बिहार बोर्ड Class 11th Hindi
Chapter -12 गांव के बच्चों की शिक्षा
लेखक - कृष्ण कुमार
बिहार बोर्ड कक्षा- 11वी हिंदी दिगंत भाग-01 चैप्टर( गांव के बच्चों की शिक्षा ) लेखक परिचय, सारांश, प्रश्न उत्तर
लेखक - कृष्ण कुमार जीवन परिचय
जीवन-परिचय : आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य में कृष्ण कुमार एक प्रखर विचारक के रूप में प्रसिद्ध हैं। कृष्ण कुमार का जन्म सन् 1951 में मध्यप्रदेश राज्य के टीकमगढ़ में हुआ था। शिक्षा पूरी करने के बाद वे अध्यापन कार्य से जुड़ गये। वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र विभाग (सी.आई. ई.) में प्रोफेसर एवं पूर्व संकायाध्यक्ष हैं।
साहित्यिक रचनाएँ : कृष्ण कुमार जी की रचनाओं को निम्नलिखित वर्गों में रखा जा सकता है-
कहानी संग्रह : नीली आँखों वाले बगुले, त्रिकालदर्शन ।
बाल-कथा संग्रह : आज नहीं पढ़ेगा।
यात्रावृत: अब्दुल मजीद का छुरा ।
निबंध संग्रह विचार का डर, स्कूल की हिंदी ।
शिक्षा दर्शन : शैक्षिक ज्ञान और वर्चस्व, राज, समाज और शिक्षा; बच्चे की भाषा और अध्यापकः गुलामी की शिक्षा और राष्ट्रवाद, शिक्षा और ज्ञान ।
बाल कविताओं का संकलन-संपादन : महके सारी गली-गली ।
अंग्रेज़ी की पुस्तकें : वॉट इज वर्य टीचिंग, पॉलिटिकल एजेंडा आफ एजुकेशन, सोशल कैरेक्टर ऑफ लर्निंग, लर्निंग फ्रॉम कन्फलीक्ट, प्रिजुडिस एंड प्राइड ।
साहित्यिक विशेषताएँ : जहाँ हिन्दी साहित्य उनकी कहानियों, यात्रा वृत्तांत और निबंधों से समृद्ध हुआ है, वहीं उनका शिक्षा दर्शन भी उनके शिक्षा सम्बन्धी आलेखों में पूर्ण रूप से उजागर हुआ है।
भारतीय लोकतंत्र के मूल्यों, रूपों, प्रतिमानों आदि के संदर्भ में उनके शिक्षा-चिंतन समाज के लिए विशेष महत्त्व रखते हैं। अपने शिक्षा चिंतन में उन्होंने शिक्षा के स्वरूप, प्रक्रिया और प्रविधि में स्थानीय संसाधनों और जरूरतों को अपेक्षाकृत अधिक महत्त्व दिया है।
उनके अब तक के चिंतन में भारतीय लोकतांत्रिक शिक्षा का एक आधुनिक रूप उभरता दिखलाई देता है।
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Question Answer
प्रश्न 1. कमारा त्ये का देश किस देश का उपनिवेश या? अपनी आत्मकथा के अन्तिम अध्याय में उन्होंने किस प्रसंग का चित्रण किया है? संक्षेप में लिखें।
उत्तर- 'कमारा ल्ये' का देश (पश्चिमी अफ्रीका) फ्रांस का उपनिवेश था। कमारा ल्ये ने अपनी आत्मकथा के अन्तिम अध्याय में उस घटना का वर्णन दिया है जब उच्चतर माध्यमिक शिक्षा समाप्त करने के बाद एक प्रतियोगिता के लिए उनका चयन हुआ था। प्रतियोगिता में सफल होने पर तत्कालीन सरकार द्वारा उच्च-शिक्षा के लिए उन्हें फ्रांस भेजने एवं अध्ययन (शिक्षण) की व्यवस्था की गई। उस समय एक गुलाम देश में रहकर विदेश जाकर उच्च शिक्षा ग्रहण करना एक विशिष्ट उपलब्धि थी। कमारा को अपने माता-पिता, रिश्तेदारों तथा अन्य रिश्तेदारों से विदा लेने के लिए अपने गाँव आना पड़ा। गाँव के सभी लोग अत्यन्त गद्गद् थे। कमारा को उसके परिवार वालों तथा अन्य सम्बन्धियों ने सहर्ष विदाई दी। लेकिन खटकने वाली बात यह थी कि उसकी माँ यहाँ पर कहीं नजर नहीं आई चिन्तित कमारा माँ से आर्शीवाद लेने के लिए झोपड़ी में गए। माँ वहाँ पर बैठी रो रही थीं। माँ को रोते देख कमारा उद्विग्न हो गए जब उन्होंने माँ से इसका कारण पूछा तो अनेक प्रयासों के बाद माँ ने कहा कि जिस दिन कमारा का प्राथमिक पाठशाला में नामांकन हुआ था, उसी दिन उसकी माँ ने समझ लिया था कि वह उस गाँव में नहीं टिक पाएगा। उन्होंने उसके पिता और चाचा को कमारा की पढ़ाई के लिए मना भी किया था, लेकिन वे लोग नहीं माने। अब पढ़ने के लिए विदेश जाने के बाद कमारा इस देश में भी नहीं रहेगा उसकी माँ ने यह भी कहा कि उनका कमारा तो बहुत पहले ही, शिक्षा प्राप्त करने के साथ उनसे विदाई ले चुका है। सिर्फ उसी से नहीं बल्कि पूरे गाँव से उसे छीन लिया गया है। इस वर्णन में एक माँ की अन्तर्वेदना स्पष्ट परिलक्षित होती है।
प्रश्न 2. कमारा ल्ये की आत्मकथा किसे समर्पित है?
उत्तर- कमारा ल्ये ने अपनी आत्मकथा अपने देश की उन असंख्य अशिक्षित माताओं को समर्पित की है जो दक्षिण अफ्रीका के खेतों में काम करती हैं। विदेश में अध्ययन के लिए जाते समय जब वह अपनी माँ से विदाई लेने गए थे तब उनकी माँ की अंतर्वेदना और तैराश्य की भावना ने उनको झकझोर दिया, जो आत्मकथा के समर्पण में स्पष्ट रूप से दिखती है।
प्रश्न 3. कमारा ये की माँ उन्हें क्यों नहीं पढ़ाना चाहती थीं?
उत्तर- कमारा ये की माँ उन्हें इसलिए नहीं पढ़ाना चाहती थीं क्योंकि उन्हें आशंका थी कि अगर वह शिक्षा ग्रहण करने विद्यालय जाएगा तो कालांतर में गाँव छोड़कर अन्यत्र चला जाएगा। गाँव छोड़ना उसकी विवशता होगी। जब वह उच्च शिक्षा ग्रहण करने हेतु फ्रांस जाने लगा तो उसकी माँ को विश्वास हो गया कि अब वह अपने देश अफ्रीका में भी नहीं रह पाएगा, बल्कि विदेश चला जाएगा। एक माँ की ममता उन्हें यह सब सोचने पर मजबूर कर रही थी।
प्रश्न 4. 'शिक्षा अपने आप में कोई गुणकारी दवाई नहीं है जिसके सेवन से समाज एकदम रोगमुक्त हो जाएगा या वह कोई एक उपहार हो जो सरकार हमें देने वाली हो या पिछले पचास साल से देती चली आ रही हो।' आखिरकार शिक्षा क्या है ? लेखक के इस कवन का अभिप्राय क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर - शिक्षा-शिक्षा, ज्ञान का एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा मनुष्य पढ़ना, लिखना सीखने के साथ ही सुसंस्कृत बना है। उसके आचार-विचार, रहन-सहन, व्यवहार, कार्यशैली, आदि में अमूल्य परिवर्तन आता है। वह अपना अच्छा-बुरा सोचने के योग्य बनता है। अतः शिक्षा ज्ञान का वह आलोक है, जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को आलोकित करती है।
लेखक के कथन का अभिप्राय प्रस्तुत निबंध 'गाँव के बच्चों की शिक्षा' में लेखक ने कहा है कि हम लोग शिक्षा तथा साक्षरता के बारे में गलत धारणा अपना बैठे हैं मानों शिक्षा का कोई सामाजिक चरित्र ही न हो। लोगों ने उसे एक ऐसी दवाई मान रखा है जिसे खाते ही समाज से सारे रोग दूर हो जाएँगे या फिर शिक्षा सरकार द्वारा प्रदान किया जाने वाला कोई उपहार हो जो वह हमें पिछले पचास वर्षों से देती आ रही है। सरकार स्वतंत्रता के बाद से लगातार आश्वासन देती आ रही है, इसके बावजूद भी आज शिक्षा को सभी बच्चों तक नही पहुंचाया जा सका है। ऐसे में शिक्षा का एक प्रतिकूल सामाजिक चरित्र उभरकर सामने आता है। आज की शिक्षा बच्चों को समाज के व्यापक सरोकारों से काटने का एक प्रमुख अस्त्र बनकर उभरी है। इसकी शुरुआत उसी दिन से हो जाती है, जब हमारे बच्चे प्राथमिक पाठशाला में प्रवेश करते हैं। लेखक शिक्षा को केवल लड़कों तक ही सीमित रखने का पक्षधर नहीं है, बल्कि वह तो शिक्षा को लड़कियों तथा समाज के सभी वर्गों तक पहुँचाने का पक्षधर है। लेखक का मानना है कि अध्यापकों के प्रशिक्षण तथा उनकी स्थिति पर भी उचित ध्यान देना चाहिए।
प्रश्न 5. लेखक के अनुसार शिक्षा बच्चों को समाज के सबसे व्यापक सरोकारों से काटने वाला एक प्रमुख अस्त्र बन गई है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा है? क्या आप इससे सहमत हैं? आप अपना विचार दें।
उत्तर- लेखक कृष्ण कुमार का मानना है कि बच्चों को दी जाने वाली आधुनिक शिक्षा बच्चों को समाज के सबसे व्यापक सरोकारों से काटने वाला एक प्रमुख अस्त्र बन गई है। लेखक ऐसा अनुभव करता है कि बच्चे ऐसा समझते हैं कि शिक्षा का कोई सामाजिक महत्त्व ही नहीं है। आजकल बच्चों को इस प्रकार की शिक्षा परोती जा रही है जिसके द्वारा शिक्षा का सामाजिक चरित्र अछूता है और उपेक्षित रहता है। बच्चों को अपने सामाजिक दायित्व का बोध नहीं हो पाता है। वर्तमान शिक्षा पद्धति को देखकर ही लेखक ने ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। लेखक इस स्थिति से काफी क्षुब्ध दिखाई पड़ते
हैं। लेखक के अनुसार पिछले पचास वर्षों से शिक्षा की ऐसी ही दयनीय स्थिति चली आ रही है। निश्चित रूप से लेखक महोदय के विचार पूर्णरूपेण तथ्यों पर आधारित हैं। आधुनिक शिक्षा-पद्धति ऐसे ही दुर्भाग्यपूर्ण दौर से गुजर रही है। बच्चे अपने सामाजिक दायित्वों को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं। इसकी दृष्टि से शिक्षा का उद्देश्य केवल पुस्तकों के ज्ञान तक ही सीमित है।
अतः लेखक का कथन सर्वथा उचित एवं सार्थक है।
प्रश्न 6. आर्थिक उदारीकरण से आप क्या समझते हैं? इसके क्या दुष्परिणाम हुए हैं?
उत्तर- आर्थिक उदारीकरण को सामान्यतः आर्थिक सुधार के रूप में जाना जाता है। इसे राष्ट्र की आर्थिक स्थिति की मज़बूती के लिए एक सुदृढ़ औजार के रूप में देखा जाने लगा। इसके परिणामस्वरूप पूंजीवाद देश के कोने-कोने में पहुँच रहा
है। राष्ट्र के सर्वागीण विकास की अवधारणा का भ्रामक विचार धीरे-धीरे सरकार के मानस पटल पर पल्लवित हो रहा है। आर्थिक उदारीकरण के दुष्परिणाम एक ओर आर्थिक उदारीकरण जहाँ विकास में तेजी आई है, वहीं इसके कुछ घातक दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं जो इस प्रकार हैं- (i) आर्थिक उदारीकरण के अंतर्गत देश के विभिन्न साधनों जमीन, खनिज, पानी, जंगल तथा अन्य संसाधनों को आम जनता से छीनकर कुछ पूँजीपति घरानों और विदेशी कंपनियों के हाथों में सौंपा जा रहा है।
(ii) भविष्य की चिंता किए बिना इन संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है, जो कि भविष्य के लिए शुभ संकेत
नहीं है।
प्रश्न 7. लेखक ने प्रस्तुत पाठ में देश की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था पर आक्षेप किए हैं। उनके विचार से देश की राजनीतिक व्यवस्था में कौन-सी समस्याएँ प्रवेश कर चुकी हैं?
उत्तर- प्रस्तुत निबंध को पढ़ने से ज्ञात होता है कि लेखक वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था से क्षुब्ध है। देश की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था पर आक्षेप करते हुए लेखक ने कहा है कि आज देश में हर जगह अपराध और हिंसा फैल गयी है। हिंसा, अपराध, तथा राजनीति एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं। हम देश की राजनीति की जितनी गहराई में जाएँगे, हिंसा तथा अपराध का बोलबाला उतना ही अधिक है। देश की राजनीतिक व्यवस्था में प्रविष्ट समस्याएं हिंसा और अपराध के बढ़ते प्रभाव के कारण देश की आधुनिक राजनीतिक
व्यवस्था में प्रविष्ट समस्याएँ इस प्रकार हैं- (i) देश की वर्तमान स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि हिंसा और अपराध राजनीति के अभिन्न अंग बन गए हैं, जिन्हें अलग करना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है।
(ii) हिंसा और अपराध जो निरंतर समाज में अपने पैर पसारते जा रहे हैं, वह केवल राजनीति तक ही सीमित न होकर सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित करने लगे हैं।
(iii) हिंसा और अपराध के दुष्प्रभाव से महिलाएँ और दलित एवं शोषित वर्ग, किसान, आदिवासी और छोटे कामगार अधिक प्रभावित होते हैं।
प्रश्न 8. 'पंचायती राज में एक तरफ चिंगारी और रोशनी झाँकती है, वहीं देरों आशंकाओं का अंधेरा भी दिखाई देता है।' यहाँ किन रोशनी और आशंकाओं की ओर संकेत है?
उत्तर पंचायती राज में एक तरफ भी दिखाई देता है।" वाक्य के द्वारा लेखक द्वारा जिन रोशनी और आशंकाओं की ओर संकेत किया गया है, वे इस प्रकार पंचायती राज राष्ट्र के उत्थान का माध्यम-रोशनी के रूप में-लेखक का मानना है कि पंचायती राज की स्थापना देश के सर्वांगीण विकास के लिए एक प्रभावी सार्थक कदम है। इसके माध्यम से विकास के लिए आशा की एक नई किरण दिखाई देने लगी है। इस विकास के परिणामस्वरूप देश में आशानुकूल परिवर्तन होगा और देश के कमजोर वर्गों तक भी विकास का लाभ पहुँच सकेगा। यह पंचायती राज का रोशनी भरा रूप है।
पंचायती राज के बारे में आशंकाएँ-लेखक को पंचायती राज के विषय में ढेरों आशंकाओं का अंधेरा भी दिखाई देता है, राज्यों जो इस प्रकार है-
(1) लेखक के मन में प्रश्न उठता है कि पंचायती राज को चलने भी दिया जाएगा या नहीं क्योंकि अभी तक सभी में पंचायतों के चुनाव भी नहीं हो पाए हैं।
(ii) खनिजों के इस्तेमाल के संबंध में ग्राम सभाएँ केवल चर्चा ही कर सकती हैं।
(iii) अभी तक पंचायतों को महत्वपूर्ण अधिकार भी नहीं सौंपे गए हैं।
(iv) स्थानीय स्तर पर जो अराजकता फैली हुई है, उसे नियंत्रित करने की शक्ति इन पंचायतों के पास नहीं है।
प्रश्न 9. प्राथमिक शिक्षा को अधिक कारगर बनाने के लिए लेखक ने कौन-से दो क्षेत्र सुझाए हैं?
उत्तर- प्राथमिक शिक्षा को कारगर बनाने के लिए लेखक ने निम्नलिखित दो क्षेत्र सुझाए हैं-
1. शिक्षकों को उचित वेतन एवं सम्मान- इस निबंध में लेखक ने लिखा है कि कुछ प्रदेशों में शिक्षकों को केवल पाँच सौ रुपये प्रतिमाह वेतन देकर उनका आर्थिक शोषण किया जाता है। इतना कम वेतन पाने वाला शिक्षक कैसे शिक्षण कार्य करेगा, इसका केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है। इसीलिए शिक्षक के वेतन में सुधार के साथ ही उनके साथ शिक्षकानुकूल व्यवहार भी किया जाना चाहिए। इसके अलावा शिक्षकों को उचित ढंग से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
2. छात्रों के लिए आकर्षक वातावरण एवं कार्यक्रम- प्राथमिक शिक्षा में सुधार के अगले कदम के रूप में विद्यालयों का वातावरण थोड़ा आकर्षक बनाया जाना चाहिए, ताकि छात्रों का मन वहाँ लग सके। उनके लिए शिक्षण कार्यक्रम भी आकर्षक बनाए जाने चाहिए।
इसके अलावा विद्यालयों को समय पर वित्तीय सहायता देनी चाहिए और शिक्षा सुधार के लिए समय-समय पर गोष्ठियाँ
आदि आयोजित की जानी चाहिए।
प्रश्न 10. नौकरशाही ने प्राथमिक शिक्षा को किस प्रकार नुकसान पहुंचाया है?
उत्तर - शिक्षा पर नौकरशाही के प्रभुत्व ने प्राथमिक शिक्षा को काफी नुकसान पहुँचाया है। नौकरशाही शिक्षा के विकास में एक दीवार बनकर खड़ी है। वह प्रायः हर अच्छे कार्यक्रम का विरोध करती है। इस दिशा में गहराई तक जाने पर यह तथ्य एकदम स्पष्ट हो जाता है। पंचायतें इस बात की मूक गवाह हैं। बड़ी-बड़ी शिक्षा समितियों द्वारा सुझाए गए अच्छे से अच्छे शैक्षिक सुधार नौकरशाही द्वारा ठंडे बस्ते में डाल दिए जाते हैं। इसके मूल में अफसरों की मानसिकता अपने प्रभुत्व को बनाए रखने की होती है। वह अपनी ताकत कम होते देखना नहीं चाहता। विडम्बना यह है कि शिक्षा की विफलता का सारा दोष प्राथमिक शाला के
निर्दोष शिक्षकों पर थोप दिया जाता है, जबकि वे हमारे साथी हैं, शत्रु नहीं। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि नौकरशाही ने प्राथमिक शिक्षा को काफी नुकसान पहुँचाया है।
प्रश्न 11. प्राथमिक शिक्षा की असफलता का दोष किन्हें दिया जाता है?
उत्तर- हमारे देश में प्राथमिक शिक्षा की असफलता का सारा दोष प्राथमिक पाठशालाओं के शिक्षकों को दिया जाता है। ऐसा पिछले कई सालों से किया जा रहा है। वास्तव में प्राथमिक शिक्षा की असफलता के जिम्मेदार शिक्षक नहीं, बल्कि, देश की
नौकरशाही है।
प्रश्न 12. प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी पन के आगमन की अन्तिम परिणति महिलाओं पर हिंसा के रूप में होनी है। कैसे?
उत्तर-देश में आज प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी धन के आगमन से अनेक नई समस्याएँ पैदा हुई हैं, जिसकी अन्तिम परिणति महिलाओं पर हिंसा के रूप में प्रकट हुई है। आर्थिक उदारीकरण के कारण प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी मात्रा में विदेशी धन आ रहा है। मंत्री, विधायक और अफसर दिन-रात इसके बंदरबांट में लगे हैं तथा इसकी सत्तर प्रतिशत से भी अधिक राशि उनके पेट में चली जाती है। यह पैसा बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को जन्म दे रहा है। यह सर्वविदित है कि भ्रष्टाचार ही हिंसा की जननी है, हिंसा का प्रणेता है और जहाँ कहीं भी हिंसा होगी, उसकी शिकार विशेषकर महिलाएँ ही होंगी। "यह पूर्णतया सत्य है कि प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी धन की अन्तिम परिणति नारी उत्पीड़न है जो अक्सर हिंसा का रूप भी धारण कर लेती है।
प्रश्न 13. लेखक के प्राथमिक शाला के शिक्षकों से संबंधित विचार संक्षेप में लिखें।
उत्तर- लेखक का मानना है कि प्राथमिक शाला के शिक्षकों के साथ चलकर शिक्षा की समस्याओं और उनकी लाचारी को समझना पंचायत प्रतिनिधियों के लिए बहुत ही जरूरी है। कुछ प्रदेशों में तो शिक्षकों को केवल 500 रु. का मासिक वेतन देकर उनका आर्थिक शोषण किया जाता है। इतने अल्प वेतन में शिक्षक कभी भी निष्ठापूर्वक नहीं पढ़ा सकता है। शिक्षकों की मजबूरी,
और बदहाल आर्थिक स्थिति पर ध्यान देते हुए उन्हें सम्मानजनक स्थान दिया जाना चाहिए। प्राथमिक शिक्षा की असफलता के लिए केवल उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए। वास्तव में प्राथमिक शिक्षक हमारे मित्र हैं।
प्रश्न 14. साधना बहन के हरित क्रांति के सम्बन्ध में क्या विचार हैं?
उत्तर- साधना बहन ने हरित क्रांति के नाम पर खेती में आये क्रांतिकारी परिवर्तन के प्रति अपनी निराशा तथा असन्तोष का भाव प्रकट किया है। उन्होंने सोयाबीन की खेती से होने वाले दुष्प्रभावों का अत्यन्त सजीव चित्रण किया है। उनके अनुसार साठ के दशक में प्रारम्भ हुई हरितक्रांति गरीबी तथा आर्थिक विषमता में वृद्धि का प्रमुख कारण बनी है। इसके कथाकथित हरित क्रांति का दुष्परिणाम यह हुआ है कि हमारे गाँवों की कृषि योग्य भूमि नष्ट हुई है। नई-नई फसलों का प्रलोभन देकर किसानों को उनकी खेती करने को प्रोत्साहित किया गया। रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से पानी और मिट्टी के विषाक्त होने का खतरा उत्पन्न हो गया है। गाँवों की कृषि को सोयाबीन की खेती ने सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है जिसके परिणामस्वरूप देश की मिट्टी अनेक स्थानों पर तो बहुमुखी अनुर्वर होने के कगार पर पहुँच गई है। इससे हमारी खेती को व्यापक क्षति हुई है।
पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण और समाज में समता के मूल्यों को स्थापित करके ही हम राष्ट्र के बहुमुखी विकास की आशा कर सकते हैं अन्यथा विनाश की ओर तेजी से बढ़ते कदम हमारी कृषि के लिए अत्यन्त अहितकर होंगे।
प्रश्न 15. “यदि हम पर्यावरण, प्रकृति-संरक्षण और समाज में समता के मूल्यों को स्थापित करने की बात नहीं करेंगे तो शिक्षा इस विनाश को और भी तेजी से फैलाएगी।" लेखक के इस कथन का अभिप्राय स्पष्ट करें। आखिरकार शिक्षा इस विनाश को कैसे तेजी से फैलाएगी?
उत्तर- लेखक का मानना है कि हम केवल बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाते हैं, उपलब्धियों की चर्चा करते हैं, लेकिन राष्ट्र के विकास के प्रमुख कारक (कार्य), यथा प्रकृति-संरक्षण, पर्यावरण की सुरक्षा, तथा समाज में समता के मूल्यों की स्थापना के प्रति सचेत नहीं हैं। हम इनकी पूर्णतया उपेक्षा कर रहे हैं। वर्तमान शिक्षा इसमें कोई सार्थक योगदान नहीं कर रही है। इसकी परिणति व्यापक विनाश को ही आमंत्रित करेगी। वास्तव में उच्च स्तर पर मंत्रियों की चाटुकारिता तथा विभागीय अफसरों द्वारा खुशामद की प्रवृत्ति ही इन बुराइयों का मूल कारण है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप शिक्षा दर्शन ही समाप्त हो जाता है। समुचित मार्गदर्शन के अभाव में हम लक्ष्य से भटक गए हैं।
शिक्षक वर्तमान दयनीय स्थिति तथा वर्तमान शिक्षा प्रणाली से अत्यन्त क्षुब्ध तथा हतोत्साहित है। इनकी आन्तरिक इच्छा है कि वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तन लाये बिना हम समाज में समता एवं विकास के लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकते।
प्रश्न 16. गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा की रूपरेखा क्या थी?
उत्तर- गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा की रूपरेखा के अंतर्गत शिक्षा को ग्रामीण जीवन तथा गाँव के पारम्परिक उद्योगों से जोड़ना सम्मिलित था। गाँधीजी आज की शिक्षा विशेषकर प्राथमिक शिक्षा में नवजीवन का संचार करना चाहते थे। गाँधीजी की बुनियादी तालीम की कल्पना, उनके ग्राम-स्वराज्य के सपनों की आधारशिला थी। इसके माध्यम से ग्रामों की स्वायत्तता तथा ग्रामीणों को सम्मानपूर्वक जीने का हौसला देना, उनका प्रमुख लक्ष्य था। इस प्रक्रिया में बुनियादी शिक्षा की उनकी रूपरेखा आज भी प्रेरणादायक है तथा इस संदर्भ में कार्य करने को दिशा प्रदान करने में समर्थ है। शिक्षा के सामाजिक चरित्र पर सीधे प्रहार किए बिना शिक्षा और विनाशकारी विकास के बंधन को हम कभी तोड़ नहीं सकते।
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