आज हम लोग एक नए अंदाज के साथ बिहार बोर्ड Class 11th Hindi काव्यखंड का अंतिम चैप्टर - 12 मातृभूमि का सम्पूर्ण भावार्थ, अरुण कमल का जीवन परिचय और मातृभूमि का प्रश्न उत्तर देखने वाले हैं ,Bihar board Class 11th Hindi Chapter-12 matrabhoomi kavi Arun Kamal ka sampurn bhavarth aur prashn Uttar
In this post included :-
- मातृभूमि चैप्टर का संपूर्ण भावार्थ
- मातृभूमि चैप्टर के कवि अरुण कमल का जीवन परिचय
- मातृभूमि चैप्टर के पद का शब्दार्थ
- मातृभूमि चैप्टर के अभ्यास प्रश्न उत्तर
12. अरुण कमल
कवि-परिचय
जीवन-परिचय : अरुण कमल का जन्म 15 फरवरी 1954 को बिहार के रोहतास जिले के नासरीगंज गाँव में हुआ था।
- उनकी माता का नाम सुरेश्वरीदेवी तथा पिता का नाम कपिलदेव मुनि था। उनकी प्राथमिक शिक्षा बारुन, शेरघाटी गया, कुदरा में हुई।
- इन्होंने माध्यमिक शिक्षा हसन बाजार से तथा उच्च शिक्षा पटना विश्वविद्यालय, पटना से ग्रहण की। वर्तमान में अरुण कमल पटना विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर एवं 'आलोचना' पत्रिका के संपादक हैं।
- इन्होंने अपने जीवनकाल में कांगो, रूस, म्यांमार, इंग्लैण्ड, पाकिस्तान एवं चीन की यात्रा की।
- साहित्यिक रचनाएँ: कमल जी की प्रमुख्य रचनाएँ निम्नलिखित हैं- कविता संग्रह अपनी केवल घार, नए इलाके में, सबूत, पुतली में संसार ।
- आलोचना : - कविता और समय।
- अनुवाद : रूसी कवि मायकोव्स्की की आत्मकथा, जंगल बुक, वायसेज।
- पत्रकारिता - 'नवभारत टाइम्स' पटना के लिए प्रभात खबर, राँची के लिए 'अनुस्वार' नामक अनुवाद स्तंभ ।
- पुरस्कार : अरुण कमल को उनके साहित्यिक योगदान के लिए बहुत से सम्मानों व पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इन्हें भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार (1986), सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार (1989), श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार (1990), रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1996), शमशेर सम्मान (1997), नए इलाके में कविता संकलन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार (1998) से नवाजा गया।
- अरुण कमल जी प्रगतिशील यथार्थवादी भावधारा के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। ये बीसवीं सदी के आठवें दशक से आज तक लगातार लिखते आ रहे हैं। उनके लेखन में उत्तरोत्तर निखार व विकास दिखाई देता है। उन्होंने निरंतर समाज की बेहतरी के लिए लगातार कर्म किया, श्रम किया। उसी का प्रतिफल उनकी कविता में आया। उस समय अवमूल्यन तथा विनाश की रोगावह हवाएँ चल रही थीं तो अरुण कमल ने अपने विश्वास व निष्ठा को बनाए रखा और आगे बढ़ते चले गए।
- अरुण कमल ने परंपरा से अपना संबंध बनाए रखा। उनकी परंपरा में अनेक हिंदी भारतीय और वैश्विक प्रविष्टियाँ भी हैं।
- अरुण कमल ने स्वांतः सुखाय से प्रेरित होकर कभी काव्य नहीं लिखा, बल्कि जो जग में देखा, भोगा
- उसी को काव्य रूप दिया। इसीलिए उनके काव्य में ऊष्मा है, प्रभावोत्पादकता है।
- अरुण कमल वास्तविकता के धरातल पर संभावनाओं के कुशल चितेरे हैं।
मातृभूमि कविता
तब अचानक मुझे लगता है यही तो तुम हो मेरी माँ मेरी
मातृभूमि
धान के पौधों ने तुम्हें इतना टैंक दिया है कि मुझे रास्ता तक ...नहीं सूझता
और मैं मेले में खोए बच्चे-सा दौड़ता हूँ तुम्हारी ओर जैसे वह समुद्र जो दौड़ता आ रहा है छाती के सारे बटन खोले
हहाता
और उठती है शंख ध्वनि कंदराओं के अंधकार को हिलोड़ती
ये बकरियाँ जो पहली बूंद गिरते ही भार्गी और छिप गई पेड़ .... की ओट में
सिंधु घाटी का वह साँद चौड़े पट्टे वाला जो भींगे जा रहा है
पूरी सड़क छेके
मातृभूमि कविता का शब्दार्थ : हहना - उत्कट अभिलाषा से भर उठना । कंदरा - गुफा । हिलोड़ती - हिलाती हुई, हलचल पैदा करती।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अरुण कमल' रचित 'मातृभूमि' शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। यह कविता इनके नवीनतम काव्य संग्रह 'पुतली में संसार' संकलित है। प्रस्तुत कविता में कवि कहता है कि जननी, मातृभूमि और मातृभाषा की मातृ-प्रतिमाएँ एक-दूसरे में मिलकर पूर्णतया एकाकार हो जाती है माँ, मातृभूमि तथा मातृभाषा की यह संश्लिष्ट प्रतिमा व्यक्ति, देश व काल की सीमित परिधियों से मुक्त होकर एक ऐसी विराट चेतन सत्ता का रूप धारण कर लेती है जो दुःख ताप और रोग-शोक को हरने वाली करुणा तथा शांति-प्रेम तृप्ति-सुख, और वात्सल्य से भरी हुई है।
व्याख्या: कवि कहता है कि संध्या का समय है और वर्षा की झड़ी लगी t_{1} कवि धरती से ऊपर तथा आसमान के नीचे खड़ा भीग रहा है। अचानक वह कल्पना लोक में वितरण करने लगता है। धरती उसे अपनी माँ नजर आने लगती है जो उससे कुछ दूरी पर है। बीच में धान के बड़े-बड़े पौधे होने के कारण रास्ता नहीं दिख रहा। माँ तक पहुँचने के लिए अचानक लड़का (कवि) बदहवास होकर दौड़ने लगता है, जैसे समुद्र अपनी लहरों के माध्यम से किनारे की तरफ दौड़ता है। तभी दूर कहीं गुफाओं से पूजा के क्रम में शंख घोष होता है जो अंधकार के वितान में भी आलोड़न उत्पन्न करता है।
बकरियाँ वर्षा की पहली बौछार से अपने को बचाती हुई पेड़ों के नीचे शरण लिए हैं। लम्बा-चौड़ा व हट्टा-कट्टा एक सौंड जिसकी तस्वीर सिंधु घाटी की सभ्यता पढ़ते समय देखी थी, यह सड़क के बीचों-बीच खड़ा रास्ता रोके है।
(2)
घर के आँगन में वो नवोदा भीगती नाचती
और काले पंखों के नीचे कोर्यों के सफेद रोएँ तक भींगते
और इलायची के छोटे-छोटे दाने इतने प्यार से गुत्थम गुत्था
ये सब तुम्हीं तो हो
कई दिनों से भूखा-प्यासा तुम्हें ही तो ढूंढ रहा था चारों तरफ
आज जब भीख में मुट्ठी भर अनाज भी दुर्लभ है
तब चारों तरफ क्यों इतनी भाप फैल रही है गर्म रोटी की
लगता है मेरी माँ आ रही है नक्काशीदार रूमाल से टैंकी
तस्तरी में
सुबानियाँ अखरोट मखाने और काजू से भरे
लगता है मेरी माँ आ रही है हाथ में गर्म दूध का गिलास लिए
मातृभूमि कविता के दूसरे पद का शब्दार्थ :
नवोढ़ा- नई नवेली दुल्हन । गुत्थम - गुत्था --- एक-दूसरे में गुया हुआ । नक्काशीदार - बेल-बूटेदार । दुर्लभ - आसानी से न मिलने वाला । सुबानियाँ - एक प्रकार की मेवा ।
प्रसंग पूर्ववत् ।
व्याख्या : - इन पंक्तियों में कवि कहता है कि मजदूर अभी भी अपने काम में लगे हुए हैं। दिन-भर परिश्रम करने से उनके शरीर की नमी अर्थात् शक्ति समाप्त हो गई है। जब उनके ऊपर वर्षा की बूँदें पड़ती हैं तो उनके शरीर के द्वारा ऐसे सोख ली जाती हैं, जैसे सूखा मिट्टी का ढेला पानी सोख लेता है। आँगन में बिखरे सामान को वर्षा से बचाने के लिए एक नई दुल्हन अपने पूरे शृंगार के साथ भीगती हुई काम कर रही है। पेड़ों पर गर्योों के झुरमुट में छिपे होने के बावजूद कौवे अब पूरी तरह भीग चुके है। कवि को यह सब मातृभूमि का ही एक विस्तृत रूप दिखता है जो एक-दूसरे से इलायची के दानों की तरह सम्बद्ध हैं।
कवि कह रहा है कि वह कई दिनों से भूखा-प्यासा अपनी माँ को खोज रहा था क्योंकि उसे चारों तरफ रोटी की गर्म भाष का आभास होता था, लेकिन वास्तव में एक मुट्ठी अनाज भी कहीं से नहीं मिला। कवि आगे कहता है कि हे मेरी मातृभूमि, जब से तुम्हें देखा है ऐसा लगता है कि तुम मेरे लिए तश्तरी में सूखे मेये रूमाल से ढककर और गर्म दूध से भरा गिलास लेकर आ रही हो।
(3)
धरती का रंग हरा होता है फिर सुनहला फिर धूसर
छप्परों से इतना धुआँ उठता है और गिर जाता है.
पर वहीं के वहीं हैं घर से निकाले ये बच्चे तुम्हारी देहरी पर
सिर टेक सो रहे माँ
ये बच्चे कालाहांडी के
ये आन्ध्र के किसानों के बच्चे ये पलामू के पट्टन नरौदा
पटिया के
ये यतीम ये अनाव ये
बंधुआ इनके माथे पर हाथ फेर दो माँ
इनके भींगे केश सँवार दो अपने श्यामल हाथों से-
तुम किसकी माँ हो मेरी मातृभूमि ?
मेरे थके माथे पर हाथ फेरती तुम्हीं तो हो मुझे प्यार से तकती
और में भींज रहा हूँ
नाथ रही धरती नाचता आसमान मेरी कील पर नाचता - नाचता
मैं खड़ा रहा भीजता बीच-बीच।
शब्दार्थ: यतीम- बेसहारा । श्यामल - साँवला । तकती - देखती। दुर्लभ - कठिनाई से मिलने वाला । कालाहांडी - उड़ीसा का वह क्षेत्र जो ऊसर है, वहाँ पानी का तल काफी नीचे है। बंधुआ - जो मामूली कर्ज के बदले में पराधीन बेगारी की जिंदगी जीने को अभिशप्त हो।
प्रसंग पूर्ववत्।
व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि कहता है कि मेरे जैसे सैकड़ों बच्चे तुम्हारी रसोई के दरवाजे पर खाना पाने के लिए काफी लम्बे समय से खड़े हैं। हरी-भरी धरती पर फसल उगती है. पकती भी है और फिर खेत पुनः खाली हो जाते हैं। घरों में खाना बनाने की प्रक्रिया भी शुरू होती है, लेकिन इन बच्चों को भोजन नहीं मिल पाता।
कवि यहाँ प्रश्नात्मक शैली में मातृभूमि से पूछता है- आखिर कालाहांडी, आन्ध्र के पलामू के तथा पट्टन नरौदा पटिया के बच्चों के लिए अन्न उपलब्ध क्यों नहीं है? इनका जीवन भला इतना रूखा-सूखा क्यों है? ये बंधुआ मजदूर बने अपने बचपन को बेच रहे हैं। इन अनाथ और यतीम बच्चों को भी तुम्हारी ममता मिलनी चाहिए।
कवि पुनः प्रश्न करता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम केवल मेरी माँ हो? ऐसा तुम्हारा हाथ सिर्फ मेरे ही माये पर फिर रहा है और केवल में ही तुम्हारी ममता की बौछार में भीग रहा हूँ। ऐसा लगता है जैसे आज घरती और आसमान दोनों ही मेरी घरी पर अर्थात् मेरे इशारे पर नाच रहे हैं।
अभ्यास
प्रश्न 1. यह कविता किसे सम्बोधित है?
उत्तर- यह कविता भारत माता को, जिस पर कवि 'अरुण कमल' ने जन्म लिया है, उसी को सम्बोधित कर लिखी गई है।
प्रश्न 2. कवि ने स्वयं को मेले में खोए बच्चे-सा दोड़ता कहा है। उन्होंने अपनी गति की तुलना समुद्र से की है। कवि ने ऐसी तुलना क्यों की है? काव्य पंक्तियों को उद्धृत करते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर- प्रस्तुत कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ तुलनात्मक स्थिति को रेखांकित करती हैं- और मैं मेले में खोए बच्चे-सा दौड़ता हूँ तुम्हारी ओर जैसे यह समुन्द्र जो दौड़ता जा रहा है छाती के सारे बटन खोले हाता
माँ और बेटे का सम्बन्ध निस्संदेह संसार का सबसे अनूठा संबंध है। पुत्र माँ पर आश्रित होता है और भी माँ के हृदय में पुत्र के लिए प्रगाढ़ प्रेम होता है। इस संसार में आने से पहले पुत्र मौ के गर्भ में नाभि नाल से जुड़ा होता है और वहीं से पोषण पाता है।
जब किसी मेले में बच्चा खो जाता है, और फिर अचानक अपनी माँ को पाकर वह पागल होकर भी की तरफ दौड़ता है, बीच में आने वाली बाधाओं को देखे बिना ही दौड़ता है, माँ को लपकता है, जिस प्रकार समुद्र अपनी लहरों के माध्यम से अगलाओं को तोड़ता किनारे की ओर दौड़ता है रोने से बेहाल वह बच्चा ममता की हाहाकार के साथ विभिन्न व्यवधानों को लोपता- गिरता पड़ता माँ की ओर दौड़ता जाता है। माँ से मिलने की बेचैनी समुद्र की गर्जन की भाँति होती है।
प्रश्न 3. वे मजदूर जो सोख रहे हैं बारिश मिट्टी के देले की तरह' कवि ने मजदूरों के लिए ऐसी उपमा क्यों दी है? उत्तर- 1. कवि अरुण कमल यथार्थवादी कवि होने के कारण वास्तविकता के धरातल पर ही उपमा देते हैं। क्योंकि वर्षा में लोग अलग-अलग ढंग से प्रभावित होते हैं। बकरियाँ पहली बूंद गिरते ही दुबक जाती हैं जबकि साँड को वर्षा की कोई परवाह नहीं।
2. जो मजदूर जेठ के महीने में गर्मी को झेलता हुआ कार्य में लगा रहता है, यह मिट्टी के ढेले की तरह ही शुष्क और तप्त है। जब उसके ऊपर वर्षा की बूँदें पड़ती हैं तो तुरंत सोख ली जाती हैं। अरुण कमल की यह उपया हमें श्रमिक मजदूरों की श्रमशीलता के समक्ष नतमस्तक कर देती है, क्योंकि मजदूरों की श्रमशील संलग्नता के आगे बूँदे अपर्याप्त लग रही हैं, मजदूरों का तो अंतः तक शुष्क हो गया है।
प्रश्न 4. नीचे उद्धृत काव्य पंक्तियों का मर्म उद्घाटित करें- "घर के आंगन में वो नवोदा भीगती नाचती और काले पंखों के नीचे कौवों के सफेद रोएँ तक भींगते और इलायची के छोटे-छोटे दाने इतने प्यारे से गुत्थमगुत्या ये सब तुम्ही तो हो।"
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ समकालीन कवि अरुण कमल रचित मातृभूमि शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। इन पक्तियों में कवि ने वर्षा के प्रभाव का बड़ा ही मनोरम वर्णन किया है। नयी नवेली (नवोदा) दुल्हन अपनी चूड़ियों की खनक और पायतों की छम-छम के साथ बारिश में आँगन में बिखरे सामनों को इकट्ठा करते हुए तेजी से इधर-उधर जाती है, आंगन से अलिंद में दौड़ती नाचती-सी नजर आती है। इस समय उसकी सुन्दरता ठीक तुम्हारी (मातृभूमि) तरह ही लगती है। इसी वर्षा में पेड़ों के पत्तों और मुरमुट में छिपे होने के बावजूद काले कौवे भींग रहे हैं वर्षा में उनकी चमड़ी और काले पंखों के बीच का सफेद रोमिल हिस्सा भी रससिक्त हो चुका है। पोर-पोर आनंदित को करने वाली वर्षा भी तुम्हीं हो और पोर-पोर तक रस निमन्जित होने वाली भी तुम्हीं हो खोल के भीतर इलाइची के दाने बड़े ही सलीके से सजे होते हैं और इनमें से प्रत्येक दाना जायकेदार और खुशबूदार होता है। ठीक इसी तरह मातृभूमि का हर महकदार और आकर्षक घटक है। यहाँ कवि ने मातृभूमि का मानवीकरण किया है। मातृभूमि के प्रति आदर का भाव कवि ने परस्परता से हटाकर एक नये रूप में प्रस्तुत किया है। जहाँ इलाइची के दाने का विम्ब बिल्कुल नया है वहीं कौवे के काले पंखों के भीतरी हिस्से की सफेदी तक कवि की दृष्टि की पैठ आहादित करती है। मातृभूमि में भी अविछिन्नता का भाव है अलग-थलग वाला यही स्वभाव माँ का होता है। मातृभूमि माँ का ही एक रुतम रूप है।
प्रश्न 5. "आज जब भीख में मुट्ठी भर अनाज भी दुर्लभ है, तब चारों तरफ क्यों इतनी भाप फैली रही है गर्म रोटी की।" यह कैसी भाप है? इस भाष के इतना फैलने में किस तरह की व्यंजना है?
उत्तर- कवि अरुण इन पक्तियों में जमीनी सच्चाई बयान करते हैं। आज हमारा समाज दो वर्गों में बंट चुका है। एक वर्ग भूख से बिलबिला रहा है और उसे कहीं से भी मुट्ठी भर अनाज नहीं मिल रहा है। वहीं दूसरी तरफ अमीर वर्ग है, जिसके रहन-सहन का स्तर प्रतिदिन ऊपर उठता जा रहा है। राजनेताओं का वर्ग भी इसी अमीर वर्ग का एक हिस्सा है जो संचार माध्यमों द्वारा इस बात का दुष्प्रचार कर रहा है कि भारत अब समृद्ध देश बन गया है, यहाँ अन्न की कोई कमी नहीं है। अब हम निर्यात करने में ही नहीं बल्कि खरात देने में भी सक्षम है। इसके विपरीत देश के ऐसे अनेक हिस्से हैं, जहाँ भूखमरी, कंगाली, बदहाली फैली हुई है। गर्म रोटी की भाप सत्ता के दलालों के तर्कजाल के इतर कुछ नहीं है।
प्रश्न 6. कई दिनों से भूखे-प्यासे कवि को भी किस रूप में दिखलाई पड़ती है। कवि ने किन स्थानों के बच्चों का उल्लेख कविता में किया है, और क्यों?
उत्तर-कई दिनों से भूखे-प्यासे कवि को माँ ममत्य की प्रतिमूर्ति के रूप में दिखलाई देती है, जो बेल-बूटेदार नक्काशीदार समाल से ढँकी तश्तरी में सूखे मेवे लेकर आ रही है। यही नहीं, ममता का पहला अवदान गर्म दूध लेकर माँ आती नजर आती है। कवि ने काला हाँडी, पलामऊ (पलामू) के पट्टन आन्ध्र प्रदेश पटिया नरौदा, जैसे गाँवों और शहरों का वर्णन किया है। इन स्थानों के बच्चों का उल्लेख कवि ने इसलिए किया है क्योंकि प्रकृति की अति प्रतिकूलता के कारण जहाँ खेती करना असंभ हो गया है, वहाँ स्वतंत्र भारत की केन्द्रीय एवं प्रांतीय सरकारें आँकड़ेबाजी में फैंसी है। जिन बच्चों को देश के भविष्य का कर्णधार माना जाता है, वे कुपोषण के शिकार होकर अकाल मौत को प्राप्त हो रहे हैं।
प्रश्न 7. "ये यतीम ये अनाथ ये बंधुआ इनके माये पर हाथ फेर दो माँ इनके भींगे केश संवार दो अपने श्यामल हाथों से" इन पंक्तियों का अर्थ लिखें। कवि ने यहाँ 'भीगे केश' क्यों लिखा है? अपनी कल्पना से उत्तर दें।
उत्तर- कवि अरुण कमल द्वारा रचित कविता 'मातृभूमि' अपने समकालीन समाज के विद्रूप चेहरे को प्रस्तुत करती है, इन पंक्तियों में कवि भारत के बच्चों के उस वर्ग की चर्चा करता है जो प्राकृतिक आपदाओं में अपने माँ-बाप खो चुके हैं और वर्तमान में पेट भरने के लिए कहीं मजदूरी कर रहे हैं। इनके दुःखों का कोई अंत नहीं। वर्षो में भींगते हुए ये अपना शोषण करा रहे हैं। कवि ने "भीगे केश" का उपयोग इसी सन्दर्भ में किया है कि मौसम की मार से इनको बचाने वाला कोई नहीं। ये बच्चे ममता से पूर्णतः वंचित हैं। इन्हें भी प्यार, स्नेह, ममत्व भरा स्पर्श चाहिए, जो केवल मातृभूमि ही दे सकती है। इसीलिए कवि मातृभूमि से इन बच्चों के जीवन में प्रेम, ममता आशा का संचार करने का आग्रह करता है।
प्रश्न 8. 'तुम किसकी माँ हो मेरी मातृभूमि' - इस प्रश्न का मूल भाव आपके विचार में क्या है?
उत्तर- प्रस्तुत कविता की पंक्ति 'तुम किसकी माँ हो मेरी मातृभूमि में छिपा प्रश्न ही इसका उत्तर भी है और अनेक नए प्रश्नों को उकेरता भी है। कवि कहता है कि यह मातृभूमि यदि माँ है तो माँ हमेशा अपने सभी बच्चों के साथ एक जैसा व्यवहार करती है फिर पृथ्वी पर इतनी असामनता क्यों है? यहाँ कहीं तो इतना अन्न पैदा होता है कि पशुओं को भी खाना खिलाया जाता है, और कहीं इतनी कमी होती है कि लोग भूख से मरने लगते हैं।
हे मातृभूमि। अगर तुम सबकी माँ हो तो पलामू कालाहांडी, आन्ध्रप्रदेश में तुम्हारे बच्चे भूख से क्यों मर रहे हैं? किसान आत्महत्याएँ क्यों कर रहे हैं? कवि सोचता है कि मातृभूमि केवल अमीर और सम्पन्न लोगों की ही माँ है।
यतीम लोगों के लिए इस पृथ्वी पर कोई जगह नहीं है। कवि कहता है कि यदि मातृभूमि सभी की माँ है तो उसका अपनी गरिमा को बचाकर रखना चाहिए।
प्रश्न 9. " और में भींज रहा हूँ
नाच रही परती नाचता आसमान मेरी कील पर नाचता नाचता मैं खड़ा रहा भीजता बीच-बीच।" इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर- व्याख्येय पंक्तियाँ अरुण कमल रचित 'मातृभूमि' नामक कविता से उद्धृत हैं। इन पक्तियों में कवि ने उस स्नेह का वर्णन किया है, जो उसे प्राप्त हुआ है। आँखों से
कवि को मातृभूमि का स्नेह भरा हाथ अपने माथे पर फिरता अनुभूत होता है साथ ही, वह मातृभूमि बरसाती कवि को देख भी रही है। इस स्नेह वर्षा में भींग कर कवि को लगता है कि पृथ्वी सहित सारा संसार उसके इशारे पर नाच रहा है। चारों तरफ से सुख की वर्षा हो रही है और स्नेह की इस घड़ी के बीचोबीच वह खड़ा है।
प्रश्न 10. कविता में कवि ने स्वयं के भींगने को 'भींजना' कहा है, जबकि सिंधु घाटी का चौड़े पट्टे वाला साँद, बच्चों के केश, नवोदा या कौए के पंखों के लिए 'भगना'। ऐसा क्यों? क्या इसका कोई भौगोलिक भाषायी आधार है?
उत्तर- 'मातृभूमि' कविता में कवि अरुण कमल ने स्वयं के लिए 'भोजना' और बच्चा, नवोदा व कौए के लिए "भींगना' का प्रयोग किया है। भीगना तत्सम रूप है जबकि भींजना तद्भव रूप है। इसे आम व्यक्ति प्रयोग में लाता है। कवि मूल रूप से भोजपुरी क्षेत्र से संबंधित हैं, इसलिए निकटता का भाव दर्शाने के लिए ही ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 11. शब्दों के प्रयोग में कवि अपनी पीढ़ी में अतिशय सावधान है। उसके सावधान शब्द प्रयोगों के कुछ उदाहरण कविता से चुनकर उनका अर्थ स्पष्ट करें।
'उत्तर- कवि 'अरुण कमल' मातृभूमि पर कविता लिखते समय अपनी मातृभाषा को भूलने की भूल नहीं करते। कवि ने हिन्दी के शुद्ध रूप का ही प्रयोग किया है, साथ ही साथ, कुछ भोजपुरी शब्दों का प्रयोग भी किया गया है, जिससे कविता में प्रेपणीयता आई है। सभी जानते हैं कि क्षेत्रीय बोलियों के शब्द कविता के प्रभाव को बढ़ाते हैं।
कवि जानबूझकर हाता, भीजता, सूक्षता हिलोड़ती, छेके, सोखना, मिलास, भाप, देहरी, माया आदि शब्दों का प्रयोग करता है जिससे कविता और भाषा दोनों की जीवंतता बनी रहे।
कवि ने भूख से मरने वाले क्षेत्रों का जिक्र करके यह दर्शाया है कि वर्तमान की समस्याओं से मुख मोड़कर कभी भी कवि कर्म पूरा नहीं होता। ललाट, माया व भाल में कुछ भी अन्तर नहीं है, लेकिन माँ की ममता 'माये' से ही प्रदर्शित होती है।
प्रश्न 12. इस कविता में 'मों' और 'मातृभूमि' की छवियाँ एक-दूसरे से घुल-मिलकर एकाकार हो जाती हैं तथा देश और काल के पटल पर मी की प्रतिमा व्याप्ति और विस्तार पा जाती है। इस दृष्टि से कविता पर विचार करें और एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर- कवि अरुणा कमल जी की 'मातृभूमि' नामक कविता सम्पूर्ण पृथ्वी को एक माँ के रूप में प्रस्तुत करती है। कवि ने स्वयं को एक बच्चे की तरह प्रस्तुत किया है। सृष्टि की संरक्षित मातृशक्ति ही है। विविध जीवों में अपनी संतान के प्रति जो माँ के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, उसी का विराट रूप पृथ्वी है। पृथ्वी हर हाल में अपनी विविध संतानों के जीवन-यापन के लिए विभिन्न संसाधन और परिस्थितियाँ उपलब्ध करती हैं और यही कार्य एक माँ करती हैं। कविता में मातृभूमि का मानवीकरण इसी तरह से हुआ है कि लगता है सम्पूर्ण पृथ्वी एक माँ की व्याप्त और विस्तारित प्रतिमा है। बार-बार मातृभूमि की चर्चा के बावजूद हमें यही लगता है कि एक ममतामयी माँ के वात्सल्य भाव का हम पग-पग पर अनुभव प्राप्त कर रहे हैं।
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