आज हम लोग एक नए अंदाज के साथ बिहार बोर्ड Class 11th Hindi काव्यखंड का चैप्टर - 10 जगरनाथ का सम्पूर्ण भावार्थ, केदारनाथ का जीवन परिचय और जगरनाथ का प्रश्न उत्तर देखने वाले हैं ,Bihar board Class 11th Hindi Chapter Jagannath kabhi Kedarnath Singh ka bhavarth aur prashn Uttar
In this post included :-
- जगरनाथ चैप्टर का संपूर्ण भावार्थ
- जगरनाथ चैप्टर के कवि केदारनाथ का जीवन परिचय
- जगरनाथ चैप्टर के पद का शब्दार्थ
- जगरनाथ चैप्टर के अभ्यास प्रश्न उत्तर
10. केदारनाथ सिंह
कवि-परिचय
जीवन-परिचय : केदारनाथ सिंह का जन्म सन् 1932 में उत्तर-प्रदेश के बलिया जिले के चकिया नामक गाँव में हुआ था।
- इन्होंने वाराणसी में रहकर शिक्षा प्राप्त की। पड़रौना, वाराणसी, गोरखपुर व दिल्ली में ही प्राध्यापन कार्य में लगे रहे। वर्तमान में ये जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा विभाग में कार्यरत हैं और स्वतंत्र लेखन में जुटे हैं।
पुरस्कार : साहित्य अकादमी द्वारा इन्हें 'कुमारन आशान' कविता पुरस्कार तथा दयावती मोदी कविता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साहित्यिक रचनाएँ : इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-
(क) कविता संग्रह : अभी बिलकुल अभी, यहाँ से देखो जमीन पक रही है, अकाल में सारस, उत्तर कबीर व अन्य कविताएँ, बाघ ।
(ख) आलोचना तया शोध कल्पना और छायावाद, मेरे समय के बाद, आधुनिक हिंदी कविता में बिंब विधान ।
केदारनाथ ने छठे दशक में कविता लिखना प्रारम्भ किया और नई 'कविता' आन्दोलन में एक महत्त्वपूर्ण कवि के रूप में पाठकों के सामने आए। इन्होंने किसानों के जीवन व संस्कृति से सम्बन्धित अनेक अछूत बिंबों का प्रयोग किया। आज वे हिन्दी के प्रमुख कवि माने जाते हैं।
काव्यगत विशेषताएँ: केदारनाथ सिंह ने अपने काव्य में सबसे अधिक ध्यान बिंबों के निर्माण तथा उनके गतिशील नाटकीय रचाव पर दिया है। इनके द्वारा प्रयुक्त बिम्ब बहुत ही गहरे व व्यापक अर्थ प्रस्तुत करते हैं।
केदारनाथ सिंह महानगर में रहने और वहाँ के विषयों का अपनी कविता में समावेश करते अपने गाँवों और वहाँ की जिंदगी को भूले नहीं हैं। हुए भी
केदारनाथ सिंह की कविता में एक साथ अनेक विरोधी प्रवृत्तियाँ नज़र आती हैं। वे अतीत की स्मृति को जीवित रखने के साथ-साथ वर्तमान स्थिति से भी जुड़े रहना चाहते हैं।
जगरनाथ कविता
(1)
कैसे हो मेरे भाई जगरनाथ ?
कितने बरस बाद तुम्हें देख रहा हूँ
यह गुम्मट-सा क्या उग आया है
तुम्हारे ललाट पर ?
बच्चे कैसे हैं?
कैसा है वह नीम का पेड़
जहाँ बँधती थी तुम्हारी बकरी?
मैं तो बस ठीक ही हूँ
खाता हूँ
पीता हूँ
बक-बक कर आता हूँ क्लास में
यदि मिल गया समय तो दिन में भी
मार ही लेता हूँ दो-एक झपकी
पर हमेशा लगता है मेरे भाई
कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है
पर छोड़ो तुम कैसे हो?
कैसा चल रहा है कामधाम ?
जगरनाथ कविता का शब्दार्थ - गुम्मट - चोट लगने से उभर आने वाली गिल्टी । बक-बक --- फालतू बोलना, व्यर्थ बोलना।
प्रसंग-- प्रस्तुत पंक्तियों केदारनाथ सिंह रचित 'जगरनाथ' शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। इस कविता में कवि ने मध्यम वर्ग के महानगरीय संस्करण के सोच-संस्कार को बड़े व्यग्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। विभिन्न प्रतीकों व बिंबों के माध्यम से कवि ने अपने भावों को एक मूर्त रूप प्रदान किया है।
जगरनाथ कविता व्याख्या : कवि केदारनाथ सिंह कहते हैं कि उन्हें अचानक अपने बचपन का एक साथी मिल जाता है। उसे देखते ही कवि के अंदर गाँव (देहात) का मृदुल भाव जागृत हो जाता है। कवि कहता है-भाई जगरनाथ! तुम इतने वर्षों के बाद मिले हो, बहुत खुशी हुई। परन्तु तुम्हारे ललाट पर यह गुम्मट कैसा निकला हुआ है? अर्थात् तुम्हारे ललाट पर यह गुम्मट क्यों है? क्यों यहाँ कोई चोट लगी है या फिर यह किसी बीमारी के कारण है? कवि अपने इस सवाल का जवाब पाए बिना ही उससे सवाल पर सवाल करने लगता है। कवि उससे पूछता है कि गाँव में जो एक नीम का पेड़ था, उसके नीचे तुम अपनी बकरी बाँधा करते थे-ये सब कैसे हैं?
ऐसा लगता है मानो जगरनाथ कवि से आँखों ही आँखों में प्रश्न पूछता है कि तुम कैसे हो? तो कवि कहता है-मैं तो ठीक हूँ, एक शिक्षक हूँ, कक्षा में अनगल बातें होती रहती हैं, सारा दिन बक-बक करता हूँ और समय मिल जाए तो पढ़ाते-पढ़ाते सो भी लेता हूँ। कवि जगरनाथ से पूछता है कि तुम मेरी बात छोड़ो। यह बताओ तुम कैसे हो? तुम्हारा काम-धंधा कैसा चल रहा है?
(2)
अरे वो?
उसे जाने दो
वह बनसुग्गों की पाँत थी
जो अभी-अभी उड़ गई हमारे ऊपर से
वह है तो है
नहीं है तो भी चलती ही रहती है जिंदगी
पर यह भी सच है मेरे भाई
कि कई दिनों बाद
यदि आसमान में कहीं दिख जाय
एक हिलता हुआ लाल या पीला-सा डैना
तो बड़ी राहत मिलती है जी को
पर यह तो बताओ
तुम्हारा जी कैसा है आजकल?
क्या इधर बारिश हुई थी?
क्या शुरू हो गया है आमों का पकना?
यह एक अजब-सा फल है मेरे भाई
सोचो तो एक स्वाद और खुशबू से
भर जाती है दुनिया
शब्दार्थ : - बनसुग्गा - वन में रहने वाला गैर पालतू तोता। झपकी - ऊँधना । पाँत - कतार । डैना - पंख । राहत आराम, सुख ।
प्रसंग : पूर्ववत् ।
व्याख्या: कवि अपने बचपन के मित्र जगरनाथ के मिलने पर उससे गाँव के बारे में अनेक प्रश्न पूछता है। उसे गाँव में गुजारे दिन और गतिविधियों याद हैं। कवि को गाँव में वर्षा का होना, आमों का पकना और उसके स्वाद तथा खुशबू को याद करना भी अपने आप में एक उपलब्धि है। यह कहता है कि जीवन तो केवल यहाँ गाँव में ही है। यहाँ शहर में (महानगर में) तो बस मशीनी जिन्दगी है। यहाँ आराम के सभी साधन उपलब्ध हैं लेकिन नैसर्गिकता नहीं है। कवि आगे कहता है कि गाँव में आसमान में उड़ती बनसुग्गों की पंक्तियाँ कितनी सुन्दर लगती हैं। जैसे पक्षियों की पंक्ति ऊपर से होकर चली जाती है, ठीक वैसे ही यह जीवन भी व्यतीत होता जा रहा है।
(3)
पर यह क्या?
तुम्हारे होंठ फड़क क्यों रहे हैं?
तुम अब तक चुप क्यों हो मेरे भाई?
जरा पास आओ
मुझे बहुत कुछ कहना है
अरे, तुम इस तरह खड़े क्यों हो?
क्यों मुझे देख रहे हो इस तरह?
क्या मेरे शब्दों से आ रही है
झूठ की गंध ?
क्या तुम्हें जल्दी है?
क्या जाना है काम पर ?
तो जाओ
जाओ मेरे भाई
रोकूंगा नहीं
जाओ ....... जाओ
और इस तरह
वह चला जा रहा था
मुझे न देखता हुआ और उस न देखने की धार से
मुझे चीरता फाड़ता हुआ मेरा बचपन का साथी
जगरनाथ !
शब्दार्थ - धार -- तीक्ष्णता।
प्रसंग - पूर्ववत् ।
व्याख्या: कवि केदारनाथ जो पहले कभी ऐसे सवाल नहीं करता था। जिसकी आँखों मे कभी भी परस्पर विरोधी भाव नहीं झलकते थे, कवि जो केवल जगरनाथ का हाल-चाल पूछकर ही अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेना चाहता है, यह कहता है-जगरनाथ, तुम इस तरह चुप-चाप मुझे क्यों देख रहे हो, तुम्हारे होंठ कुछ कहने के लिए फड़क रहे हैं। कहीं तुम्हें मेरे शब्दों से झूठ की गंध तो नहीं आ रही है? यहाँ कवि यह कहना चाहता है कि शहर में रहने के कारण उसके बोलने में सच का अंश बहुत ही कम रहता है। झूठ की गंध ज्यादा मिलती है। वह जगरनाथ से पीछा छुड़ाते हुए वहाँ से चला जाता है। स्वयं जगरनाथ भी बदले हुए इस मित्र से पीछा छुड़ाना चाहता है और जलती घूरती, चीरती -फाड़ती आँखों से देखता हुआ कवि को छोड़ अपनी राह पर आगे बढ़ जाता है।
प्रस्तुत पद में कवि गाँव की नैसर्गिकता की दुहाई तो देता है लेकिन शहर के सुख और वतन की मोटी रकम को न तो वह छोड़ने के लिए तैयार है। और न ही उसमें अपने किसी पुराने मित्र को शामिल करने को तैयार है। कवि सुविधाभोगी बन चुका है। उसके लिए जगरनाथ केवल अतीत का एक पन्ना है।
अभ्यास
कविता के साथ
प्रश्न 1. कवि को क्यों लगता है कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है?
उत्तर- जब कवि केदारनाथ सिंह अपने बचपन के दोस्त जगरनाथ को हार्दिकता के साथ मिलता है, उसका हाल-चाल पूछता है परन्तु जगरनाथ कुछ भी नहीं बोलता, चुप रहता है तो कवि को लगता है कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है। उसके ललाट पर एक गुम्मट निकला हुआ है। कवि सोचता है या तो यह गुम्मट किसी चोट लगने से हुआ है या फिर किसी बीमारी के कारण निकला है। कुछ-न-कुछ बात तो अवश्य है जो जगरनाथ असामान्य व्यवहार कर रहा है। इसलिए कवि को कहीं कुछ गड़बड़ लगती है।
प्रश्न 2.
"वह बनसुग्गों की पाँत बी
जो अभी-अभी उड़ गई हमारे ऊपर से
वह है तो है
नहीं है तो भी चलती रहती है जिन्दगी"
इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें और इसकी काव्य चेतना पर भी विचार करें।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ केदारनाथ सिंह द्वारा रचित कविता 'जगरनाथ' से उद्धृत है। इन पंक्तियों में कवि ने बीते समय को
बड़े सुंदर बिम्ब के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
मनुष्य बचपन के दिनों की याद कुछ दायित्वों से मुक्त होकर अवश्य करता है। कल्पना तथा रोमानियत की दुनिया में विचरण करना मनुष्य का स्वभाव है। समय तो निरंतर चलता ही रहता है, फिर भी कुछ बीते सुनहरे पल ऐसे याद आते हैं मानों ये पल अभी-अभी गुजरे हों, जिस प्रकार हमारे ऊपर से बनसुग्गों का झुण्ड, हरीतिमा का वितान ताने उड़ कर गया हो। परन्तु लेकिन आज जीवन एक समस्या की भाँति हो गया है। मानव जीवन में सुख और दुख दोनों आते हैं, दोनों को ही सहज रूप से लेना चाहिए।
कवि ने 'बनसुग्गों की पाँत' का प्रयोग अपने ग्रामीण परिवेश के मादक वातावरण को प्रदर्शित करने हेतु किया है। वास्तव में यहाँ वन तोता व पांति का प्रयोग भी किया जा सकता था लेकिन कवि ने बनसुग्गों की पाँति का प्रयोग करके हमें अपने नैसर्गिक स्वरूप की ओर खींचने का प्रयास किया है।
कवि के ऐसा कहने से हमें इस यथार्थ का बोध भी होता है कि चलना ही जिन्दगी है, जबकि रुकना मौत है।
प्रश्न 3. कवि को आसमान में लाल-पीले डैनेवाले पक्षियों को देखकर राहत मिलती है तो वह बनलुग्यों की पाँत की उपेक्षा क्यों करता है? आप इसका क्या कारण समझते हैं?
उत्तर-आधुनिक सोच तथा जीवन के संत्रास को अपनी कविता में बिम्बों के माध्यम से प्रस्तुत करने वाले प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह रचित "जगरनाथ" नामक कविता में एक डैने वाले पक्षी के आगे बनसुग्गों की उपेक्षा की गयी है।
सुग्गे 'सीता-राम' आदि वाणी का उच्चारण करने वाले पक्षी हैं, साथ ही पालतू भी होते है और मुक्त बनते भी उनके प्रति कोई विशेष लगाव अथवा श्रद्धा नहीं होती। जब भी कोई बड़े डैने वाला पक्षी जिसका शरीर माँसल होता है, लेकिन उड़ता हुआ दिखाई देता है तो उसके मांसल सौन्दर्य को देखकर बहुत राहत मिलती है। अनेक प्रवासी पक्षी है जो मौसम बदलने पर आते-जाते उड़ते नजर आते हैं।
प्रश्न 4. कवि को अपने शब्दों से झूठ की गंध आने का संशय क्यों होता है?
उत्तर- कवि केदारनाथ सिंह अपना बचपन गाँव में बिताकर जवानी के दिनों में शहर (महानगर) में आ गया। शहर में उन्हें उनका पुराना मित्र जगरनाथ बहुत दिनों के बाद मिलता है। हाल-चाल पूछने पर भी जगरनाथ उनके किसी भी सवाल का जवाब नहीं देता, परन्तु यह भी महसूस होता है कि कवि भी उसके जवाब सुनने को तैयार नहीं है।
जब कवि जगरनाथ से कुछ असम्बद्ध सवाल करता है, तो उसकी आत्मा उसे झकझोरने लगती है। तभी वह जगरनाथ से पूछ बैठता है कि कहीं मेरे शब्दों से उसे झूठ की गंध तो नहीं आ रही है। कवि का वर्तमान सत्य पर आधारित न रहकर कृत्रिमता पर आधारित हो गया है। उसका स्वभाव जगरनाथ की भी स्वाभाविक नहीं लगता। इसीलिए कवि को अपने शब्दों से झूठ की गंध आने लगती है।
प्रश्न 5. जगरनाथ की चुप्पी और उसके होठों के फड़कने में क्या संबंध है?
उत्तर- प्रस्तुत कविता अनेक संभावनाओं से युक्त कविता है। इसके लिए किसी भी एक अर्थ को नहीं लिया जा सकता। जगरनाथ की चुप्पी और उसके होंठों के फड़कने में कई प्रकार के सम्बन्ध हो सकते हैं, जैसे-बीते किसी समय में कवि ने जगरनाथ को कोई कष्ट या चोट पहुँचाई हो। कवि शहर आ गया हो और जगरनाथ गाँव तक ही सिमटकर रह गया है। इस समय कवि की आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हो उसे लगता हो कि जगरनाथ उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। जगरनाथ वह बोलना नहीं चाहता, लेकिन उसके होंठ फड़कने से बाज नहीं आ रहे। जगरनाथ स्वयं को असमंजस की स्थिति में पाता है।
प्रश्न 6. कवि को अपनी दिनचर्या से असंतोष क्यों है?
उत्तर- कवि एक प्राध्यापक हैं, इसका पता हमें जगरनाथ से वार्तालाप के दौरान चलता है। अतीत की कई स्मृतियाँ कवि के मन मस्तिष्क पटल पर चलचित्र की भाँति घूमने लगती हैं। कवि को अपने गांव के प्रति सहज और निश्चल प्रेम की अनुभूति होती है। शहरी वातावरण में फैले द्वेष, ईष्या, संकीर्णता, स्वार्थपरता, घृणा आदि के कारण कवि का मन संशय में पड़ जाता है। प्राध्यापक होने के नाते कवि केवल खानापूर्ति के लिए कक्षा में जाकर बक-बक कर आता है और मौका मिलते ही एक-दो झपकियाँ भी मार लेता है, इस प्रकार कवि व्यवस्था की गड़बड़ी के चलते उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों की कर्तव्यहीनता पर करारी चोट करता है। व्यवस्था की गड़बड़ी के कारण ही व्यक्ति कार्य-निष्पादन पूरी निष्ठा के साथ नहीं करता है। हालांकि कवि भी इसी व्यवस्था का एक अंग है, जिसमें व्यक्ति अपने जिम्मेदारी को निष्ठापूर्वक नहीं निभा पाता। कवि चाहता है कि उच्च पदासीन लोग अपने आदर्शों से समाज में एक मिसाल कायम करें, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाता है। यह कवि के लिए असतोष का विषय है।
प्रश्न 7. जगरनाथ को जाते हुए देखकर कवि को ऐसा क्यों लगता है कि वह उसे धीरता फाड़ता हुआ जा रहा है?
उत्तर- 'जगरनाथ' मानवीय संवेदनाओं व भावनाओं से परिपूर्ण कविता है। 'जगरनाथ' कवि केदारनाथ सिंह का बचपन का मित्र है। अचानक वर्षों बाद मिले जगरनाथ और कवि की आर्थिक स्थिति दोनों के बीच प्रेम नहीं बल्कि 'खाई' पैदा कर देती है। जगरनाथ कवि से अधिक योग्य होने पर भी समाज के वास्तविक गणित से अनभिज्ञ रह गया जबकि कवि उसी गणित के सहारे उच्च पद पर आसीन हो गया। कवि की बातें सुनकर 'जगरनाथ' अंदर से इतना अधिक आक्रोशित हुआ कि उसकी आँखें, आँखें न रहकर आरी बन गई। जगरनाथ जब वापस लौट रहा होता है तो यह काँद की ओर देखता तक नहीं।
कवि को ऐसा अनुभव होता है कि कहीं-न-कहीं जगरनाथ के भीतर यह भाव है कि कवि को जो कुछ भी उपलब्ध हुआ है, यह स्वाभाविक नहीं है, उसने जगरनाथ का हक मार लिया है, जिस पद पर आज कवि आसीन है, उसका प्रथम दावेदार जगरनाथ है। कवि में इतनी संवेदना तो अभी भी शेष है कि यह दूसरों के हाव-भाव तथा उसके अर्थ संदर्भ को समझ सके।
प्रश्न 8. कविता का नायक कौन है?
उत्तर- प्रस्तुत कविता का नायक भाई जगरनाथ हैं।
प्रश्न 9. कविता का शीर्षक 'जगरनाथ' क्यों है?
उत्तर- कवि ने कविता का शीर्षक जगरनाथ' इसलिए रखा क्योंकि गाँव में जिसे जिस नाम से पुकारा जाता है, उसकी वह पहचान हमेशा सुरक्षित रहे। चूंकि उसके कान 'जगरनाथ' ही सुनने के आदी हैं और वे 'जगरनाथ' बताने पर ही समझ पाएँगे, न कि व्याकरण शुद्धिकरण करके रखा गया जगन्नाथ' नाम पुकारने से
कवि स्वयं को अपने गाँव से, अपनी धरती से जोड़े रखना चाहता है। इसलिए उसने कविता का शीर्षक जगरनाथ रखा है।
प्रश्न 10. इस कविता में आपको प्रिय लगती पंक्तियाँ कौन-कौन सी हैं और क्यों?
उत्तर- इस कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ मुझे प्रिय लगती हैं-
"यह गुम्मट-सा क्या उग आया है
तुम्हारे ललाट पर?"
इस पंक्ति के माध्यम से कवि अपनी हार्दिकता व्यक्त करता है। ऐसा लगता है जैसे वह स्वयं इस गुम्मट बनने की प्रक्रिया का सहभागी बनना चाहता है।
-कैसा है वह नीम का पेड़
जहाँ बँधती थी तुम्हारी बकरी
कवि के मन में आज भी बसा हुआ नीम का हरा भरा घना पेड़ है, जिसके नीचे बकरी बँधती है, अर्थात् कस्बाई और शहरी
माहौल की उबकाई वाले वातावरण के बीच कवि के भीतर प्रकृति का कोमल स्वरूप आज भी विद्यमान है।
प्रश्न 11. कवि का पेशा क्या है।
उत्तर- 'जगरनाथ' नामक कविता में कवि केदारनाथ सिंह का पेशा शिक्षण है। वे किसी संस्थान में प्राध्यापक हैं।
प्रश्न 12. कविता में जगरनाथ के ललाट पर उग आये गुम्मट का विवरण क्यों दिया गया है?
उत्तर - कवि अपने मित्र जगरनाथ से वर्षों के बाद मिलता है। किन्तु जब वह उसके ललाट पर गुम्मट-सा कुछ देखता है।
तो उसे दुःख मिश्रित आश्चर्य होता है, यह गुम्मट बचपन में नहीं था। यह उन वर्षों में उगा है, जो जगरनाथ के साथ हुई किसी
दुर्घटना का प्रमाण है। हमारी मानसिकता होती है, कि हम अपने किसी प्रिय के जीवन मे कुछ भी अप्रिय घटित होने की आशंका के बारे में कभी नहीं सोचते। यह भी संभव है, कि गुम्मट कोई ट्यूमर हो और भीतर की किसी बीमारी का बाह्य प्रगट रूप हो। कवि ने एक आत्मीय के प्रति आत्मीयता प्रकार करने के लिए ही इस गुम्मट का विवरण दिया है।
प्रश्न 13. कविता में जगरनाथ का केवल चित्रण है और कवि का एकालापी वक्तव्य, जबकि कविता का शीर्षक 'जगरनाथ'
है। यहाँ जगरनाथ का वक्तव्य क्यों नहीं आ सका है?
उत्तर- प्रस्तुत कविता का नायक जगरनाथ है जो प्रत्यक्षतः मौन है। इसके विपरीत कवि का एकालाप तथा प्रलाप पूरी कविता में जारी रहता है। साथ ही यह भी सत्य है कि इस कविता का शीर्षक भी जगरनाथ है। लेकिन गौर से देखें तो लगता है कि जगरनाथ कवि से अधिक मुखर है। उसके माथे पर उभरा गुम्मट और उसके होठों की
फड़कन कवि के शब्दों से आ रही झूठ की गंध को पकड़ने का कार्य और वापस लौटते जगरनाथ का न देखते हुए भी कवि कि चीर-फाड़ डालने जैसी पीड़ा देना कहीं ज्यादा प्रभावी है। मुखर से 'मौन' ज्यादा अर्थगर्भित और मारक होता है। कवि तो बोलकर केवल औपचारिकता का विज्ञापन कर रहा है। पूरी कविता में जगरनाथ का मौन ही अधिक मुखरित है।
प्रश्न 14. कविता में प्रश्नवाचक चिह्नों के प्रयोग बहुत हैं? उसकी सार्थकता पर विचार कीजिए।
उत्तर- जैसे किसी के विशेष पहनाये और श्रृंगार पर बार-बार ध्यान खिंच जाता है, वैसे ही यदि कविता में प्रश्नावाचक या विस्मयादिबोधक चिह्नों का बार-बार पर प्रयोग हो तो पाठक को सोचने पर रुकने पर मजबूर होना पड़ता है। वस्तुतः ये सारे प्रश्न चिह हमारे आधुनिक समय के गुण-धर्म के सूचक हैं। हम कैसे क्षणजीवी हो गये हैं, कैसे हमारे भीतर संवेदनाओं का खोखलापन आ गया है, इन सबको केवल प्रश्न चिह्नों के माध्यम से ही व्यक्त किया जा सकता है। प्रस्तुत कविता में भी वही किया है। बार-बार आए प्रश्न चिह हमें धिक्कारते हैं। संवेदनाओं से रहित मानव का अस्तित्व मानवता के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगा देता है। इस दृष्टि से इनका प्रयोग सार्थक और सारगर्भित है
प्रश्न 15. कविता का शीर्षक है 'जगरनाथ', जिसका शुद्ध रूप जगन्नाव है। शीर्षक में इस तद्भव रूप का प्रयोग कवि ने क्यों किया है?
उत्तर- तत्सम शुद्धता का, संस्कार का, परिष्कार का नगर और शहर का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि मिलावट आम जन के रहन-सहन का तथा तत्सम के गर्व को चूर कर देने वाली शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है।
जगरनाथ भारत के उस पिछड़े इलाके का प्रतिनिधि है, यहाँ संस्कृति की शहरी बयार अभी तक नहीं पहुँची है। जीवन संघर्ष यहाँ भी है, किन्तु यहाँ गलाकाट प्रतियोगी वातावरण नहीं है। कवि स्वयं अपने ग्रामीण को परिवेश नहीं भूल पाया है। वहाँ का अपनत्व 'भइया', 'भाई', 'चाचा', 'ताउ', 'बिटवा', आदि का संबोधन आज भी उसके कानों में मधु की बूंद की तरह लगते हैं। कवि ने अपनी पहचान और अस्मिता को पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से ही जगरनाथ जैसे तद्भव शब्द रूप का शीर्षक में प्रयोग किया है।
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