बिहार बोर्ड Class 11th Hindi
Chapter -7 सिक्का बदल गया
लेखिका - कृष्णा सोबती
बिहार बोर्ड कक्षा- 11वी हिंदी दिगंत भाग-01 चैप्टर(सिक्का बदल गया) लेखिका परिचय, सारांश, प्रश्न उत्तर
लेखिका परिचय
1.आधुनिक युग के हिंदी कथाकारों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाली लेखिका कृष्णा सोबती का जन्म 1925 में गुजरात (पश्चिम पंजाब, जो वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा है) में हुआ था।
2.इनकी आरम्भिक शिक्षा लाहौर में हुई थी। भारत के स्वतंत्र होने के बाद इन्होंने दिल्ली और शिमला में शिक्षा प्राप्त की। आजीविका हेतु उन्होंने कोई नौकरी नहीं की और स्वतंत्र लेखन का पेशा अपनाया। वर्तमान में भी वे नई दिल्ली में रहते हुए लेखन कार्य में व्यस्त
3.पुरस्कार : कृष्णा सोबती को उनके साहित्यिक योगदान के लिए साहित्य अकादमी सम्मान, साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता, हिंदी अकादमी का शलाका सम्मान, बिहार का राजेंद्र शिखर सम्मान तथा कई राष्ट्रीय पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया जा चुका 4/3 ।
4.साहित्यिक रचनाएँ : कृष्णा सोबती की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं- उपन्यास : यारों के यार, दिलो-दानिश, जिंदगीनामा (साहित्य अकादमी से पुरस्कृत), समय सरगम, ऐ लड़की आदि।
5.कहानी-संग्रह : डार से बिछुड़ी, बादलों के घेरे, मित्रो मरजानी, सूरजमुखी अंधेरे के आदि। शब्दचित्र, संस्मरण : हम हशमत, शब्दों के आलोक mathfrak 4 1
6.भाषा-शैली : कृष्णा सोबती की कथा भाषा वैविध्यपूर्ण है। उसमें उर्दू, संस्कृत, पंजाबी और अन्य देशज विरासतों का ऐसा मिला-जुला रूप मिलता है जो एक दिलचस्प रंग लिए उभरता है। विभिन्न परिस्थितियों और चरित्रों के अनुसार वे अपनी भाषा को एक सयत और कलात्मक रूप देती हैं, जिससे किताब से बाहर असली जिंदगी का आभास होता है। कृष्णा सोबती की शैली अत्यंत सरल तथा सुस्पष्ट
7.साहित्यिक विशेषताएँ: हिंदी कथा साहित्य में कृष्णा सोबती का नाम एक बड़े और कद्दावर रचनाकार के रूप में प्रसिद्ध है। महिला कलाकार होने पर भी उनका कथाकार व्यक्तित्व महिला होने की रियायत पर जिंदा नहीं है। वे नित्य नई ताजगी और उत्साह के साथ अपने पुराने नए अनुभवों के भीतर से कोई सूत्र उठाकर एक अनुपम रचना प्रस्तुत कर देती हैं। समाज, प्रकृति, परिवेश और व्यक्तियों के साथ उनके संबंध नित नए हैं। इसी शक्ति के सहारे वे समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती हैं। उनमें अपने परिवेश और मानव चरित्रों के अतर्मन में पैठने और मानव संबंधों के नए-नए रूपों और भंगिमाओं को समझने तथा उनके मर्म को जज्ब करने की अद्भुत सामर्थ्य है। उनके द्वारा हिंदी कथा को अनेक अविस्मरणीय चरित्र दिए गए हैं।
कृष्णा सोबती की रचनाओं में मानव जीवन की विभिन्न स्थितियों का यथार्थ धरातल पर सजीव चित्रण मिलता है। इनके लेखन में आत्मीयता, भाव-प्रवणता तथा कलात्मक सौंदर्य के दर्शन होते हैं। इन्होंने नारी की मनः स्थितियों एवं इच्छाओं का सहानुभूतिपूर्ण तथा साहस के साथ चित्रण किया है।
सिक्का बदल गया
__________________
खद्दर की चादर ओढ़े, हाथ में माला लिए शाहनी जब दरिया के किनारे पहुंची तो पौ फट रही थी। आसमान के परदे पर लालिमा फैलती जा रही थी। शाहनी ने कपड़े उतारकर एक ओर रखे और "श्री राम, श्री राम" करती पानी में हो ली। अंजलि भरकर सूर्य देवता को नमस्कार किया अपनी उनींदी आँखों पर छींट दिए और पानी से लिपट गई।
चनाब का पानी आज भी पहले-सा ही सर्द था, लहरें लहरों को चूम रही थीं। दूर काश्मीर की पहाड़ियों से बर्फ पिघल रही थी। उछल उछल आते पानी के भंवरों से टकराकर कगारे गिर रहे थे, लेकिन दूर-दूर तक बिछी रेत आज न जाने क्यों खामोश लगती थी। शाहनी ने कपड़े पहने, इधर-उधर देखा, कहीं किसी की परछाई तक न थी। पर नीचे रेत में अगणित पाँवों के निशान थे। वह कुछ सहम-सी उठी।
आज इस प्रभाव की मीठी नीरवता में न जाने क्यों कुछ भयावना-सा लग रहा है। वह पिछले पचास वर्षों से यहाँ नहाती आ रही है। कितना लंबा अरसा है। शाहनी सोचती है, एक दिन इसी दरिया के किनारे वह दुलहन बनकर उत्तरी थी और आज... आज शाहजी नहीं, उसका वह पढ़ा-लिखा लड़का नहीं, आज वह अकेली है, शाहजी की लंबी-चौड़ी हवेली में अकेली है। पर नहीं... यह क्या सोच रही है वह सवेरे-सवेरे ।
____________________
Related Questions
1. शाहनी दरिया के किनारे किस वेष में पहुँचती है? Ans- खद्दर की चादर ओढ़े, हाथ में माला लिए।
2. शाहनी पानी में क्या कहकर चली जाती है?
Ans- "श्रीराम, श्रीराम"
3. शाहनी अपने बारे में क्या सोचती है?
Ans- वह एक दिन इसी दरिया के किनारे दुल्हन बनकर उतरी थी।
5. शाहनी कहाँ पर रहती थी?
Ans- शाहजी की लंबी-चौड़ी हवेली में।
3. शाहनी दरिया के किनारे कितने वर्षों से नहाती आ रही थी?
Ans- पिछले पचास वर्षों से
_______________________
अभी भी दुनियादारी से मन नहीं फिरा उसका। शाहनी ने लंबी साँस ली और “श्री राम, श्री राम" करती बाजरे के खेतों से होती घर की राह ली। कहीं-कहीं लिपे-पुते आँगनों से धुआँ उठ रहा था। टनटन-बैलों की घंटियाँ बज उठती हैं। फिर भी... कुछ बँधा- बँधा-सा लग रहा है। 'जम्मीवाला' कुआँ भी आज नहीं चल रहा। ये शाहजी की ही असामियाँ हैं। शाहनी ने नजर उठाई। यह मीलों फैले खेत अपने ही हैं। भरी भराई नई फसल को देखकर शाहनी किसी अपनत्व के मोह में भीग गई। यह सब शाहजी की बरकतें हैं। दूर-दूर गाँवों तक फैली हुई जमीनें, जमीनों में कुएँ- सब अपने हैं। साल में तीन फसल, जमीन तो सोना उगलती है। शाहनी कुएँ की ओर बढ़ी, आवाज दी, “शेरे, शेरे, हसैना हसैना...।"
शेरा शाहनी का स्वर पहचानता है। यह न पहचानेगा? अपनी माँ जैना के मरने के बाद यह शाहनी के पास ही पलकर बड़ा हुआ। अपने पास पड़ा गड़ासा 'शटाले' के ढेर के नीचे सरका दिया। हाथ में हुक्का पकड़कर बोला- "ऐहे-सैना - सैना.....।" शाहनी की आवाज उसे कैसे हिला गई है। अभी तो वह सोच रहा था कि उस शाहनी की ऊँची हवेली की अँधेरी कोठरी में पड़ी सोने-चांदी की संदूकचियाँ उठाकर कि तभी "शेरे शेरे......।" शेरा गुस्से से भर गया। किस पर निकाले अपना क्रोध? शाहनी पर चीखकर बोला- “ऐ मर गई एं.... रब्ब तैनू मौत दे.....
_________×××_________
Related Questions
1. शाहनी खेतों से घर की ओर क्या कहती हुई लोटी? " Ans- श्रीराम, श्रीराम" ।
2. भरी भराई नई फसल को देखकर शाहनी ने कैसा महसूस किया?
Ans- मानो अपनत्व के मोह में भीग गई हो।
3. शाहनी ने कुएँ की तरफ बढ़ते हुए क्या कहा?
Ans- "शेर शेरे, हसैना, हसैना....।"
4. शेरा का पालन-पोषण किसने किया?
Ans- शाहनी ने
हसैना आटे वाली कनाली एक ओर रख, जल्दी-जल्दी बाहर निकल आई। “ऐ आई यां क्यों छावेले (सुबह-सुबह) तड़पना एं?"
अब तक शाहनी नजदीक पहुँच चुकी थी। शेरे की तेजी सुन चुकी थी। प्यार से बोली, "हसैना, यह वक्त लड़ने का है? वह पागल है तो तू ही जिगरा कर लिया कर।"
"जिगरा।" हसैना ने मान भरे स्वर में कहा-'शाहनी, लड़का आखिर लड़का ही है। कभी शेरे से पूछा है कि मुँह अँधेरे ही क्यों गालियाँ बरसाई हैं इसने?" शाहनी ने लाड़ से हसैना की पीठ पर हाथ फेरा, हंसकर बोली- "पगली मुझे तो लड़के से बहू प्यारी है। शेरे.....
"हाँ शेरनी।"
"मालूम होता है, रात को कुल्लूवाल के लोग आए हैं यहाँ शाहनी ने गंभीर स्वर में कहा। शेरे ने जरा रुककर, घबराकर कहा- "नहीं-शाहनी ..." शेरे के उत्तर की अनसुनी कर शाहनी जरा चिंतित स्वर मे बोली, "जो कुछ भी हो रहा है, अच्छा नहीं। शेरे, आज शाहजी होते तो शायद कुछ बीच-बचाव करते। पर....." शाहनी कहते-कहते रुक गई। आज क्या हो रहा है। शाहनी को लगा जैसे जी भर-भर आ रहा है। शाहजी के बिछुड़े कई साल बीत गए, पर-पर आज कुछ पिघल रहा है-शायद पिछली स्मृतियाँ....आँसुओं को रोकने के प्रयत्न में उसने हसैना की ओर देखा और हल्के से हँस पड़ी। और शेरा सोच ही रहा है, क्या कह रही है शाहनी आज। आज शाहजी क्या, कोई भी कुछ नहीं कर सकता। यह होकर रहेगा-क्यों न हो? हमारे ही भाई-बंदों से सूद ले-लेकर शाहजी सोने की बोरियाँ तोला करते थे। प्रतिहिंसा की आग शेरे की आँखों में उत्तर आई। गड़ासे की याद हो आई। शाहनी की ओर देखा नहीं नहीं, शेरा इन पिछले दिनों में तीस-चालीस कत्ल कर चुका है।
_________×××_________
Related Questions
1. हसैना ने मान भरे स्वर में क्या कहा था?
Ans- "शाहनी, लड़का आखिर लड़का ही है।"
2. शेरा को किस व्यक्ति पर गुस्सा आ रहा था?
Ans- शाहनी पर।
3. शाहनी को शाहजी की याद कब आई?
Ans- जब शेरा शाहनी पर गुस्सा कर रहा था।
4. शेरा शाहनी के बारे में क्या सोच रहा था ?
Ans- आज शाहनी क्या, कोई भी कुछ नहीं कर सकता?
_________×××_________
पर-पर वह ऐसा नीच नहीं.....सामने बैठी शाहनी नहीं, शाहनी के हाथ उसकी आंखों में तैर गए। वह सर्दियों की रातें - कभी-कभी शाहजी की डाँट खाकर वह हवेली में पड़ा रहता था। और फिर लालटेन की रोशनी में वह देखता है, शाहनी के ममता भरे हाथ दूध का कटोरा थामे हुए-“शेरे-शेरे, उठ, पी ले।" शेरे शाहनी के झुर्रियाँ पड़े मुँह की ओर देखा तो शाहनी धीरे-धीरे मुस्करा रही थी। शेरा विचलित हो गया। आखिर शाहनी ने क्या बिगाड़ा है हमारा? शाहजी की बात शाहजी के साथ गई, वह शाहनी को जरूर बचाएगा। लेकिन कल रात वाला मशवरा वह कैसे मान गया था फिरोज की बात। "सब कुछ ठीक हो जाएगा सामान बाँट लिया जाएगा।"
"शाहनी चलो तुम्हें घर तक छोड़ आऊँ।" शाहनी उठ खड़ी हुई। किसी गहरी सोच में चलती हुई शाहनी के पीछे-पीछे मजबूत कदम उठाता शेरा चल रहा है। शंकित-सा इधर-उधर देखता जा रहा है। अपने साथियों की बातें उसके कानों में गूंज रही हैं। पर क्या होगा शाहनी को मारकर ?
"शाहनी।"
"हाँ शेरे।"
शेरा चाहता है कि सिर पर आने वाले खतरे की बात कुछ तो शाहनी को बता दे, मगर वह कैसे कहे?" "शाहनी....." शाहनी ने सिर ऊँचा किया। आसमान धुएँ से भर गया था। “शेरे....." शेरा जानता है यह आग है। जबलपुर में आज आग लगनी थी, लग गई शाहनी कुछ न कह सकी। उसके नाते-रिश्ते सब वहीं हैं......
हवेली आ गई। शाहनी ने शून्य मन से ड्योढ़ी में कदम रखा। शेरा कब लौट गया उसे कुछ पता नहीं। दुर्बल-सी देह और अकेली, बिना किसी सहारे के न जाने कब तक वहीं पड़ी रही शाहनी। दुपहर आई और चली गई। हवेली खुली पड़ी है। शाहजी के घर की मालकिन......लेकिन नहीं, आज मोह नहीं हट रहा। मानो पत्थर हो गई हो। पड़े-पड़े साँझ हो गई, पर उठने की बात फिर भी नहीं सोच पा रही। अचानक रसूली की आवाज सुनकर चौंक उठी।
Related Questions
1. शेरा ने किसकी ओर देखा ?
Ans- शाहनी के झुर्रियाँ पड़े मुँह की ओर
2. शाहनी ममता भरे शब्दों में शेरा से क्या कहती है? "शेरे-शेरे, उट, दूध पी ले।"
3. शेरा क्या जानता था ?
Ans- जबलपुर में आज आग लगने वाली है।
4. शाहनी किस व्यक्ति की आवाज सुनकर चौंक उठी? Ans- रसूली की।
_________×××_________
"शाहनी शाहनी, सुनो ट्रकें आती हैं लेने?" ट्रके " शाहनी इसके सिवाय और कुछ न कह सकी। हाथों ने एक-दूसरे को थाम लिया। बात की बात में खबर गाँव भर में फैल गई। बीबी ने अपने विकृत कंठ से कहा- “शाहनी, आज तक ऐसा न हुआ, न कभी सुना गजब हो गया, अंधेर पड़ गया।"
शाहनी मूर्तियत यहीं खड़ी रही। नयाब बीबी ने स्नेह-सनी उदासी से कहा-“शाहनी, हमने तो कभी न सोचा था।" शाहनी क्या कहे कि उसी ने ऐसा कब सोचा था। नीचे से पटवारी बेगू और जैलदार की बातचीत सुनाई दी। शाहनी समझी कि वक्त आन पहुँचा। मशीन की तरह नीचे उतरी, पर इयोढ़ी न लाँघ सकी। किसी गहरी, बहुत गहरी आवाज़ से पूछा- "कौन? कौन है वहाँ?"
कौन नहीं है आज वहाँ? सारा गाँव है, जो उसके इशारे पर नाचता था कभी। उसकी असामियाँ हैं जिन्हें उसने अपने नाते-रिश्तों से कभी कम नहीं समझा। लेकिन नहीं, आज उसका कोई नहीं, आज वह अकेली है। यह भीड़ की भीड़, उनमें कुल्लूवाल के जाट। वह क्या सुबह ही न समझ गई थी? बेगू पटवारी और मसीत के मुल्ला इस्माइल ने जाने क्या सोचा। शाहनी के निकट आ खड़े हुए। बेगू आज शाहनी की ओर देख नहीं पा रहा। धीरे से जरा गला साफ करते हुए कहा- “शाहनी, रब्ब नू एही मंजूर सी।" शाहनी के कदम डोल गए। चक्कर आया और दीवार के साथ लग गई इसी दिन के लिए छोड़ गए थे शाहजी उसे? बेजान-सी शाहनी की ओर देखकर बेगू सोच रहा है- "क्या गुजर रही है शाहनी पर। मगर क्या हो सकता है। सिक्का बदल गया है........
Related Questions
1. शाहनी को किन व्यक्तियों की आवाज सुनाई दी? Ans- पटवारी बेगू और जैलदार की।
2. बेगू ने शाहनी की ओर देखकर क्या कहा?
Ans- “शाहनी, रब्च नू एही मंजूर सी।"
3. "शाहनी, रब्ब नू एही मंजूर सी", को सुनकर शाहनी
को क्या हो गया?
Ans- शाहनी के कदम डोल गए व चक्कर आ गए।
4. बेगू शाहनी की ओर देखकर क्या सोच रहा है?
Ans- क्या गुजर दी है, शाहनी पर मगर क्या हो सकता है। सिक्का बदल गया है......
_________×××_________
शाहनी का घर से निकलना छोटी-सी बात नहीं। गाँव-का-गाँव खड़ा है हवेली के दरवाजे से लेकर उस दारे तक जिसे शाहजी ने अपने पुत्र की शादी में बनवा दिया था। तब से लेकर आज तक सब फैसले, सब मशविरे यहीं होते रहे हैं। इस बड़ी हवेली को लूट लेने की बात भी यहीं सोची गई थी। यह नहीं कि शाहनी कुछ न जानती हो। वह जानकर भी अनजान बनी रही। उसने कभी बैर नहीं जाना। किसी का बुरा नहीं किया। लेकिन बूढ़ी शाहनी यह नहीं जानती कि सिक्का बदल गया है.......
देर हो रही थी। थानेदार दाऊद खाँ जरा अकड़कर आगे आया और ड्योढ़ी पर खड़ी जड़ निर्जीव छाया को देखकर ठिठक गया। वही शाहनी है जिसके शाहजी उसके लिए दरिया के किनारे खेमे लगवा दिया करते थे। यह तो वही शाहनी है जिसने उसकी मंगेतर को सोने के कनफूल दिए थे मुँह दिखाई में अभी उसी दिन जब वह 'लीग' के सिलसिले में आया था तो उसने उद्दंडता से कहा था- "शाहनी, भागोवाल मसीत बनेगी, तीन सौ रुपए देने पड़ेंगे।" शाहनी ने अपने उसी सरल स्वभाव से तीन सौ रुपए आगे रख दिए थे। और आज ...... ?
"शाहनी।" दाऊद खाँ ने आवाज दी। वह थानेदार है, नहीं तो उसका स्वर शायद आँखों में उतर आता। शाहनी गुमसुम, कुछ न बोल पाई।
Related Questions
1. शाहनी का घर से निकलना क्यों मुश्किल हो गया था? Ans- उसकी हवेली के दरवाजे के आगे गाँव का गाँव खड़ा था।
3. हवेती को लूट लाने की बात किस जगह सोची गई पी ?
Ans- दारे में।
2. शाहजी ने दारे को कब बनवाया था?
Ans- अपने पुत्र की शादी में।
4. शाहजी दरिया के किनारे किसके लिए खेमे लगवा दिया करते थे?
Ans- शाहनी के लिए।
5. शाहनी ने किसकी मंगेतर की सोने के कनफूल दिए थे?
Ans- थानेदार दाऊद खाँ की मंगेतर को
_________×××_________
"शाहनी।" ड्योढ़ी के निकट जाकर बोला- "देर हो रही है शाहनी (धीरे-से) कुछ साथ रखना हो तो रख लो। कुछ साथ बाँध लिया है? सोना-चांदी....... शाहनी अस्फुट स्वर में बोली- "सोना-चांदी?" जरा ठहर कर सादगी से कहा-"सोना-चांदी बच्चा वह सब तुम लोगों के लिए है। मेरा सोना तो एक-एक जमीन में बिछा है।" दाऊद खाँ लज्जित-सा हो गया। “शाहनी तुम अकेली हो, अपने पास कुछ होना जरूरी है। कुछ नकदी ही रख तो वक्त का कुछ पता नहीं......"
"वक्त?" शाहनी अपनी गीली आँखों से हँस पड़ी। “दाऊद खाँ, इससे अच्छा वक्त देखने के लिए क्या मैं जिंदा रहूँगी।" किसी गहरी वेदना और तिरस्कार से कह दिया शाहनी ने। दाऊद खाँ निरुत्तर है। साहस कर बोला- “शाहनी, कुछ नकदी जरूरी है। "नहीं बच्चा, मुझे इस घर से"-शाहनी का गला रुँघ गया-"नकदी प्यारी नहीं। यहाँ की नकदी यहीं रहेगी।" शेरा आन खड़ा हुआ पास। दूर खड़े-खड़े उसने दाऊद खाँ को शाहनी के पास देखा तो शक गुजरा कि हो-न-हो कुछ मार रहा है शाहनी से "खाँ साहिब देर हो रही है।"
शाहनी चौंक पड़ी। देर-मेरे घर में मुझे देर आँसुओं की भँवर में न जाने कहाँ से विद्रोह उमड़ पड़ा। मैं पुरखों के इस बड़े घर की रानी और यह मेरे ही अन्न पर पले हुए... नहीं, यह सब कुछ नहीं। ठीक है-देर हो रही है। शाहनी के जैसे कानों में यही गूँज रहा है-देर हो रही है-पर नहीं, शाहनी रो-रोकर नहीं, शान से निकलेगी इस पुरखों के पर से, मान से लौंधेगी यह देहरी, जिस पर एक दिन वह रानी बनकर आ खड़ी हुई थी। अपने लड़खड़ाते कदमों को संभालकर शाहनी ने दुपट्टे से आँखें पोंछी और ड्योढ़ी से बाहर हो गई। बड़ी-बूढ़ियाँ रो पड़ीं। उनके सुख-दुख की साथिन आज इस पर से निकल पड़ी है। किसकी तुलना हो सकती थी इसके साथ खुदा ने सब कुछ दिया था, मगर-मगर दिन बदले, वक्त बदले.......
Related Questions
Ans- शाहनी के लिए।
2. शाहनी अस्फुट स्वर में क्या बोलती है?
Ans- "सोना-चांदी?"
3. शाहनी को दाऊद ने क्या रखने को कहा?
Ans- कुछ नगदी।
4. शाहनी के ट्र्योदी से बाहर होने पर कौन रो पड़ा? Ans- उनकी साथिन बड़ी-बूढ़ियों से पड़ीं।
_________×××_________
बाद भी जिस कुल की अमानत को उसने सहेजकर रखा, आज वह उसे धोखा दे गई। शाहनी ने दोनों हाथ जोड़
लिए यही अंतिम दर्शन था, यही अंतिम प्रणाम था। शाहनी की आँखें फिर कभी इस ऊँची हवेली को न देख पाएँगी। प्यार ने जोर मारा-सोचा, एक बार फिर घूम-फिर कर पूरा घर क्यों न देख आई मैं? जी छोटा हो रहा है, पर जिनके सामने हमेशा बड़ी बनी रही है उनके सामने वह छोटी न होगी। इतना ही ठीक है। बस हो चुका। सिर झुकाया । इयोदी के आगे कुलवधू की आँखों से निकलकर कुछ बूँदें चू पड़ीं। शाहनी चल दी ऊँचा-सा भवन पीछे खड़ा रह गया। दाऊद खाँ, शेरा, पटवारी, जैलदार, और छोटे-बड़े, बच्चे, बूढ़े मर्द औरतें सब पीछे-पीछे।
ट्रकें अब तक भर चुकी थीं। शाहनी अपने को खींच रही थी। गाँव वालों के गलों में जैसे धुआँ उठ रहा है। शेरे, खूनी शेरे का दिल टूट रहा है। दाऊद खाँ ने आगे बढ़कर ट्रक का दरवाजा खोला। शाहनी बढ़ी। इस्माइल ने आगे बढ़कर भारी आवाज से कहा- “शाहनी, कुछ कह जाओ। तुम्हारे मुँह से निकली सीस झूठी नहीं हो सकती।" और अपने साफे से आँखों का पानी पोंछ लिया। शाहनी ने उठती हुई हिचकी को रोककर रुँधे-रुँधे गले से कहा, "रब्ब तुहानू सलामत रक्खे बच्चा, खुशियाँ बक्शे......।"
Related Questions
1. शाहनी ने अपनी हवेली को अंतिम बार किस प्रकार देखा?
Ans- दुपट्टे से सिर पकर अपनी धुंधली आँखों से देखा।
3. आगे बढ़कर ट्रक का दरवाजा किसने खोला ?
Ans- दाऊद खाँ ने
2. हवेली से निकलते वक्त शाहनी के पीछे कौन-कौन व्यक्ति थे।
Ans- दाऊद खाँ, शेरा, पटवारी आदि।
4. शाहनी ने उठती हुई हिचकी को रोककर क्या कहा? Ans- "रब्ध तुहानू सलामत रक्ते बच्चा, खुशियाँ बक्...
यह छोटा-सा जन-समूह रो दिया। जरा भी दिल में मैल नहीं शाहनी के और हम-हम शाहनी को नहीं रख सके। शेरे ने बढ़कर शाहनी के पाँव छुए। "शाहनी, कोई कुछ नहीं कर सका। राज भी पलट गया..... शाहनी ने काँपता हुआ हाय शेरे के सिर पर रखा और रुक-रुककर कहा-"तैनू भाग जगण चन्ना" (ओ चाँद तेरे भाग जागें)। दाऊद खाँ ने हाथ का संकेत किया। कुछ बड़ी-बूढ़ियों शाहनी के गले लगीं और ट्रक चल पड़ी।
अन्न-जल उठ गया। वह हवेली, नई बैठक, ऊँचा चौबारा, बड़ा 'पसार' एक-एक करके घूम रहे हैं शाहनी की आँखों में कुछ पता नहीं ट्रक चल पड़ी है या वह स्वयं चल रही है। आँखें बरस रही हैं। दाऊद खाँ विचलित होकर देख रहा है इस बूढ़ी शाहनी को कहाँ जाएगी अब यह?
“शाहनी मन में मैल न लाना। कुछ कर सकते तो उठा न रखते वक्त ही ऐसा है।..... राज पलट गया है... सिक्का क्या बदलेगा? वह तो मैं वहीं छोड़ आई ।.....?
और शाहजी की शाहनी की आँखें और भी गीली हो गई। आस-पास के हरे-भरे खेतों से घिरे गाँवों में रात खून बरसा रही थी। शायद राज पलटा भी खा रहा था और सिक्का बदल रहा था.......
Related Questions
Ans- "तैनू भाग जगण चन्ना" ।
4. शाहनी को हवेती छोड़ते वक्त कैसा लग रहा था? Ans- अभद्र व आँखों में आँसू थे।
2. शाहनी के आँखों में हवेली छोड़ते वक्त क्या-क्या चीजें घूम रही थी?
Ans- नई बैठक, ऊँचा चौबारा आदि।
3. दाऊद खाँ जाते वक्त मूढ़ी शाहनी को कैसे देख रहा था?
Ans- विचलित होकर।
5. आस-पास के हरे-भरे खेतों से घिरे गाँव में क्या हो रहा था?
Ans- रात खून वरसा रही थी।
_______________________
_______________________
0 टिप्पणियाँ