकार
पद -1
हों तेरी तंत्री के तार,
आघातों की क्या चिंता है,
उठने दे ऊँची झंकार ।
नाचे नियति, प्रकृति सुर साधे
सब सुर हों सजीव, साकार
देश-देश में, काल-काल में
उठे गमक गहरी गुंजार ।
कर प्रहार, हाँ, कर प्रहार तू
भार नहीं, यह तो है प्यार,
प्यारे और कहूँ क्या तुझसे
प्रस्तुत हूँ मैं हूँ तैयार।
शब्दार्थ : आषात - चोट । भारत - बोझ । प्रहार - वार, आक्रमण
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश स्वतंत्र भारत के प्रथम अघोषित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त रचित 'झंकार' नामक कविता से उद्धृत है। राष्ट्रकवि का मानना है कि कोई राष्ट्र केवल तभी उन्नति कर सकता है जब उस राष्ट्र के हर नागरिक में अपने राष्ट्र के प्रति उत्सर्ग की भावना हो ।
व्याख्या - कवि एक सत्यनिष्ठ देशभक्त के रूप में घोषणा करता है कि अगर मातृभूमि रूपी वीणा के तार बनने की आवश्यकता है, तनाव सहन करने की आवश्यकता है तो मैं अपने शरीर की सारी शिराओं को तंत्री का तार बनाने को तैयार हूँ। मुझे आयातों, यारों तथा चोटों की कोई चिन्ता नहीं है। मेरा एकमात्र लक्ष्य इस विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाना उसकी झंकार विश्व के कोने-कोने तक पहुँचाना है।
कवि कहता है कि मातृभूमि के उत्कर्ष में वह नियति नियामक न बनकर एक घटक बने, प्रकृति सहयोगिनी बने ताकि उन्नति
और विकास के जितने भी सुर स्वर हैं ये सब साकार हो उठे। में ऐसी गुंजार चाहता हूँ जिससे यह सुर-संधान देशकाल की सीमा के परे जा पहुँचे। मैं हर प्रकार के प्रहार सहन करने के लिए तैयार हूँ। कवि कहता है कि हे मेरे शत्रु देशों, तुम्हें जो प्रहार करना हो, या मुझे मार्ग से हटाने के इच्छुक हो तो तुम अपना भरसक प्रयत्न कर लो, मैं इसे प्यार समझकर स्वीकार कर लूँगा। मैं तन-मन-धन सभी प्रकार से हर प्रहार, सहने को तैयार हूँ।
पद - 2
तान तान का हो विस्तार
अपनी अंगुली के धक्के से
खोल अखिल श्रुतियों के द्वार।
ताल ताल पर भाल झुका कर
मोहित हो सब बारंबार
लय बँध जाए और क्रम क्रम से
सम में समा जाय संसार ।।
शब्दार्थ : अखिल संपूर्ण मोहित मंत्र-मुग्ध समासमाना।
प्रसंग : पूर्ववत् ।
व्याख्या : कवि की अभिलाषा है कि उसके देश का स्वरूप इस तरह से बने कि सारा संसार उस पर मोहित हो जाए, जैसे मधुर और मन मोहक ताल सुनने का बार-बार मन करता है, मन और हृदय सभी मुक्त होते हैं।
अब कवि चाहता है कि इस देश में अवगुंठन के लिए कोई स्थान न हो ऐसी समवाली भावभूषितैयार हो कि वसुधैव कुटुम्बकम् की कल्पना ही साकार हो उठे।
अभ्यास प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवि ने अपने शरीर की सकल शिराओं को किस तंत्री के तार के रूप में देखना चाहा है?
उत्तर- मैथिलीशरण गुप्त एक राष्ट्रभक्त कवि थे, इसीलिए उन्होंने अपने शरीर की सकल शिराओं को मातृभूमि के विकास रूपी तंत्री के रूप में देखना चाहा है। कवि ने अपनी संचित की गई सम्पूर्ण ऊर्जा को मातृभूमि के विकास में लगा देना चाहा है।
प्रश्न 2. कवि को आपातों की चिन्ता क्यों नहीं है?
उत्तर-कवि को आघातों की चिन्ता इसलिए नहीं है कि यह स्वयं का एकनिष्ठ भाव से राष्ट्र के उत्थान और सांस्कृतिक विकास के लिए समर्पित कर चुका है।
प्रश्न 3. कवि ने समूचे देश में किस गुंजार के गमक उठने की बात कही है?
उत्तर- राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त गुलाम भारत में आजादी प्राप्ति हेतु शौर्य, पराक्रम तथा पौरुष का संचार करना चाहते हैं, जिसके बल पर पूरे भारत वर्ष में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष का स्वर गुंजारित हो सके। कवि स्वतंत्रता आंदोलन में समस्त देशवासियों की सक्रिय सहभागिता चाहता है। वह स्वतंत्रता प्राप्ति के गुंजार का गमक सम्पूर्ण देश में गुंजारित करने की बात कहता है।
प्रश्न 4. 'कर प्रहार, हो कर प्रहार तू,भार नहीं, यह तो है प्यार। 'यहाँ किससे प्रहार करने के लिए कहा जा रहा है। यहाँ भार को प्यार कहा गया है। इसका क्या अर्थ है?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-1 में संकलित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त रचित 'झंकार' नामक कविता से उधृत हैं।
जब सांगीतिक वातावरण में संगत करते कलाकार विभिन्न प्रकार के स्वरों, लयों का तथा अपनी कलाकारिता का प्रदर्शन इस भाव से करे कि सामने वाला कलाकार निरुतर हो जाए। लेकिन एक समर्थ कलाकार उसका तोड़ प्रस्तुत करता चलता है। जिससे वहाँ स्वस्थ प्रतियोगी वातावरण बनता है तब दर्शकों को परम आनंद की अनुभूति होती है। प्रस्तुत पंक्तियों में प्रहार का यही अर्थ है, यहाँ एक कलाकार कलावत अपने समकक्ष कलाकार को, राग, स्वर, ताल, के माध्यम से प्रहार करने और खुद को उसका प्रतिकार करने के लिए प्रस्तुत होने की बात करता है।
कवि का मानना है जब तक चुनौती नहीं हो निखार नहीं आता। कवि चुनौतियों, जवाबदेहियों, तथा दायित्वों को भार स्वरूप नहीं बल्कि प्यार स्वरूप स्वीकार करता है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
(क) मेरे तार तार से तेरी
तान तान का हो विस्तार,
अपनी अंगुली के पक्के से
खोल अखिल श्रुतियों के द्वार
उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित 'झंकार' नामक कविता से ली गई हैं। कवि का मानना है कि एक राष्ट्र केवल तभी फल-फूल सकता है जब उस राष्ट्र के हर नागरिक में राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव हो। म्याख्या-कवि कहता है कि वीणा से, स्वर केवल तभी निकलता है जब उसके तार अपनी जीवनाहुति देते हैं, अर्थात् स्वर निकालने से पहले वीणा के तारों को ताना जाता है।
इन पंक्तियों में कवि अपने शरीर की शिराओं को तार बनाने को तैयार है और चाहता है कि इस राष्ट्र रूपी वीणा की आवाज काफी दूर-दूर तक गूंजे। तारों पर अंगुलियों का आघात इतना जोरदार होना चाहिए कि सम्पूर्ण विश्व को इसकी आवाज सुनाई दे। यहाँ कवि के कहने का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के हृदय के तार अपनी मातृभूमि के उज्ज्वल भविष्य हेतु बज उठें।
(ख) ताल-ताल पर भात झुकाकर
मोहित हो सब बारम्बार,
लय बैंप जाए और क्रम-क्रम से
सम में समा जाए संसार ।
उत्तर- प्रसंग- पूर्ववत् ।
व्याख्या - व्याख्येय पंक्तियों में कवि ने संगीत के प्रभाव की चर्चा की है। कवि कहता है कि संगीत की भाषा तो अनपढ़ लोग भी समझ लेते हैं। लेकिन जब संगीत का समा बँध जाता है तो हर थाप पर हर ताल पर, प्रत्येक आरोह-अवरोह के साथ श्रोता स्वयं को भूलकर संगीत के सम्मोहन में बंधे सिर झुकाते रहते हैं अर्थात् आनन्द उठाते हैं। उस समय उन्हें अलौकिक आनन्द का अनुभव होने लगता है।
यहाँ कवि कहता है कि हमें इस कला को इतना ऊँचा ले जाना चाहिए कि इस कला से सम्पूर्ण विश्व ही मोहित हो उठे, समूचे विश्व को क्षण भर के लिए ही सही, ईश्वर का साक्षात्कार हो जाए।
प्रश्न 6. कविता का केन्द्रीय भाव क्या है? अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर- मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित 'झंकार' नामक कविता का केन्द्रीय भाव है कि देश प्रत्येक नागरिक में अपने राष्ट्रहित के उत्सर्ग हेतु भाव हो। अर्थात् राष्ट्र के बहुमुखी विकास के लिए व्यक्ति अपना सर्वस्व समर्पण कर दे। कवि चाहता है कि हमारे देश की विश्व में एक अलग पहचान बने, हमारा राष्ट्र खुशहाल, हो समृद्धिशाली हो। इसका हर नागरिक अपने निजत्व को त्यागकर देश हित में अपनी योग्यता का विस्तार करे।
सभी आघातों को सहते हुए देश के प्रत्येक नागरिक का ध्यान केवल राष्ट्रहित में ही होना चाहिए। आपस में भाईचारा हो, वर्ण तथा वर्ग भेद समाप्त हो। एक-दूसरे के सहयोगी बनकर विश्व के लिए एक कल्याणकारी आदर्श बनें।
प्रश्न 7. कविता में सुरों की चर्चा है। इनके सजीव साकार होने का क्या अर्थ है?.
उत्तर- मैथिलीशरण गुप्त की झंकार शीर्षक कविता संगीत की पृष्ठभूमि में रचित है। संगीत के घटक सुर स्वर होते हैं। जब एक गायक के गले से स्वरों का आरोह-अवरोह निःसृत होता है तो एक जीवन्त अवलोक का सृजन होता है। सुनने वाले को ऐसा लगता है कि स्वर केवल कान के माध्यम से ही नहीं सुन रहे, बल्कि आँखों के सामने साकार रूप में उपस्थित हैं। स्वरों की सर्वोत्तम प्रेषणीयता ही सजीव साकार का अर्थ ग्रहण करती है।
प्रश्न 8. इस कविता का स्वाधीनता आन्दोलन से कोई सांकेतिक सम्बन्ध दिखायी पड़ता है। यदि हाँ तो कैसा?
उत्तर- राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता 'झंकार' में भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष का स्वर स्पष्ट रूप से गुंजारित है। इस कविता में कवि का राष्ट्र प्रेम, स्वतंत्रता प्राप्ति की उत्कृष्ट अभिलाषा तथा भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की उत्प्रेरणा का स्वर अनुगुजित है। इस दिव्यभूमि की आजादी के लिए व्याकुल कवि का हृदय मुक्ति की हर संभव युक्ति निकालने को तैयार है तथा सम्पूर्ण हिन्द को इस स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़ने का आह्वान करता है जो उसकी उत्कृष्ट देशभक्ति को रेखांकित और विश्लेषित करता है। कविता में स्वाधीनता आन्दोलन की अंतर्व्याप्ति तथा मुक्ति की प्यास स्पष्ट दिखाई देती है। समूचा राष्ट्र • स्वाधीनता के लिए आन्दोलित होकर सदियों की गुलामी से मुक्ति पाने हेतु कृतसंकल्पित है। प्रस्तुत कविता में सम्पूर्ण राष्ट्र की एकीभूत मुक्तिकामना की गीति गमक गुंजारित एवं झंकृत है।
प्रश्न 9. वर्णनात्मक कविता लिखने के लिए 'द्विवेदी युग' के कवि प्रसिद्ध थे। किन्तु इस कविता में छायावादी कवियों जैसी शब्द योजना, भावाभिव्यक्ति एवं चेतना दिखाई पड़ती है कैसे? इस पर विचार करें।
उत्तर- द्विवेदी युग की कविता वर्णनात्मक होती थी। परन्तु 'झंकार' कविता द्विवेदी युग की होकर भी इसमें छायावादी कवियों जैसी भावाभिव्यक्ति शब्द योजना, एवं चेतना दिखाई पड़ती है। भले ही मैथिलीशरण गुप्त इतिवृत्तात्मक रचनाएँ कर रहे थे, लेकिन छायावाद भी उस समय चल रहा था। छायावाद का प्रभाव गुप्त जी पर स्पष्ट दिखाई देता है। गुप्त जी भी सुरों के सजीव तथा साकार होने की कल्पना करने लगे। उन्हें भी अलौकिक आनन्द की अनुभूति होने लगी। इसीलिए कुछ प्रतिबद्धताओं के बावजूद भी कवि छायावाद की विशेषताओं से खुद को अलग नहीं कर पाए। इस प्रकार प्रस्तुत कविता में छायावादी भाव स्पष्ट झलकने लगे, भाषा तथा भाव दोनों में छायावादी पुट स्पष्ट नजर आने लगा।
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