मेरी वियतनाम यात्रा Class 11th Hindi Chapter -6 Bihar board | लेखक भोला पासवान शास्त्री | सारांश


बिहार बोर्ड Class 11th Hindi 

Chapter -6 मेरी वियतनाम यात्रा

लेखक- भोला पासवान शास्त्री

बिहार बोर्ड कक्षा- 11वी हिंदी दिगंत भाग-01 चैप्टर( मेरी वियतनाम यात्रा) लेखक परिचय, सारांश, प्रश्न उत्तर


लेखक-परिचय: - 

1. स्वतंत्रता सेनानी श्री भोला पासवान शास्त्री का जन्म 1914 में बिहार राज्य के पूर्णिया जिले के बैरमाछी नामक गाँव में हुआ था।

 2 . इनके पिता का नाम श्री धूसर पासवान था।

3. इन्होंने अपनी शिक्षा बिहार विद्यापीठ एवं काशी विद्यापीठ, वाराणसी से प्राप्त की। 

4. इन्होंने सन् 1940 में वाराणसी से ही स्नातक परीक्षा पास की।


श्री भोला शास्त्री जी छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे।

इन्होंने 1942 के राष्ट्रीय आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 21 माह का कठोर कारावास भुगतना पड़ा। 1946 में उन्हें बिहार काँग्रेस कमेटी का सदस्य चुना गया।

 1952 के आम चुनाव में वे बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए और मंत्री भी बने। वे 1957, 1962 एवं 1967 के चुनावों में भी विधायक चुने गए। उन्हें 1968 से 1972 के बीच तीन बार मुख्यमंत्री चुना गया। 

वे 1972 में राज्यसभा सदस्य चुने गए और फरवरी 1973 में केंद्रीय मंत्री बने। 1976 में वे पुनः राज्य सभा सदस्य चुने गए और 1982 तक संसद सदस्य के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान करते रहे। 10 सितंबर 1984 को उनका देहावसान हुआ।


श्री भोला पासवान शास्त्री जी बिहार के प्रबुद्ध नागरिकों, राजनीतिज्ञों एवं पत्रकारों के बीच सादगी, देशभक्ति, लोकनिष्ठा, पारदर्शी ईमानदारी के लिए दुर्लभ उदाहरण के रूप में याद किए जाते हैं। वे सिद्धांतों की राजनीति करने वाले नेता थे। कोई भी प्रलोभन उन्हें अपने आदर्शो और मूल्यों से डिगा नहीं सकता था। उन्होंने कभी व्यक्ति, जाति या समुदाय विशेष की राजनीति नहीं की। राष्ट्रहित के लिए वे निरंतर सचेष्ट रहते हुए बड़े से बड़ा त्याग करने को तत्पर रहते थे।


साहित्यिक रचनाएँ उनकी कृतियों में वाणी प्रकाशन द्वारा 1983 में प्रकाशित की गई 'वियतनाम की यात्रा' प्रमुख है। उनके कई लेख एवं टिप्पणियाँ अब तक अप्रकाशित हैं।


संपादन कार्य : उन्होंने पूर्णिया से प्रकाशित होने वाले हिंदी साप्ताहिक 'राष्ट्र संदेश' का संपादन किया। वे पटना से प्रकाशित हिंदी दैनिक 'दैनिक राष्ट्रवाणी' तथा कोलकाता के दैनिक पत्र 'लोकमान्य' के संपादक मंडल के सदस्य भी रहे हैं।



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स्मृति पर जोर डालने पर लगता है कि बात कोई चालीस वर्ष पहले की है। हो सकता है दो-चार वर्ष और पहले की हो। एक दिन बड़े अलस और अन्यमनस्क भाव से हिंदी की किसी मासिक पत्रिका के पन्ने उलट-पलट रहा था। हठात् एक पन्ने पर पेंसिल स्केच की एक तस्वीर दिखी। बड़ा दुबला-पतला, सादगी का नमूना एक आदमी। लेकिन व्यक्तित्व बड़ा ही प्रेरणाप्रद, चमत्कारी, तेजस्वी और मैजेस्टिक फेफड़ों में प्राणवायु फूंकने वाला महामानव कोई मसीहा । राजनीतिक फकीर जैसा। सव्यसाची। उनकी लहसुननुमा दाढ़ी बड़ी फबती थी। उनकी बाहर की आकृति से भीतर की प्रतिकृति परिलक्षित हो रही थी। देखकर लगा जैसे मैंने कोई निधि पा ली हो। सद्यःस्नात-सा चित्त प्रसन्न हो उठा। ये कौन हैं, कहाँ के हैं और क्या हैं, जानने की सुधि भी नहीं रही। देखता ही रह गया उस तस्वीर को उतने ही कलात्मक ढंग से उस तस्वीर के नीचे छोटे और पतले हरफों में लिखा था- 'हो-ची-मीन्ह'। इतने वर्ष पहले देखी हुई उस तस्वीर की जीवतता तथा प्रभावकारिता बराबर मेरे मानस पटल पर अंकित रही है। वह तस्वीर अंतःसलिला फल्गु नदी की तरह मेरे हृदय को सींचती रही।


कुछ दिनों बाद उस महान विभूति की कहानी पढ़ने को मिली। आज से लगभग नब्बे वर्ष पहले जब वियतनाम विदेशी साम्राज्यवाद के शिकंजे में जकड़ा हुआ था और उसकी अपनी राष्ट्रीयता अंधकार से ढँकी हुई थी, उन्हीं दिनों वहाँ की भूमि पर उस महान पुरुष का जन्म हुआ था। उन्होंने वियतनाम की जनता को गुलामी से मुक्ति दिला कर सतत उति की दिशा में अग्रसर करने के लिए मार्गदर्शन किया।

Related Questions


1. लेखक के अनुसार 'हो-थी-मीन्ह' की तस्वीर कैसी थी?

Ans- दुबला-पतला, सादगी का नमूना एक आदमी

2. कितने वर्ष पहले वियतनाम विदेशी साम्राज्यवाद के शिकंजे में जकड़ा हुआ था?

Ans- नब्बे (90) वर्ष पहले।

3. लेखक को आवृत्ति देखकर कैसा लगता है?

Ans- कोई निधि पा लेने जैसा ।

4.'हो-ची-मीन्ह' ने किस देश की जनता को मुक्त कराया था?

Ans - वियतनाम की जनता को


अंतरराष्ट्रीयता पनप नहीं सकती, जब तक राष्ट्रीयता का पूर्ण विकास न हो। इसके लिए उन्होंने क्रांति, बलिदान और त्याग का पैगाम दिया। इसीलिए वे विश्वद्रष्टा कहलाए और विश्व विश्रुत हुए। इसमें संदेह नहीं कि उनका जीवन कभी नहीं सूखने वाले प्रेरणास्रोत के समान बना रहेगा और मानव मात्र को त्याग, बलिदान और आजादी के लिए संघर्ष की प्रेरणा देता रहेगा।


दिन बीतते गए। जब बिहार से दिल्ली आया तो सबसे पहले मुझे मॉरीशस जाने का मौका मिला। बड़ा आनंद आया । यह मेरी पहली विदेश यात्रा थी। अब जब कभी कहीं बाहर जाने का मौका मिलता है, यहाँ चला जाता हूँ। भरसक प्रयत्न करता हूँ कि उस अवसर को हाथ से न जाने दूँ। वियतनाम की यात्रा के बारे में भी यही बात है। मेरी जीवन यात्रा के लगभग दस दिन वियतनाम में बीते हैं।


समय पर घोषणा हुई। मित्रों ने 'यात्रा शुभ हो कहकर विदा किया। हम एयर इंडिया के बोइंग विमान 707 में आ गए। फिर अंतिम घोषणा हुई। विमान धीरे-धीरे रनवे पर बढ़ने लगा। रफ्तार तेज होती हुई जान पड़ी और देखते-देखते उसने धरती से अपना नाता तोड़कर आसमान से अपना संबंध जोड़ लिया। फिर अपनी गति को तेज करता हुआ आकाशमार्ग से बैंकाक की ओर चल पड़ा। बैंकाक तक बिना रुके उड़ान करनी थी।


1. 'हो-थी-मीन्ह' क्रान्ति, बलिदान और त्याग के लिए क्या कहलाये? 

Ans- विश्यद्रष्टा

2. लेखक ने वियतनाम में कितने दिन बिताए थे? 

Ans- लगभग दस दिन।

3. 'हो-ची-मीन्ह' का जीवन हमें क्या प्रेरणा देता रहेगा? Ans- क्रांति, बलिदान और त्याग का

4. लेखक ने किस विमान में यात्रा शुरू की थी? 

Ans- एयर इंडिया के बोइंग विमान 707 में


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Question Answer


प्रश्न 1. हो-ची-मीन्ह की तस्वीर अंतःसलिला फल्गू नदी की तरह लेखक के हृदय को सींचती रही है। लेखक हो-बी-मीन्ह से इतना प्रभावित क्यों है?

उत्तर-लेखक के हो-ची-मीन्ह से इतना प्रभावित होने के निम्नलिखित कारण हैं- (i) 'हो-ची-मीन्ह का व्यक्तित्व चमत्कारी, मैजेस्टिक और तेजस्वी था, जिससे लोगों को प्रेरणा मिलती थी।

(ii) वे अत्यंत सादा जीवन व्यतीत करते थे। वे सादगी का नमूना प्रतीत होते थे। 

(iii) वे अपनी तस्वीर (पेंसिल स्केच) में मसीहा और महामानव जैसे दिखते थे।

(iv) वे राजनीति में गहरी रुचि रखते थे, लेकिन उन्होंने राजनीति को कभी भी आमदनी का साधन नहीं माना, इसलिए ऐसे लगते थे जैसे वे राजनीतिक फकीर हों।


प्रश्न 2. 'अंतर्राष्ट्रीयता पनप नहीं सकती, जब तक राष्ट्रीयता का पूर्ण विकास न हो।' इस कवन पर विचार करें और अपना मत दें।

उत्तर- हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-1 में संकलित 'मेरी वियतनाम यात्रा' नामक पाठ में लेखक भोला पासवान शास्त्री ने वियतनाम के सुप्रसिद्ध नेता हो-ची-मीन्ह के प्रति बड़े सम्मान और श्रद्धा का भाव प्रदर्शित किया है। उन्होंने उनके महान व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें न केवल एक अप्रतिम राष्ट्र भक्त कहा है, बल्कि विश्वद्रष्टा भी बताया है।

इस के विषय में ही लेखक ने अपना यह सत्यपूर्ण और सारगर्भित विचार व्यक्त किया है कि जब तक राष्ट्रीयता का पूर्ण विकास न हो, तब तक अंतर्राष्ट्रीयता कभी भी नहीं पनप सकती। लेखक का यह अभिमत अनुभव सिद्ध एवं युक्ति युक्त है। अंतर्राष्ट्रीयता भी वस्तुतः राष्ट्रीयता की भावना का ही परिधि विस्तार है। इसलिए जब तक हमारे अंदर राष्ट्रीयता की भावना बलवती न होगी तब तक हम अंतर्राष्ट्रीयता की भावना को भी आत्मसात न कर सकेंगे। हालांकि कुछ लोगों के अनुसार राष्ट्रीयता अंतर्राष्ट्रीयता में बाधक है, लेकिन हमें ऐसा एकदम नहीं लगता। वास्तव में जो व्यक्ति अपने देश को अपना नहीं समझ सकता, वह व्यापक विश्व समाज को अपना कभी भी नहीं समझ सकता। इसलिए हम लेखक के उपर्युक्त कथन से पूरी तरह सहमत हैं। होती हैं।


प्रश्न 3. विश्वदष्टा और विश्व विश्रुत हुए। पाठ के आधार पर उनके व्यक्तित्व की विशेषताएँ बताइए। 

उत्तर- 'मेरी वियतनाम यात्रा' नामक पाठ के आधार पर हो-ची-मीन्ह के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ परिलक्षित होती है

(i) महान स्वतंत्रता सेनानी- हो ची-मीन्ह का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब वियतनाम विदेशी साम्राज्यवाद के शिकंजे में जकड़ा पड़ा था। उसकी राष्ट्रीयता अंधकार से टैंकी हुई थी। उन्होंने अथक संघर्ष और प्रयास किया जिससे वियतनाम को गुलामी से स्वतंत्रता मिली। उन्होंने वियतनाम वासियों को हमेशा उन्नति का मार्ग दिखाया।

(ii) प्रेरणाप्रद व्यक्तित्व-वियतनाम के सुप्रिसद्ध नेता हो-ची-मीन्ह का व्यक्तित्व जादुई था। लोग इनके चमत्कारी और तेजस्वी व्यक्तित्व से अप्रभावित नहीं पाते थे। उनका व्यक्तित्व लोगों के लिए एक प्रेरणास्रोत था।

(iii) सादगी का नमूना हो-ची-मीन्ह बहुत ही सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। वे दिखावे से कोसों दूर रहते थे। वियतनाम के प्रथम राष्ट्रपति बनने पर उन्होंने फ्रांसीसी गर्वनर जनरल के शाही उत्तर महल में रहने का प्रस्ताव ठुकरा दिया और एक साधारण से मकान में रहने का फैसला किया और आजीवन उसी में रहे।

(iv) राष्ट्रीयता एवं अंतर्राष्ट्रीयता को बढ़ावा देने वाले हो-थी-मीन्ह उन नेताओं में से थे जिन्होंने जनता में राष्ट्रीयता की भावना पैदा की, जिससे उनमें अंतर्राष्ट्रीय भावना विकसित हो सके। इसके लिए उन्होंने क्रांति, त्याग और बलिदान का संदेश दिया।

अपनी उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर हो-ची-मीन्ह केवल वियतनाम के ही नेता बनकर नहीं रहे, बल्कि ये विश्व-विश्रुत और विश्वद्रष्टा हुए।


प्रश्न 4. 'जिंदगी का हर कदम मंजिल है। इस मंजिल तक पहुंचने से पहले साँस रुक सकती है। इस कथन का क्या अभिप्राय है?

उत्तर- हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक के दिगंत भाग-1 में संकलित 'मेरी वियतनाम यात्रा' नामक यात्रावृत्तांत के लेखक भोला पासवान शास्त्री ने वियतनाम यात्रा के आरंभ में अपनी मनःस्थिति के संदर्भ में विवेच्य कथन कहा है। इसका आशय यह है कि जिन्दगी का प्रत्येक कदम अपने आप में एक मंजिल के समान है। मंजिल पर पहुँचने के बाद व्यक्ति पल भर विश्राम करता है। लेकिन किस कदम पर व्यक्ति के जीवन में विराम लग जाए, यह नहीं कहा जा सकता। अर्थात् जीवन कब, कहाँ और कैसे रुक जाएगा यह हमेशा अज्ञात ही रहता है। इसलिए लेखक को व्यक्ति का हर कदम एक मंजिल जैसा प्रतीत होता है।


प्रश्न 5. वियतनामी भाषा में 'हांग खोंग' और 'हुअ सेन' का क्या अर्थ है? 

उत्तर- वियतनामी भाषा में 'हांग' का अर्थ मार्ग और 'खोंग' का अर्थ हवा होता है। इसको अंग्रेजी में हम एयर वियतनाम हेंगे। वियतनामी भाषा में 'हुअ सेन' का अर्थ है 'कमल का फूल'।


प्रश्न 6. लेखक को ऐसा क्यों लगता है कि मेकांग नदी के साथ उसका गहरा भावनात्मक संबंध है? 

उत्तर- मेकांग नदी के साथ लेखक का गहरा भावनात्मक संबंध है। ऐसा उसे इसलिए लगता है क्योंकि-


(i) वियतनाम में मैकांग नदी 'महागंगा' नाम से प्रसिद्ध है।

(ii) मेकांग नदी का नाम कई बार अखबार में उस समय आया था जब वियतनाम अमेरिका से लड़ रहा था। लेखक को इस नदी का नाम सुनकर ऐसा लगा मानो वह इसे वर्षों से जानता हो।

(iii) मैकांग नदी, भारत देश की प्रमुख नदी गंगा जितनी ही बड़ी है।

(iv) लेखक को गंगा नदी का नाम सुनकर जिस आध्यात्मिक तृप्ति का अनुभव होता था, उसी आध्यात्मिक सुख का अनुभव उसे इस मैकांग नदी से हो रहा था।


प्रश्न 7. हनोई साइकिलों का शहर है। हम इस बात से क्या सीख सकते हैं?

उत्तर- 'हानोई साइकिलों का शहर है। इससे हम निम्नलिखित बातें सीख सकते हैं-

(i) शहर को प्रदूषण मुक्त बनाया जा सकता है।

(ii) सभी के पास साइकिलें होने से समानता की बात सामने आती है। इस आधार पर ऊँच-नीच का भेदभाव समाप्त हो गया

(iii) आने वाली पीढ़ी के लिए वातावरण को साफ-सुथरा रखा जा सकता है। होता है।

(iv) पेट्रोल के बढ़ते मूल्य पर थोड़ा अंकुश लगाया जा सकता है। 

(v) सड़क पर बढ़ती दुर्घटनाओं को कम किया जा सकता है और जाम लगने की समस्या में कमी आ सकती है

(vi) लोग अपने स्वास्थ्य को अच्छा बनाते हुए बचत भी करने को प्रोत्साहित होंगे। 


प्रश्न 8. लेखक ने हो-पी-मीन्ह के घर का वर्णन किस प्रकार किया है? इससे हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

उत्तर- लेखक ने हो-ची-मीन्ह के घर का जो वर्णन किया है, उससे हमें 'सादा जीवन उच्च विचार' की प्रेरणा तो मिलती ही है, साथ ही किसी देश का राष्ट्रपति अगर आम जनता की तरह किसी एक घर में साधारण सी वस्तुओं के साथ रहने लगे तो फिर जनता सोचने को मजबूर हो जाएगी कि इतनी ऊँचाई पर पहुँच कर भी वह व्यक्ति एक सामान्य जीवन ही व्यतीत कर रहा है। एसलिए वह भी अपने जीवन को उसके जैसा ही बना ले।

एक बात और प्रेरित करता है मानवता का उद्देश्य और मानव जीवन की सार्थकता केवल इसी में है कि वह अपने कल्याण की बात छोड़कर दूसरों के कल्याण की सोचे। त्याग एवं बलिदान की प्रेरणा देते हैं। भारत देश में भी ऐसे त्यागी और बलिदानियों की कोई कमी नहीं। बल्कि वह तो हमारी संस्कृति का मूलाधार हैं। महर्षि दधिची और राजा शिवि ने अपना शरीर तक दान कर दिया था।

भारतवर्ष में चिरकाल से ही परहित साधना की भावना होती चली आ रही है। भारतवर्ष पंचशील जैसे सिद्धान्तों की सीख विश्व को दे चुका है। लेखक वियतनाम के हो-ची-मीन्ह की भारतीय त्यागियों तथा बलिदानियों की कड़ी में शामिल करते हुए उनसे उपर्युक्त प्रेरणाएं ग्रहण करते हैं।

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